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Parenting Tips: इस बीमारी के कारण जन्म से ही अंधेपन का शिकार हो सकते हैं शिशु

  • Edited By palak,
  • Updated: 05 Jan, 2023 01:35 PM
Parenting Tips: इस बीमारी के कारण जन्म से ही अंधेपन का शिकार हो सकते हैं शिशु

शिशु को ऐसी कई स्वास्थ्य समस्याएं होती है जो जन्म के बाद समय से पहले ही उन्हें परेशान कर सकती हैं। इन समस्याओं के बारे में माता-पिता को भी जानकारी होनी चाहिए। इन्हीं समस्याओं में से एक है प्रीमेच्योरिटी रेटिनोपैथी, इसके कारण दुनियाभर में शिशु बचपन से ही अंधेपन का शिकार हो रहे हैं। इस बीमारी का खतरा खासकर जन्मे शिशु को होता है। जन्म के लगभग 20-40 हफ्ते के बाद ही शिशु की आंख में रेटिना का विकास होता है। यदि शिशु का जन्म 28 में हफ्ते के दौरान ही हो गया है तो आंखों की रोशनी जाने का खतरा और भी बढ़ जाता है। जिसके कारण उनमें देखने की क्षमता नहीं हो पाती। तो चलिए आपको बताते हैं कि यह बीमारी क्या है और इसके लक्षण क्या है...

क्या होती है रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी? 

यह एक आंख से संबंधित समस्या है, इस बीमारी में आंख के परदे की रक्त वाहिका सिकुड़ जाती है। जन्म के समय में प्रीमेच्योर शिशु को संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसके कारण शिशु की आंख की रोशनी भी चली जाती है और आगे जाकर बच्चे को आंख से जुड़ी समस्याएं हो जाती हैं। गर्भावस्था के 16 सप्ताह के आस-पास ही बच्चों के आंखे विकसित होने लगत जाती है। यदि बच्चा समय से पहले पैदा हो तो इसके कारण आंखों की रक्त वाहिका को विकसित होने का समय नहीं मिल पाता जिसके कारण रक्त कोशिकाएं आंख में विकसित होने के अलावा पूरे रेटिना में बढ़कर फैलनी शुरु हो जाती है। यह सामान्य रक्त वाहिकाएं नाजुक और कमजोर होती हैं और लीक भी हो सकती है। रेटिनल डिटैचमेंट के कारण विजुअल इंपेयरमेंट और बचपन से ही अंधेपन की समस्या भी हो सकती है। 

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कैसे बच्चे को होती है यह बीमारी? 

इस बीमारी से शिशु को बचाने के लिए रोप टेस्ट किया जाता है। खासकर जो बच्चे समय से पहले या प्रीमेच्योर होते हैं उन्हें रोप टेस्ट की जरुरत पड़ती है। इसके अलावा जिन महिलाओं की प्रेग्नेंसी आईवीएफ तकनीक से होती है उन्हें भी बच्चों के जन्म के बाद रोप टेस्ट करवाना चाहिए। जन्म के 30 दिनों के अंदर ही यह टेस्ट करवाना जरुरी होता है। 

इसके लक्षण 

. मयोपिया
. नेत्रों का तिरछापन

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. सुस्त आंख 
. आंखों में रक्त स्नाव
. मोतियाबिंद

इन थेरेपीज के साथ कर सकते हैं 

लेजर थेरेपी 

लेजर थेरेपी के जरिए शिशु को रेटोनीपैथी ऑफ मैच्योरिटी  से बचाया जा सकता है। इसमें रेटिना के आस-पास असामान्य रक्त वाहिका जल जाती है। इस थेरेपी के जरिए एक्सपर्ट्क के द्वारा एवस्कुलर रेटिना का इलाज किया जाता है, ताकि रेटिना की ऑक्सीजन की मांग को कम किया जा सके और असामान्य रक्त वाहिकाओं के गठन को भी रोक जा सके। 

एंटीवीईजीएफ 

इसके अलावा एंटीवीईजीएफ दवाईयों के जरिए भी रक्त समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। यह दवाई रेटिना में रक्त वाहिका के अतिवृधि को रोकने में मदद करती है। इस दवाई को आंख में तभी डाला जाता है जब शिशु को एनेस्थीसिया दिया जाचा है। आरओपी वाले शिशु को नियमित जांच की जरुरत होती हैं क्योंकि इस स्थिति से आंखों की गलत दिशा, ग्लूकोमा का खतरा बढ़ने और निकट दृष्टि दोष के अलावा स्थायी अंधेपन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। 

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क्रायोथेरेपी 

रक्त वाहिकाओं को रेटिना पर फैलने से रोकने के लिए क्रायोथैरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे कोल्ड थेरेपी भी कहता हैं। यह आरओपी का एक बेहतर उपचार है। 


 

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