भारत को यूं ही आर्ट ऑफ इंडिया नहीं कहते, यहां के कोने-कोने में आपको यूनिक पहचान रखने वाली कलाएं मिलेगी। कुछ आर्ट तो ऐसे हैं जो पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। उन्हीं खूबसूरत आर्ट में से एक है पिचवाई पेंटिंग आर्ट। यह कला जितनी खूबसूरत है, इसके पीछे उतना ही बारीक काम व मेहनत है...
NMACC में डिस्प्ले की गई 56 फीट ऊंची 'कमल कुंज' पिचवाई पेंटिंग
इसकी खूबसूरती और प्रसिद्धि का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि नीता अंबानी के कल्चरल सेंटर N.M.A.C.C में 'कमल कुंज' नाम की 56 फीट ऊंची पिचवाई पेंटिंग डिस्प्ले की गई थी और कमल कुंज दुनिया की सबसे ऊंची पेंटिंग में से एक है। भारत के साथ-साथ, चीन-जापान जैसे कई देशों में पिचवाई पेंटिंग से जुड़े एग्जीबिशन लगाए जाते हैं।
इसके बावजूद भारत की ये शानदार हस्तकला, कही लुप्त होती जा रही हैं। चलिए इस कला के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं कि ये कब और कहां से शुरू हुई थी?
400 साल पुराना इतिहास, राजस्थान के नाथद्वारा की लोक कला
पिचवाई आर्ट की उत्पत्ति 400 साल पहले, राजस्थान के नाथद्वारा में हुई थी। यह नाथद्वारा की लोक हस्तकला है। कुछ लोग पिचवाई को पिछवाई कला भी कहते हैं। राजस्थान में 17वीं सदी से शुरू हुई इस चित्रकारी को आमतौर पर कॉटन के कपड़े पर किया जाता है। ये आर्ट खासतौर पर श्रीकृष्ण की भक्ति को समर्पित है। श्रीकृष्ण के जीवन, विभिन्न भावनाओं, मुद्राओं और पोशाकों को पिछवाई आर्ट के जरिए दर्शाया जाता है। इसी के साथ-साथ फूलों पत्तियों और मोर,गाय जैसे कलाकृतियां भी पिचवाई आर्ट में खूबसूरती से बनाई जाती हैं।
नुकीली नाक, बड़ी आंखें और सुगठित शरीर-पिचवाई पेंटिंग की पहचान
जैसे कि हमने पहले ही आपको बताया है कि ये आर्ट श्रीनाथ को समर्पित है। पिछवाई पेंटिंग भगवान कृष्ण के जीवन और उनके त्योहारों जैसे जन्माष्टमी, शरद पूर्णिमा, रास लीला और दिवाली सहित अन्य को दर्शाती हैं। पिछवाई कला की परिभाषित विशेषता मानव आकृतियों को चित्रित करने की विशिष्ट शैली है। उनकी नुकीली नाक, बड़ी आंखें और सुगठित शरीर ही इस आर्ट की खासियत है जिसे बनाने के लिए धैर्य की बहुत जरूरत होती हैं। डाई ब्रश से बारीक आकृतियों को भरा जाता है। पिचवाई पेंटिंग्स, मिनिएचर से लेकर बड़ी आकार की बनाई जा सकती हैं। इन दिनों मिनिएचर पिचवाई ट्रडीशनल ज्वैलरी भी कैरी की जा रही है। हाल ही में फैशन कंटेंट क्रिएटर मासूम मीनावाला ने भी पिचवाई ज्वैलरी पहनी थी। यह एकदम रॉयल लुक देती हैं।
धैर्य और कड़ी ट्रेनिंग के बाद ही निपुण हो पाते हैं पिचवाई आर्टिस्ट
नाथद्वारा में इस कला का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र वल्लभाचार्य है इसलिए इसे वल्लभ शैली भी कहते है। कहा जाता है उन्हीं के परिवार से इस चित्रकारी की शुरूआत की गई थी। इस कला को सीखने के लिए कड़ी ट्रेनिंग लेनी पड़ती हैं तब जाकर पिचवाई आर्टिस्ट, ब्रश- पेंसिल चलाने में, प्रिंटिंग चलाने में महारत हासिल कर पाते हैं लेकिन यह कला अब कहीं लुप्त होती जा रही है। जहां पहने 2000 आर्टिस्ट थे, वहीं अब कम होकर 300 रह गए हैं।
लुप्त होती जा रही भारत की हस्तकला विरासत
इन आर्टिस्ट को अपने काम का उतना मेहताना नहीं मिल पाता जितने वो हकदार होते हैं। कम रोजगार के चलते घर चलाना मुश्किल हो जाता है। जिसके चलते धीरे-धीरे आर्टिस्ट कम होते जा रहे हैं। इसी लिए ये आर्ट अब सिर्फ नाथद्वारा तक ही सीमित होकर रह गया है।
तो देखा आपने कितना खूबसूरत है पिचवाई आर्ट। भारत की इस विरासत को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि भारत की इस खूबसूरत कला को दुनिया भर में प्रसिद्धि के साथ कारीगरों को नई पहचान और रोजगार दिया जा सके।