पेरेंट्स बच्चों पर कई बार इतना दबाव बना देते हैं कि वह परेशान ही हो जाते हैं। परेशानी के चलते बच्चे तनाव में आकर गलत फैसले भी लेने शुरु कर देते हैं। परेशानी में उलझकर बच्चे गलत फैसले भी लेते हैं और तनाव में आ जाते हैं। पेरेंट्स के ज्यादा विकल्पों के चलते बच्चे सही फैसले भी नहीं ले पाते। तो चलिए आज आपको इस आर्टिकल के जरिए बताते हैं कि पेरेंट्स के ज्यादा विकल्प देने के कारण बच्चों पर क्या असर होता है....
डिसीजन फटीग होते हैं फैसले
पैरेंटिंग एक्सपर्ट्स इसे फैसले लेने का दबाव और डिसीजन फटीग कहते हैं। स्कूल संचालक होने के नाते क्रिस्टीन बच्चों और पेरेंट्स से भी लगातार जुड़े रहते हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों के पालन-पोषण के ट्रैंड बदलते ही रहते हैं। बच्चों को ज्यादा विकल्प देने के पीछे अच्छा विचार यह था कि वे भी खुद को परिवार का अहम हिस्सा समझ लें। इस पर विचार करते हुए एक्सपर्ट्स इस फैसले तक पहुंचे हैं। अब बच्चों से उनकी हर इच्छा के पूछना आम ही हो गया है। ज्यादा चिंता वाली बात यह है कि बच्चों के हर फैसले में उनकी मर्जी पूछी जा रही है। उदाहरण के लिए छोटे बच्चों को पेरेंट्स उन्हें व्यस्त रखने के लिए कई सारे खिलौने खरीदकर दे देते हैं और बच्चे के साथ समय बिताने लगते हैं। बहुत से लोग खिलौने देखकर वे विचलित हो जाते हैं और लगातार उलझन में रहते हैं कि किससे खेलें।
बच्चों के लिए हो सकता है नुकसानदेह
मनोवैज्ञानिक औएरिन वेस्टगेट कहते हैं इसमें कोई शक नहीं है कि विकल्प बच्चों को मजबूत बनाते हैं पर असाधारण नहीं। बच्चों से लगातार सवाल पूछकर उनकी आधिकारिता को बढ़ाना, नुकसानदेह हो सकता है। बच्चों में यह अपेक्षा करना कि वे हर फैसले पर तुरंत ही सहमति दे देंगे। पैरेंट्स और बच्चों के लिए अव्यवहारिक हो जाता है। यह बच्चा होने के सर्वोत्तम पहलू भी छीन लेता है। जरुरी है कि हम बच्चों को चिंता मुक्त जिंदगी दें और समझें कि पसंद से वैसे भी संतुष्टि नहीं मिलती बल्कि कई मामलों में इससे पछतावा होने की आशंका भी रहती है।
बच्चे होंगे खराब
मनोवैज्ञानिक एक्सपर्ट हीथर टेडेस्को कहती हैं कि - 'अगर पेरेंट्स से शाम 6 बजे पूछें कि वे डिनर में क्या लेंगे तो वे स्पष्ट नहीं बताएंगे। ऐसा संभव इसलिए है क्योंकि सुबह से शाम तक उन्होंने ऐसी चीजों के बारे में सैंकड़ों फैसले लिए होंगे जिसके नतीजे गंभीर हो सकते हैं। यदि बड़े होकर हम लोगों के लिए फैसलों को चुनना मुश्किल हो सकता है तो कल्पना करें कि इसका असर बच्चों पर क्या-क्या पड़ेगा। खासतौर पर ऐसे बच्चे जिनके मस्तिष्क अभी अपरिपक्व हैं और विकसित ही हो रहे हैं। र्हीथर के अनुसार, फैसले से जुड़ा दबाव हमें और हमारे बच्चों को खराब, जल्दबाजी में फैसले लेने के लिए प्रेरित कर सकती है।'