रंगों के त्योहार होली की आहट के बीच मथुरा जिले के मंदिरों में रंग पर्व का उल्लास चरम पर है। रोजाना सुबह-शाम सभी प्रमुख मंदिरों में ठाकुरजी के समक्ष अबीर-गुलाल भेंट किया जा रहा है और प्रसाद के रूप में उसे श्रद्धालुओं के ऊपर भी बरसाया जा रहा है।
सम्पूर्ण ब्रज मंडल के मंदिरों में बसंत पंचमी के दिन ही होली की शुरुआत हो जाती है। इसी दिन सभी शहर-कस्बों के प्रमुख चौराहों पर होली का डांढ़ा (लकड़ी का एक टुकड़ा, जिसके आसपास के दायरे में ही होली जलाई जाने वाली लकड़िया-कंडे इत्यादि जमा किए जाते हैं) गाड़ दिया जाता है।
बांके बिहारी मंदिर के सेवायत प्रह्लाद कृष्ण गोस्वामी ने बताया कि यही वह दिन होता है जब गोस्वामी समाज के लोग प्रतिदिन ठाकुरजी के समक्ष समाज गायन (होली के गीत) कर प्रभु को अपनी भावनाओं से अवगत कराते हैं और उन्हें होली की बधाई देते हैं। इसीलिए इस गायन को ‘बधाई गायन' भी कहते हैं। बसंत पंचमी से ही मंदिरों में ठाकुरजी को गुलाल भेंट किया जाने लगता है। इसी गुलाल को प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं पर भी उड़ाया जाता है।
मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, नन्दगांव, गोवर्धन, राधाकुंड, गोकुल, महावन, बलदेव आदि सभी तीर्थस्थलों पर होली का पर्व बसंत पंचमी से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा के पश्चचात अगले दिन तक जारी रहता है। इसमें कहीं बलदेव की कोड़ा मार, कहीं गोकुल के छड़ीमार, तो कहीं जाब-बठैन की सामूहिक नृत्य के रूप के हुरंगा, तो कहीं राधारानी की नानी के गांव मुखराई के ‘चरकुला नृत्य' के रूप में बदल जाती है।
27 फरवरी को बरसाना के लाड़िली जी मंदिर में लड्डू होली होगी। 28 फरवरी को नन्दगांव के हुरियार बरसाना की रंगीली गली में लठामार होली खेलने पहुंचेंगे तो अगले दिन एक मार्च को बरसाना के हुरियार नन्दगांव की हुरियारिनों के साथ होली खेलेंगे।ब्रज में होली मनाने देश विदेश से लोग आते हैं। अगर आप भी ब्रज की होली के रंग में रंगना चाहते हैं तो एक बार जरूर जाएं यहां।