गायत्री मंत्र का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र पढ़ने वाला व्यक्ति जीवन में कभी निराश नहीं होता। वह मानसिक, शारीरिक और भौतिक तल पर हमेशा स्वस्थ और सफल रहता है। गायत्री मंत्र पढ़ने से भला इतनी शक्ति मिलती कैसे है...?
साधू-संत और पुरातन बुजुर्गों के अनुसार हम जैसी वाणी का उपयोग करेंगे उसका असर हमारे मन पर जरूर पड़ता है, और कहते हैं न कि जैसा मन वैसा तन। इसी वजह से गीता में श्री कृष्ण जी ने हमेशा अच्छा और उच्च बोलने की सीख दी है, ताकि उन शब्दों का अच्छा असर हमारे मन पर पड़ सके। आखिर इसी मन में तो ईश्वर निवास करते हैं।
बात अगर करें गायत्री मंत्र के पीछे छिपे रहस्य की तो, आज आपको बताएंगे गायत्री मंत्र का विस्तार अर्थ, जिससे जानने के बाद आप भी हर रोज इसका उच्चारण आवश्य करेंगे।
ॐ भूर् भुवः स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
ॐ यानि सृष्टि के कर्ता-धरता यानि ईश्वर।
भूर्
भूर् से भाव वह सर्व शक्तिमान ईश्वर सभी के सांझे हैं, उनके लिए सभी एक समान और प्रिय हैं। दूसरे शब्दों में भूर् का अर्थ पृथ्वी से भी है, जहां हम पैदा हुए और जहां अपने आखिरी सांस तक रहेंगे। हमारा जन्म और मरण उस ईश्वर के हाथ है, वही इस धरती के निर्माता है।
भुवः
भुवः शब्द से भाव है कि ईश्वर धरती पर मौजूद हर प्राणी की रक्षा करते हैं, उनका ध्यान यहां रहने वाले हर प्राणी पर हर वक्त रहता है। हमारे सभी दुख और दर्द एक समान ईश्वर को दिखाई देते हैं, हम अपने हर सुख और दुख के कारण खुद हैं। हमारे कर्म इसके लिए जिम्मेदार हैं।
स्वः
स्वः शब्द का अर्थ है कि ईश्वर अपनी बनाई गई इस सृष्टि के खुद जिम्मेदार हैं, ईश्वर अपने द्वारा रचित इस धरती से बातचीत करने में भी पूरे सक्षम हैं।
तत्
तत् शब्द का अर्थ है 'यही', संस्कृत में इस शब्द का इस्तेमाल तीसरे व्यक्ति के लिए किया जाता है। आसान शब्दों में इस शब्द का मतलब निस्वार्थ होने से हैं, ईश्वर को हम प्राणियों से किसी भी चीज का लालच नहीं है। भगवान श्री कृष्ण जी ने गीता में भी तत् शब्द का उपयोग किया है, जिसके माध्यम से कृष्ण जी बताना चाहते हैं कि भगवान को अर्पण की गई कोई भी वस्तु बिना किसी स्वार्थ के हमें उन्हें अर्पित करनी चाहिए।
सवितु
सवितु शब्द का अर्थ भी इस पूरे ब्राहांड से जुड़ा है, इस ब्राहांड को बनाने को बनाए रखने में गायत्री मंत्र का ही सहारा है।
र्वरेण्यं
र्वरेण्यं का अर्थ मनुष्य की लालसा से है, ईशवर बता रहे हैं कि व्यक्ति हर वक्त धन की लालसा में लगा रहता है, मगर धन प्राप्त करने के बावजूद उसे संतुष्टि प्राप्त नहीं होता, मगर ईशवर का नाम ऐसा है, जिसे हर बार जपने के बाद वह पहले से भी ज्यादा संतुष्ट होने लगता है।
भर्गो
भर्गो शब्द का अर्थ ईश्वर की अपार पवित्रता से है। ईश्वर इतने पवित्र हैं कि वह अपनी शक्ति से अपवित्र चीजों को भी शुद्ध करने में समर्थ हैं। हमारे पाप और गलत कर्मों को केवल ईश्वर की समाप्त व माफ कर सकते हैं।
देवस्य
देवस्य शब्द का अर्थ आम भाषा में देवताओं के लिए ही किया जाता है। ईश्वर खुद से ऊपर भी किसी शक्ति में विश्वास रखते हैं, यही उनकी विनम्रता की खास निशानी है।
धीमहि
धीमहि शब्द को हम इंसानों के लिए समझते हैं, असल में कलयुग के दौर में हमारा मन इतना अपवित्र हो चुका है कि हमारा मन ईश्वर भक्ति में लगता ही नहीं। संस्कृत भाषा में इस शब्द का अर्थ है बुद्धि। ईश्वर की बात समझने और उस पर अम्ल करने के लिए हमारे पास साफ मन और बुद्धि दोनों का होना बहुत जरूरी है। तभी हम अपने जीवन के असल लक्ष्य को पा सकते हैं।
धियो
धियो शब्द का अर्थ है कि जब तक जीवन है दुख और सुख दोनों साथ चलेंगे, मगर जिन्हें ईश्वर की छू प्राप्त हुई है, उन्हें जीवन में मिलने वाले दुख-दर्द से कुछ खास असर नहीं पड़ेगा। ऐसे में व्यक्ति को भगवान के समक्ष दुखों में भी सुद्रिड़ रहने की मांग करनी चाहिए। ईश्वर इस मांग को जरूर पूरा करते हैं।
यो
यो शब्द के अर्थ हैं कि हमारी यह सारी प्रार्थना केवल ईश्वर के आगे है। उनसे बेहतर हमारे मन की मुराद और इच्छा को कोई नहीं समझ सकता।
नः
नः का अर्थ हमारी निस्वार्थता से है यानि भगवान के आगे प्रार्थना करते वक्त हम न केवल खुद के लिए बल्कि इस पूरे संसार के लिए सुख शांति की मांग करते हैं।
प्रचोदयात्
आखिर में प्रचोदयात् शब्द का शाब्दिक अर्थ है कि हम अपने इस संपूर्ण जीवन में भगवान से मार्गदर्शन की प्रार्थना करते हैं। गायत्री मंत्र का जाप करते वक्त इंसान भगवान के आगे प्रार्थना करता है कि आप हमारा सदैव साथ दें और हमें बुरे कर्मों से हमेशा बचाकर रखें।