नारी डेस्क: मंगलवार देर रात महाकुंभ में भगदड़ मचने से 30 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि 60 से अधिक लोग घायल हो गए। इस हादसे में अपनी पत्नी को खो चुके लखनऊ निवासी त्रिभुवन ने बताया कि यह भगदड़ अचानक हुई और इसके लिए कुछ लड़कों और पुलिसकर्मियों को जिम्मेदार ठहराया।
त्रिभुवन की व्यथा: 'अगर पता होता, तो कभी न जाते'
मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर त्रिभुवन अपनी पत्नी मंजू के साथ स्नान के लिए महाकुंभ पहुंचे थे, लेकिन उन्हें यह अंदाजा भी नहीं था कि यह यात्रा उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल देगी। पत्नी को खोने के गम में डूबे त्रिभुवन का कहना है, "अगर मुझे पता होता कि यह हादसा होगा, तो मैं कभी वहां नहीं जाता।"
कैसे हुई भगदड़?
त्रिभुवन के अनुसार, अचानक कुछ लड़के भीड़ के बीच में घुस आए और जोर-जोर से चिल्लाने लगे। उनकी हूटिंग सुनकर आसपास के लोग भी घबरा गए और वहां अफरा-तफरी मच गई। इसी बीच, पब्लिक का दबाव बढ़ता देख पुलिसकर्मियों ने बैरिकेडिंग हटा दी और रास्ता खोल दिया। इसके बाद भीड़ तेजी से आगे बढ़ने लगी, जिससे भगदड़ मच गई। त्रिभुवन का कहना है कि उन लड़कों और पुलिसकर्मियों की वजह से यह घटना हुई। उन्होंने मांग की कि अगर वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चेक की जाए तो असली दोषियों की पहचान हो सकती है और उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
प्रशासन की लापरवाही पर उठे सवाल
त्रिभुवन ने मेला प्रशासन पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि अगर सभी रास्ते खोल दिए जाते, तो श्रद्धालु अन्य मार्गों से निकल सकते थे और इतनी भीड़ एक जगह नहीं इकट्ठा होती। इससे हादसा टल सकता था।
18 घंटे की संघर्ष भरी यात्रा
त्रिभुवन के साले बुधवार दोपहर 2:45 बजे प्रयागराज से लखनऊ के लिए निकले, लेकिन रास्ते में भारी भीड़ के कारण उन्हें वैकल्पिक मार्ग अपनाना पड़ा। प्रतापगढ़ और रायबरेली होते हुए उन्हें लखनऊ पहुंचने में कुल 18 घंटे का समय लगा।
विधायक और प्रशासन ने दी सांत्वना
गुरुवार सुबह स्थानीय विधायक ओपी श्रीवास्तव और एसडीएम त्रिभुवन के घर पहुंचे। उनके साथ कई सरकारी अधिकारी भी थे, जिन्होंने त्रिभुवन और उनकी पत्नी मंजू की जानकारी दर्ज की और मुआवजे के लिए उनके बैंक खाते की जानकारी ली।
सीमा विवाद में उलझी पुलिस
त्रिभुवन के दामाद विकास तिवारी ने बताया कि बुधवार शाम मंजू पांडे का शव प्रशासन द्वारा एंबुलेंस से भेजा गया। एक सिपाही के हाथ से पंचनामा भरवाकर शव को लखनऊ भेजा गया था। लेकिन, जब शव लखनऊ पहुंचा, तो इंदिरानगर और गाजीपुर थाने की पुलिस के बीच सीमा विवाद हो गया और मामला आधे घंटे तक उलझा रहा। परिवारजन पोस्टमॉर्टम करवाने को तैयार थे, लेकिन पुलिस ने इसकी जरूरत नहीं बताई और मना कर दिया।
क्या प्रशासन लेगा कोई ठोस कदम?
इस हादसे ने प्रशासन की तैयारियों और सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। त्रिभुवन और अन्य पीड़ितों के परिजन न्याय की मांग कर रहे हैं। क्या प्रशासन इस मामले में कार्रवाई करेगा या फिर यह भी अन्य मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।