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भगवान शिव के इस मंदिर में नहीं विराजित है नंदी बाबा, जानें वजह

  • Edited By neetu,
  • Updated: 24 Jul, 2020 03:32 PM
भगवान शिव के इस मंदिर में नहीं विराजित है नंदी बाबा, जानें वजह

भारत देश में बहुत ही धार्मिक स्थल स्थापित है। इनमें से कई मंदिरों के पीछे कई रहस्य और कथा भी छिपी हुई है। वैसे तो आपने बहुत से शिव मंदिर देखें होंगे, जिसमें शिव जी की मूर्ति के साथ उनके गणों में प्रिय नंदी बाबा भी विराजित होते है। नंदी भगवान शिव के प्रिय होने के साथ उनके वाहन भी है। इसलिए उन्हें गणराज माना जाता है। मगर क्या आपने कभी सुना है कि किसी शिव मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति के साथ नंदी की प्रतिमा न हो लेकिन असम में एक ऐसा मंदिर है जहां शिव जी अपने प्रिय गण के बिना विराजित है। 

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कहां है मंदिर?

भगवान शिव का यह मंदिरनासिक में गोदावरी नदी के किनारे पर स्थित है। यह कपालेश्वर महादेव मंदिर के नाम मशहूर है। पुराणों के अनुसार भगवान शिवजी ने यहां आकर निवास किया था। माना जाता है कि पूरे देश में यह इकलौता मंदिर है जहां भगवान शिवजी अपनी प्रिय गण नंदी के बिना विराजमान है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा छिपी होने से जानते है उसके बारे में... 

क्या है कथा?

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्म के पांच मुख थे। जिनमें से चार मुख भगवान की पूजा और एक बुराई करता था। इस कारण से एक दिन शिव जी को गुस्सा आ गया तो उन्होंने क्रोध में आकर ब्रह्म जी का बुराईकरने वाला मुख काट कर शरीर से अलग कर दिया। ऐसा करने से भगवान शिव को ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। अपेन इस पाप से मुक्ति पाने के ल‍िए शिवजी ने पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाए। मरगर उन्हें इससे मुक्ति दिलाने वाला कोई नहीं मिला। फिर वे ऐसे ही लगातार घूमते-घूमते सोमेश्वर पहुंचे। वहां पर उन्हें एक बछड़ा मिला। उसने शिवजी पर चढ़े ब्रह्महत्‍या के पाप से मुक्ति दिलाने का उपाया सुझाया। वह महादेव को उस जगह पर लेकर गया जहां पर उन्‍हें इस ब्रह्महत्‍या के पाप से मुक्ति मिल सकती थी। 

कौन सा था स्थान?

वह बछड़ा भगवान शिव को जिस स्थान पर लेकर गया उस जगह का नाम रामकुंड था। यह स्थान गोदावरी नदी के पास स्थित था। वहां पहुंच कर बछड़े ने भगवान शिव को नदी में स्न्नान करने को कहा। कहा जाता है कि उस पवित्र नदी में स्न्नान करते है कि भगवान शिव पाप मुक्त हो गए थे। 

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कौन था बछड़ा?

असल में, जिसने शिवजी को इस पाप से मुक्ति दिलाने का उपाय वह कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव का प्रिय गण नंदी था। वहीं बछड़े का रूप लेकर उनकी सहायता करने पहुंचा था।

क्यों नहीं मंदिर में नंदी बाबा की मूर्ति?

ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिलने के बाद शिव जी पता चला कि उनकी सहायता करने वाला उनका अतिप्रिय गण नंदी था। ऐसे में उन्होंने नंदी बाबा को अपना गुरू मान लिया। अब नंदी बाबा शिव जी के गुरु बन गए थे।  इसीलिए भगवान शिव ने अपने इस मंदिर में उनको स्वयं के सामने बैठने से मना कर दिया। इसी कारण इस मंदिर में महादेव तो विराजमान है मगर उनके प्रिय नंदी नहीं है। 

किस नाम से जाना जाता है मंदिर?

यह कपालेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के नीचे पवित्र गोदावरी नदी बहती बहुत  सुंदर लगती है। इसी में एक प्रसिद्ध रामकुंड बना है।  जहां शिव जी ब्रह्महत्या से पाप मुक्त हुए थे। माना जाता है कि राजा राम ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध इसी कुंड में किया था। इस मंदिर के ठीक सामने गोदावरी नदी को पार करने पर एक प्राचीन व सुंदर भगवान विष्णु जी का नारायण मंदिर भी स्थापित है। 

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हर साल लगता है मेला

यहां हर साल महाशिवरात्रि और सावन के हर सोमवार को भारी मेला लगता है। भारी मात्रा में लोग भगवान शिव के दर्शन करने आते है। साथ ही हर साल यहां पर हरियल महोत्सव किया जाता है। इस दिन भगवान शिव और नारायण जी के मुखौटे गोदावरी नदी पर लाकर दोनों को एक-दूसरे से म‍िलाया जाता है। दूर-दूर से लोग आकर भगवान शिव की पूजा कर अपने सुखी जीवन की कामना करते है। 

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