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बाल विवाह तो कभी अत्याचार... 2 रु कमाने वाली कल्पना सरोज कैसे बनी करोड़ों की मालकिन

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 27 Mar, 2021 02:50 PM
बाल विवाह तो कभी अत्याचार... 2 रु कमाने वाली कल्पना सरोज कैसे बनी करोड़ों की मालकिन

कहते हैं बूंद बूंद से सागर बनता है, यह शब्द बिल्कुल सही है। कोई भी चीज रातों रात नहीं हो सकती । अगर आप कहेंगे कि आप आज मेहनत करें और अगली सुबह अमीर बन जाएं? तो ऐसा तो बस फिल्मों में होता है हां आप मेहनत करते जाएं और आपको उसका फल एक न एक दिन जरूर मिलेगा। आज हम आपको जिस महिला की कहानी बताने जा रहे हैं उनके लिए भी जिंदगी जीना आसान नहीं था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज वह करोड़ों की मालकिन हैं।

छोटे से गांव की रहने वाली कल्पना

कल्पना का जन्म महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गाँव रोपरखेड़ा में हुआ। वह जिस परिवार में जन्मी वह काफी गरीब था। घर का खर्चा भी बहुत मुश्किल से चलता था। कल्पना सरकारी स्कूल में पढ़ती थीं और वह हमेशा पढ़ाई में आगे थी। लेकिन वह एक दलित थीं जिसके कारण स्कूल में उन्हें कईं समस्याएं झेलनी पड़ीं।

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12 साल की उम्र में कर दिया विवाह

समाज वालों की बातों में आकर कल्पना के परिवार वालों ने उनकी शादी कर दी। तब वह 7वीं में थी। शादी के बाद उनकी पढ़ाई भी छुड़वा दी। जिस लड़के के साथ उनकी शादी करवाई वह उम्र में भी उनसे बड़ा था।

ससुराल वालों ने किया अत्याचार

कल्पना की मानें तो वह जब अपने ससुराल में गईं तो उन्हें वहां कईं यातनाएं झेलनी पड़ी। वह लोग उन्हें खाना नहीं देते थे। बाल पकड़ कर मारते थे। ऐसा बर्ताव करते थे कि कोई जानवर के साथ भी ऐसा न करे। इन सभी से कल्पना की हालत बहुत खराब हो चुकी थीं। लेकिन फिर एक बार कल्पना के पिता उनसे मिलने आए तो बेटी की यह दशा देख उनहोंने समय नहीं बर्बाद किया और गांव वापिस ले आए।

जब खुद का जीवन अंत करने की सोची

कल्पना वापिस अपने गांव आ गईं लेकिन वो समय ऐसा था जब अगर एक महिला शादी के बाद यूं घर छोड़कर आए तो उसके साथ काफी बुरा बर्ताव किया जाता था। कल्पना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। समाज वाले और गांव वाले उन्हें ऐसी नजरों से देखते थी कि वह समाज से अलग हो। पिता ने पढ़ाई करवाने के लिए दोबारा कहा तो कल्पना का उसमें भी मन नहीं लगा। एक बार कल्पना ने जहर की बोतल खरीदी और उसे पी लिया। कल्पना के मुंह से झाग निकलती देख उनकी बुआ उन्हें डॉक्टर के पास ले गईं। मौत के दरवाजे से वापिस आईं कल्पना के जीवन में अभी मरना कहां लिखा था और वह बच गईं।

फिर शुरू हुई नई जिंदगी और निकल गईं मुंबई

इस एक घटना के बाद कल्पना की जिंदगी काफी बदल गईं थीं। उन्हें जैसे इस बात की समझ आने लगी हो कि भगवान ने उन्हें कुछ करने का मौका दिया है। इसके लिए उन्होंने नौकरी की तलाश की लेकिन पढ़ाई कम होने के कारण कहीं नौकरी नहीं मिली इसके लिए वह मुंबई निकल गईं।

16 साल की उम्र में 2 रूपए से की शुरूआत

मुंबई कल्पना अपने चाचा के पास रहने लगी। यहां वह एक कपड़े के मिल में काम करने लगीं। वहां वह धागे काटने का काम करती थीं जिसके लिए उन्हें 2 रूपए मिलते थे। कल्पना के बाद उनका परिवार भी मुंबई में आकर रहने लगा। सब कुछ सही चल रहा था कि एक दिन ऐसा आया जिसने फिर से कल्पना की जिंदगी में दुख के रंग भर दिए।

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बीमारी के कारण हुई बहन की मौत

दरअसल कल्पना की बहन काफी बीमार रहने लगी और गरीबी के कारण उनका इलाज भी संभव नहीं था जिसके कारण उनकी मौत हो गई। उस दिन कल्पना को इस बात की समझ लगी कि पैसे की क्या कीमत है।  और  वह अब हमेशा के लिए गरीब खत्म कर देना चाहती थीं।

बिजनेस लाइन की ओर बढ़ाया कदम

गरीबी को दूर करने के लिए कल्पना ने 16-16 घंटे काम करना शुरू किया। उन्होंने अपने ही घर में मशीनें लगवाईं और दिन रात मेहनत की। बिजनेस के लिए उन्होंने लोन लेने की सोची लेकिन वहां भी उन्हें पैसे खिलाने को कहा गया लेकिन कल्पना इसके लिए नहीं मानी। फिर एक दिन कल्पना ने इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए लोगों के साथ मिल कर एक संगठन बनाया जो लोगों को लोन दिलाने में और सरकारी योजनाओं के बारे में बताने में मदद करने लगा।

22 साल की उम्र में फर्नीचर का बिजनेस किया शुरू

इसके बाद जब कल्पना 22 साल की हुईं तो उन्होंने 50 हजार का लोन लिया और फर्नीचर का बिजनेस शुरू किया। यह एक तरह से कल्पना की जिंदगी में नया मोड़ था। इसमें उन्हें काफी सफलता मिली। कल्पना यहीं नहीं रूकी बल्कि उन्होंने एक ब्यूटी पार्लर भी खोला।

जब रातों-रात बदली किस्मत

एक बार एक आदमी कल्पना के पास आया और अपना प्लाट 2.5 लाख का बेचने के लिए कहा। उस वक्त कल्पना के पास इतने पैसे नहीं थे लेकिन उन्होंने अपने जमा किए पैसे से और उधार मांगकर 1 लाख रूपए दिए लेकिन बाद में उन्हें पता लगा कि वह इस जमीन पर कुछ नहीं बना सकती क्योंकि वह विवादस्पद जमीन है। कल्पना ने हार नहीं मानी और वह इसके लिए लड़ीं और जमीन से जुड़ा यह मसला भी सुलझाया और वह जमीन रातों रात ही 50 लाख की हो गई। इतना ही नहीं उनकी तो सुपारी भी दे दी गई थी लेकिन वह गुंडे पकड़े गए थे। इसके बाद कल्पना ने कंस्ट्रक्शन लाइन में जाने की सोची।

जब कल्पना ने कंपनी की बदल दी तस्वीर

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कमानी ट्यूब्स लिमिटेड को घाटे से मुनाफे की राह पर लेजाने वाली कल्पना के लिए जिंदगी का यह समय बहुत चेलेजिंग था।इस कंपनी की स्थापना मशहूर उद्योगपति रामजी भाई कमानी ने 1960 में की थी लेकिन फिर कुछ पारिवारिक झगड़ों और यूनियन बाजी की वजह से कंपनी घाटे में जाने लगी। धीरे-धीरे कंपनी पूरी तरह से बंद हो गई। फिर साल 2000 में कंपनी के कुछ मज़दूर कल्पना के पास आए और कंपनी को चलाने की बात कही। कल्पना ने हां तो कर दी लेकिन यह उनके लिए आसान कहां था? उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वह इतने पैसे कहां से लाएंगी। इसके लिए उन्होंने 10 लोगों की एक टीम बनाई और योजना तैयार की और आईडीबीआई बैंक को दिखाई। फिर साल 2000 से 2006 तक मामला अदालत में चलता रहा और 2006 को योजना काम आई और फिर कानूनी रूप से कंपनी का चेयरपर्सन घोषित कर दिया गया। इसके बाद वह ही इस कंपनी के काम को देखने लगीं और आज कंपनी करोड़ों में कमाती हैं।

मिल चुका है पद्म श्री सम्मान

आपको बता दें कि कल्पना को उनकी उपलब्धि के लिए पद्म श्री सम्मान भी मिल चुका है। हालांकि कल्पना का इतिहास कोई बैंकिंग लाइन का नहीं रहा है लेकिन फिर भी उन्होंने कंपनी को बहुत अच्छे से संभाला।  इसके लिए सरकार ने उन्हें भारतीय महिला बैंक के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में शामिल किया।

वाकई कल्पना की कहानी हमें बहुत कुछ सिखाती है। जरूरी  नहीं कि सफलता के लिए आपके पास पैसे अच्छी पढ़ाई हो या फिर आप अमीर हों। बस आपमें कुछ कर गुजरने की इच्छा और सकारात्मक सोच होनी चाहिए। तभी तो आप सपने पूरे कर सकती हैं।

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