दुनिया के सबसे ज्यादा आबधी वाले देश के रूप में चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत में 1.4 बिलियन से ज्यादा लोग हो गए हैं। मजेदार बात ये है कि भारत के migrants जो बाहर दूसरे देशों में सेटल है वो भी पड़ोस की चीनी साथियों से कहीं ज्यादा फेमस भी हैं। साल 2010 के बाद जब भारतीय डायस्पोरा (Diaspora) दुनिया में सबसे बड़ा रहा है, और भारत सरकार के लिए एक शक्तिशाली संसाधन हैं।
2020 के संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम अनुमानों के अनुसार आज दुनिया भर में फैले 281 मिलियन प्रवासियों (Migrants) में से- आमतौर पर उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो उस देश से बाहर रहते हैं, जहां पर वे पैदे हुए- ऐसे लगभग 18 मिलियन भारतीय हैं । मैक्सिकन प्रवासियों, जो दूसरे बड़े समूह में शामिल हैं, की संख्या लगभग 11.2 मी है। विदेश में चीनी 10.5 मिलियन पर आ जाता है।
यह समझना कि कैसे और क्यों भारतीयों ने विदेशों में सफलता प्राप्त की है, जबकि चीनियों ने संदेह बोया है, भू-राजनीतिक दोषों (geopolitical faultlines) को उजागर करता है। दोनों समूहों की तुलना करने से भारतीय उपलब्धि की सीमा का भी पता चलता है। प्रवासी (Migrants) भारतीयों की जीत भारत की छवि को बेहतर करती है और इसके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भी लाभ पहुंचाती है।
प्रवासियों का अपनी मातृभूमि के साथ विदेशों में पैदा हुए वंशजों की तुलना में ज्यादा मजबूत संबंध होता है, और इसलिए वे अपने गोद लिए गए घरों और अपने जन्मस्थानों के बीच महत्वपूर्ण संबंध बनाते हैं। 2022 में भारत की आवक रेमिटेंस ने लगभग $108bn का रिकॉर्ड बनाया, जो कि जीडीपी का लगभग 3% है, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में ज्यादा है।
बड़ी संख्या में दूसरी-, तीसरी- और चौथी पीढ़ी के चीनी विदेशों में रहते हैं, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया, अमेरिका और कनाडा में। लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई अमीर देशों में भारत में जन्मी आबादी चीन में जन्मी आबादी से कहीं ज्यादा है।
भारतीयों की है विदेशों में बेहतर पकड़
जैसे-जैसे भारत की आबादी आने वाले दशकों में बढ़ेगी, इसके लोग बेहतर नौकरियों की तलाश में और भारत की भयंकर गर्मी से बचने के लिए विदेशों में जाना जारी रखेंगे और धीरे- धीरे विदेशों में अपनी पकड़ मजबूत करेंगे। 2022 में अमेरिका के 73% एच-1बी वीजा, जो कंप्यूटर वैज्ञानिकों जैसे "विशेष व्यवसायों" में कुशल श्रमिकों को दिए जाते हैं, भारत में पैदा हुए लोगों द्वारा जीते गए। वहीं भारतीय प्रवासी राजनीति और नीति की दुनिया में भी फल-फूल रहे हैं। जॉन्स हॉपकिन्स के शोधकर्ताओं ने ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में भारतीय विरासत के 19 लोगों की गिनती की, जिनमें प्रधान मंत्री ऋषि सुनक भी शामिल थे। उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई संसद में छह और अमेरिका की कांग्रेस में पांच की पहचान की। अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का पालन-पोषण उनकी तमिल भारतीय मां ने किया। और पश्चिमी भारत में पुणे में पैदा हुए अजय बंगा को एक दशक से अधिक समय तक मास्टरकार्ड चलाने के बाद पिछले महीने विश्व बैंक का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था।
अमेरिक- चीन के संबंध
इसके अलावा, जैसे-जैसे अमेरिका चीन के साथ एक नए शीत युद्ध की ओर बढ़ रहा है, पश्चिमी लोग देश को दुश्मन के रूप में देखते हैं। चीनी शहर वुहान में शुरू हुई कोविड-19 महामारी ने शायद मामले को और बदतर बना दिया। हाल में अमेरिका के ऊपर एक चीनी जासूस-गुब्बारे की उपस्थिति, और इस महीने की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने द्वीप पर एक इलेक्ट्रॉनिक-ईवसड्रॉपिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए क्यूबा सरकार के साथ एक समझौता किया था-ने चीन की छवि को और खराब कर दिया है।
प्रवासी भारतीय ही यह सुनिश्चित करते हैं कि न तो भारत और न ही पश्चिम (West ) दूसरे को छोड़े। पीएम मोदी जानते हैं कि वह West का समर्थन खोना बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं और अलग-अलग भारतीयों को पक्ष लेने के लिए मजबूर करना सवाल से बाहर है। ऐसे समय में जब चीन और उसके दोस्त अपने प्रतिद्वंद्वियों द्वारा निर्धारित विश्व व्यवस्था का सामना करना चाहते हैं, पश्चिम के लिए भारत को पक्ष में रखना महत्वपूर्ण है।