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विश्व बैंक का बड़ा खुलासाः भारत पर आज भी अभिशाप बनी हुई दहेज प्रथा

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 06 Jul, 2021 04:21 PM
विश्व बैंक का बड़ा खुलासाः भारत पर आज भी अभिशाप बनी हुई दहेज प्रथा

दहेज देना और स्वीकार करना सदियों पुरानी भारतीय परंपरा है, जो आज भी चली आ रही है। जहां दुल्हन के माता-पिता दूल्हे के परिवार को नकद, कपड़े और आभूषण उपहार में देते हैं वहीं, लड़की वाले भी इसे आसानी से स्वीकार कर लेते हैं। यही नहीं, कुछ लड़के वाले तो शादी ही दहेज की शर्तों पर करते हैं। यह प्रथा, जिसे अक्सर एक सामाजिक बुराई के रूप में वर्णित किया जाता है ना सिर्फ भारत फलती-फूलती रही है बल्कि इसने महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा को भी बढ़ावा दिया है बल्कि कई बार तो इसके कारण मौत भी हो जाती है।

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विश्व बैंक के एक शोध में सामने आया कि पिछले कुछ दशकों से भारतीय गांवों में दहेज प्रथा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाया है। शोधकर्ताओं ने 1960 से 2008 के बीच हुई 40,000 ग्रामीण शादियों का आंकलन किया, जिसमें सामने आया कि 1961 में दहेज प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करने के बाद भी 95% शादियों में दहेज दिया गया। इनमें सवर्ण जातियों ने सबसे अधिक दहेज दिया जबकि इसके बाद ओबीसी, एससी और एसटी का नाम है।

7 गुणा अधिक खर्च करते हैं दूल्हन वाले

शोधकर्ता ने कीमती तोहफों व शादी में खर्च में खर्च होने वाले पैसे की जानकारी भी जुटाई, जिसमें दूल्हे -दुल्हन के परिवार की ओर से किए खर्च में बड़ा अंतर दिखा। दुल्हे के परिवार ने दुल्हन के परिवार के लिए उपहारों में औसतन 5,000 रु खर्च किए जबकि दुल्हन की ओर से रकम व तोहफों के लिए करीब 7 गुणा ज्यादा (करीब 32,000 रु) खर्चा किया गया। इसका मतलब है कि दोनों परिवारों के बीच शादी के खर्च में औसतन 27,000 रु का अंतर था। दुल्हन के परिवार वाले आय का एक बड़ा हिस्सा दहेज के लिए खर्च करते हैं।

सब बदला, लेकिन दहेज प्रथा नहीं

विश्व बैंक रिसर्च के अनुसार, आय के कारण ग्रामीण भारत में दहेज कम हुआ है लेकिन यह सिर्फ औसत दावा है। साल 2008 से अब तक भारत में बहुत कुछ बदल गया है लेकिन दहेज भुगतान या पैटर्न में बदलाव के कोई संकेत नहीं है। यह अध्ययन 17 भारतीय राज्यों पर आधारित हैं, जहां भारत की 96% आबादी रहती है। इसमें ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है, जहां भारत की बहुसंख्यक ग्रामीण आबादी रहती है।

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केरल की स्थिति सबसे खराब

केरल में 1970 के दशक से दहेज का चलन तेजी से बढ़ा है और पिछले कुछ वर्षों में सबसे अधिक दहेज यहीं दिया-लिया गया। वहीं हरियाणा, गुजरात और पंजाब में भी दहेज की दर में काफी वृद्धि हुई। हालांकि, ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में दहेज प्रथा में काफी कमी आई है।

सभी धर्मों में दहेज प्रथा प्रचलित

पिछले कुछ सालों से हिंदुओं और मुसलमानों के मुकाबले ईसाइयों व सिखों के बीच दहेज में वृद्धि देखी गई। अनुमान के अनुसार, 19500-1999 के बीच भारत में दहेज भुगतान का कुल मूल्य लगभग 1/4 ट्रिलियन डॉलर रहा है। भारत आबादी का एक बड़ा हिस्सा दहेज के रूप में कैश, गहनें, कपड़े और मूल्यवाद वस्तुएं देता आ रहा है, जिसमें बदलाव की कोई संभावना नहीं है।

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भारत में विवाह

. भारत में लगभग सभी विवाह एकांगी होते हैं, जिसमें तलाक की दर 1% से भी कम है।
. 1960 से 2005 के बीच 90% से अधिक शादियों में माता-पिता ने वर/वधू का जीवनसाथी चुनने में अहम भूमिका निभाई।
. 90% से अधिक जोड़े शादी के बाद पति के परिवार के साथ रहते हैं
. 85% से अधिक महिलाएं अपने ही गांव के बाहर किसी से शादी करती हैं
. 78.3% शादियां एक ही जिले में होती हैं

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