छोटे बच्चों के यूरिन से कपड़े या बिस्तर खराब न हो, इसलिए पैरेंट्स ज्यादातर उन्हें डायपर पहना कर रखते हैं। इसका चलन आए दिनों में बहुत ज्यादा बढ़ गया है। वहीं पिछले समय में बच्चों को पहनाए जाने वाले कपड़े की लंगोट की तुलना डायपर पहनना ज्यादा आसान है। उसे कपड़े की तरह बार- बार धोना- सुखना भी नहीं पड़ता है। लेकिन क्या आपको पता है कि डायपर पहनाकर आप अपने बच्चे की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जी हां, दिल्ली के AIIMS के डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों को डायपर पहनने से उनकी किडनी पर बुरा असर पड़ता है। वहीं अगर डायपर टाइट हो तो उससे भी किडनी प्रभावित होती है।
20 सालों से तेजी से बढ़ा है डायपर का चलन
पिछले कुछ सालों में बच्चों को डायपर पहनाने का चलन बढ़ गया है। अगर पति- पत्नी वर्किंग हैं तो अपनी सहूलियत के लिए बच्चों को डायपर में रखते हैं। लेकिन डॉक्टर्स का कहना है कि नवजात या कम उम्र के बच्चों को लगातार डायपर में रखकर पैरेंट्स उनकी नेचर कॉल की इच्छा को दबा रहे हैं।
किडनी की बीमारी का रहता है खतरा
दिल्ली एम्स की एक्सपर्ट की मानें तो हर 300 में से 1 बच्चे के यूरिन का रास्ता सीधा नहीं होता है। सर्जरी के जरिए ऐसे बच्चों के यूरिन का रास्ता सीधा नहीं किया जा सकता है तो ये बीमारी की वजह बन सकता है। इन सब का सीधा असर किडनी पर पड़ता है। कई मामलों में किडनी की सर्जरी की भी जरूरत पड़ती है।
स्किन डिजीज जैसी कई बीमारियों का खतरा
एक्सपर्ट्स का कहना है कि डायपर बनाने में सेल्यूलोज़, पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीथीन और माइक्रो फ़ाइबर्स का इस्तेमाल किया जाता है। इससे बच्चों की नाजुक स्किन पर रैश, स्किन डिजीज़, अस्थमा और लिवर डैमेज जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं। वहीं एक बच्चे का डायपर हर 2 घंटे में बदलना चाहिए। वहीं डायपर बदलते वक्त बच्चे के प्राइवेट पार्ट को अच्छे से साफ करें, ताकि किसी तरह के गीलापन न रहे। वहीं कुछ देर के लिए बच्चों को बिना डायपर के भी रहने देना चाहिए ताकि स्किन खुलकर सांस ले सके। कभी- कभी बच्चे को हल्की पैंट या सूती कपड़े की लंगोट में भी छोड़ें।