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मां सिद्धिदात्री का भगवान शिव से गहरा रिश्ता, सृष्टि की रचना में दिया था बड़ा सहयोग

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 13 Oct, 2021 04:50 PM
मां सिद्धिदात्री का भगवान शिव से गहरा रिश्ता, सृष्टि की रचना में दिया था बड़ा सहयोग

नवरात्रि का नौवां और आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा को समर्पित है। सिद्धि शब्द का अर्थ है अलौकिक शक्ति और धात्री का अर्थ है पुरस्कार देने वाला। माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री सभी दिव्य आकांक्षाओं को पूरा करती हैं। मां सिद्धिदात्री को पूर्णता की दाता के रूप में जाना जाता है। वह अपने भक्तों को ज्ञान का आशीर्वाद देती हैं और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करती हैं। मां को सिद्धियों की स्वामिनी भी कहा जाता है क्योंकि उनकी अराधना सेसभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। राक्षस भी सिद्धियां प्राप्त करने के लिए मां की पूजा करतें हैं।

माता सिद्धिदात्री का स्वरूप

कमल पर विराजमान मां सिद्धिदात्री शेर की सवारी करती हैं। उनक दाहिने में गदा, दूसरे में चक्र तथा दोनों बाएं हाथ में शंख व कमल का पुष्प है। मां सिद्धिदात्रि सभी देवताओं से घिरी हुई हैं।

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मां की जन्म कथा

देवी पुराण के अनुसार, देवी कुष्मांडा ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। उन्होंने ब्रम्हा - सृष्टि की ऊर्जा, भगवान विष्णु - जीविका की ऊर्जा और भगवान शिव - विनाश की ऊर्जा का निर्माण किया। जब वे बन गए तो भगवान शिव ने मां कुष्मांडा से उन्हें पूर्णता प्रदान करने के लिए कहा। मां कुष्मांडा ने एक और देवी मां सिद्धिदात्री की रचना की, जिसने भगवान शिव को 18 प्रकार की पूर्णता प्रदान की। इनमें भगवान कृष्ण द्वारा वर्णित पूर्णता के 10 माध्यमिक रूपों के साथ-साथ अष्ट सिद्धि (पूर्णता के 8 प्राथमिक रूप) शामिल हैं।

अब, भगवान ब्रह्मा को शेष ब्रह्मांड बनाने के लिए कहा गया था। चूंकि उन्हें सृष्टि के लिए एक पुरुष और एक महिला की आवश्यकता थी, इसलिए उन्हें यह कार्य बहुत चुनौतीपूर्ण लगा। उन्होंने मां सिद्धिदात्री से प्रार्थना की और मदद करने को कहा। भगवान ब्रम्हा के अनुरोध पर मां सिद्धिदात्री ने भगवान शिव के शरीर के आधे हिस्से को एक महिला के शरीर में बदल दिया इसलिए भगवान शिव को अर्धनारीश्वर (अर्ध - आधा, नारी - महिला) के भी कहा जाता है। तब भगवान ब्रह्मा ने शेष ब्रह्मांड के साथ-साथ जीवित प्राणियों की रचना की।

मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि

. चूंकि यह नवरात्रि पूजा का अंतिम दिन है, इसलिए इस दिन को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मां को में नौ फूल, नौ विभिन्न प्रकार के फल, नौ विभिन्न प्रकार के सूखे मेवे भी चढ़ाए जाते हैं
. नवरात्रि के आखिर दिन कंजक पूजन भी किया जाता है। इस दिन कन्याओं की पूजा करने के साथ उन्हें चुनरी, प्रसाद और गिफ्ट्स जरूर दें। इससे मां दुर्गा प्रसन्न होती है।
. आखिर दिन हवन में मां सिद्धिदात्री के साथ सभी देवी-देवताओं की के नाम से अहुति दें और सभी श्लोक मंत्र का जाप करें। साथ ही देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” का 108 बार जाप करें।

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कैसे करें मां को प्रसन्न?

. देवी मां को बैंगनी रंग पसंद है क्योंकि यह रंग अध्यात्म का प्रतीक है। मां को लाल और पीला रंग भी अति प्रिय है।
. मां को उनका मनपसंद भोग नारियल, खीर, नैवेद्य और पंचामृत हैं। नौवीं के दिन कंजक पूजन में फल, चना-पूड़ी, खीर, नारियल और हलवा बांटें। साथ ही पूजा के बाद मां को तिल या उससे बनी किसी चीज का भोग जरूर लगाएं। मां को आंवला व अनार का भोग लगाना भी शुभ माना जाता है। 
. पूजा करने के बाद गुड़हल के पुष्‍प चढ़ाए जाते हैं। इससे श्रद्धालुओं पर मां की कृपा बरसती है।

मां सिद्धिदात्रि का ध्यान

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

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मां सिद्धिदात्रि  का स्तोत्र पाठ

कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

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