भारत की प्रतिनिधि यास्मीन अली हक ने कहा है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच मासिक धर्म को लेकर चुप्पी की संस्कृति और प्रबल हुई है तथा इस चुप्पी को तोड़ना होगा। इसके साथ ही इससे जुड़े नकारात्मक सामाजिक नियमों को बदलना अब और जरूरी हो गया है। आज‘मासिक धर्म स्वच्छता दिवस' को तौर पर हक ने कहा, "कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच मासिक धर्म को लेकर चुप्पी की संस्कृति और प्रबल हुई है। समाज के वंचित तबकों की लाखों महिलाएं एवं लड़कियों के लिए गरिमा के साथ मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बनाए रखना और स्वयं को सुरक्षित रखना काफी मुश्किल हो गया है।''
इसके साथ ही यूनिसेफ ने हक के हवाले से जारी बयान में कहा कि कई महिलाओं के पास काम नहीं है, कई महिलाएं घर से दूर हैं और मासिक धर्म के समय उपयोग किए जाने स्वच्छता संबंधी चीजें उन्हें मिल नही पा रही।
उन्होंने कहा, ‘‘अब इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी को तोड़ना, समाज में जागरुकता पैदा करना और इसके साथ ही नकारात्मक सामाजिक नियमों को बदलना अब पहले से कई गुणा जरूरी हो गया है।'' यूनिसेफ ने मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता संबंधी जागरुकता बनाएं रखने के लिए सप्ताह भर ‘रेडडॉटचैलेंज' की मुहिम शुरू की थी। इसे सोशल मीडिया पर अच्छी प्रतिक्रया मिली है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि मासिक धर्म से संबंधित स्वच्छता की महत्ता और किशोरियों के सामने आने वाली समस्याओं को रेखांकित करने के लिए ‘मासिक धर्म स्वच्छता दिवस' से पहले ही मुहिम शुरू की गई थी। इस मुहिम में यूनिसेफ राष्ट्रीय युवा एम्बेसडर हिमा दास और मानुषी छिल्लर के साथ दीया मिर्जा, अदिति राव हैदरी, डायना पेंटी, नीरू बाजवा आदि अभिनेत्रियों और कई युवाओं ने इस मुहिम का समर्थन किया। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार शहरी इलाकों में 78 प्रतिशत महिलाओं की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 48 महिलाएं ही मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता से जुड़े उत्पाद इस्तेमाल कर रही हैं। मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के महत्व को रेखांकित करने के लिए हर वर्ष 28 मई को ‘मासिक धर्म स्वच्छता दिवस' मनाया जाता है।