देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच ब्लैक फंगस की शिकायत सामने आई थी, लेकिन अब इस बीच कोरोना मरीजों में व्हाइट फंगस की भी समस्या देखी जा रही हैं। जी हां, कोरोना मरीज़ों में ब्लैक फंगस के अलावा अब व्हाइट फंगस भी देखा जा रहा है।
व्हाइट फंगस की समस्या बेहद गंभीर
दरअसल, पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (PMCH) में भर्ती कोरोना के 4 मरीजों में व्हाइट फंगस मिलने की पुष्टि हुई है। पीएमसीएच के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के अध्यक्ष डॉक्टर एसएन सिंह ने कोरोना मरीजों में व्हाइट फंगस मिलने की पुष्टि की है। यह फंगस मरीजों की स्किन को नुकसान पहुंचा रहा है। व्हाइट फंगस की देरी से पहचान होने पर जान भी जाने का खतरा रहता है। डॉ. एसएन सिंह ने कोविड और पोस्ट कोविड मरीजों से व्हाइट फंगस की समस्या को गंभीरता से लेने की अपील की है।
शरीर के इन हिस्सों को संक्रमित करता है व्हाइट फंगस
यह बीमारी ब्लैक फंगस से भी ज्यादा खतरनाक बताई जा रही है। व्हाइट फंगस से कोरोना की तरह ही फेफड़े संक्रमित होते हैं। इसके अलावा नाखून, स्किन, पेट, किडनी, ब्रेन, प्राइवेट पार्ट्स और मुंह के अंदर भी संक्रमण फैल सकता है। डॉक्टर्स का कहना है कि अगर एचआरसीटी में कोरोना के लक्षण दिखाई देते हैं तो व्हाइट फंगस का पता लगाने के लिए बलगम कल्चर की जांच जरूरी है। उन्होंने बताया कि व्हाइट फंगस का रीजन भी ब्लैक फंगस की तरह की इम्युनिटी कम होना ही है। उन लोगों में इसका खतरा ज्यादा रहता है जो डायबिटीज के मरीज हैं, या फिर लंबे समय तक एस्टेरॉयड दवाएं ले रहे हैं।
न्यू बोर्न बेबी भी होते हैं संक्रमित
नवजात में यह डायपर कैंडिडोसिस के रूप में होता है। जिसमें क्रीम कलर के व्हाइट स्पाॅट में दिखाई देते हैं। छोटे बच्चों में यह ओरल थ्रस्ट करता है औऱ महिलाओं में यह ल्यूकोरिया का मुख्य कारण है।
क्या है बचाव-
जो मरीज ऑक्सीजन या वेंटिलेटर पर हैं उनके ऑक्सीजन या वेंटिलेटर उपकरण विशेषकर ट्यूब आदि जीवाणु मुक्त होने चाहिए। ऑक्सीजन सिलेंडर ह्यूमिडिफायर में स्ट्रेलाइज वाटर का प्रयोग करें। जो ऑक्सीजन मरीज के फेफड़े में जाए वह फंगस से मुक्त हो। वैसे मरीजों का रैपिड एंटीजन और RT-PCR टेस्ट निगेटिव हो और जिनके HRCT में कोरोना जैसे लक्षण हों। उनका भी रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट कराना चाहिए। इसके साथ ही बलगम के फंगस कल्चर भी टेस्ट होना चाहिए।