9 मई अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस के अवसर पर और जब भारत COVID की दूसरी लहर से जूझ रहा है, बाल विवाह और किशोर गर्भावस्था जैसे मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना जरूरी है। कोविड-19 की वजह से हुए लॉकडाउन के बीच प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक महिलाओं की पहुंच बाधित हो रही है। इसलिए लड़कियों को कम उम्र में गर्भधारण से बचाना पहले से कहीं अधिक मुश्किल हो गया है, जिसकी वजह से किशोर लड़कियों को गंभीर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। जहां एक तरफ लोकप्रिय संस्कृति मातृत्व का महिमामंडन करती है, वहीं दूसरी तरफ यह उन किशोरी माताओं की परेशानियों (संघर्षों) को समझने में विफल रही है जिन्हें अभी शारीरिक या मानसिक परिपक्वता हासिल करनी है।
लड़कियों की जल्द शादी होने से कम उम्र में हो जाती है प्रैगनेंट
यूएनएफपीए की स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट, 2021, कहती है कि 57 विकासशील देशों की लगभग आधी महिलाओं को शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार नहीं है, जिसमें गर्भनिरोधक विकल्पों का चयन करना, स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत जताना या यहां तक कि अपनी सेक्सुअलिटी के संबंध में बात करना भी शामिल है। भारत पहले से ही दुनिया की एक तिहाई बाल वधुओं वाला देश है। महामारी की वजह से स्कूल बंद होने से यह समस्या और अधिक बढ़ गई है, क्योंकि बहुत सी लड़कियों को जल्दी शादी के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिसका परिणाम कम उम्र में गर्भधारण के रूप में सामने आता है।
15 से 19 वर्ष आयु वर्ग की विवाहित किशोरियों के बीच मातृत्व मृत्यु दर अधिक-
कम उम्र में गर्भ धारण किशोरियों और उनके शिशुओं के स्वास्थ्य और हित पर लम्बे समय तक प्रभाव डालता है। उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि 15 से 19 वर्ष आयु वर्ग की विवाहित किशोरियों के बीच मातृत्व मृत्यु दर, बीस के दशक और शुरुआती तीस के दशक की महिलाओं की तुलना में अधिक है। 10-19 वर्ष आयु वर्ग की किशोरी माताओं को उच्च आयु वर्ग की महिलाओं की तुलना में जन्म संबंधी जटिलताओं मसलन एक्लम्पसिया, प्यूरपेरल एंडोमेट्राइटिस(गर्भाशय में संक्रमण) और अन्य सिस्टमेटिक इंफेक्शंस का भी अधिक खतरा होता है। इसके अलावा, किशोरी माताओं के गर्भ से जन्म लेने वाले बच्चों में जन्म के समय कम वजन, समय से पहले जन्म, जन्म के वक्त चोटिल होना, प्रसव पीड़ा और शिशु मृत्यु दर का अधिक खतरा होता है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, शिक्षा की कमी और अभिभावक बनने की जिम्मेदारियां साथ मिलकर किशोरों के भविष्य के आर्थिक अवसरों और कैरियर के विकल्पों को प्रतिबंधित कर देती हैं।
यहां 20-24 वर्ष आयु वर्ग की 35 प्रतिशत महिलाओं का विवाह 18 साल से पहले हो जाता है-
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण - 4 (एनएफएचएस-4) के अनुसार, राजस्थान में 20-24 वर्ष आयु वर्ग की 35 प्रतिशत महिलाओं का विवाह 18 साल से पहले हो गया था। यह राष्ट्रीय औसत 27 प्रतिशत से काफी अधिक है। यही सर्वेक्षण बताता है कि राज्य में 15-19 वर्ष की आयु वर्ग की 6% प्रतिशत किशोरियां, सर्वेक्षण के समय या तो मां बन चुकी हैं या वे गर्भवती हैं, जिसकी वजह से वे शिक्षा और स्वास्थ्य और विकास केअवसरों से वंचित होती जा रही हैं।
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया, राजस्थान में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर युवाओं की जागरूक करने व उनकी जानकारी को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है साथ ही जिला और राज्य स्तर पर अपने कार्यक्रम के माध्यम से सेवाओं तक उनकी पहुंच बनाने के संबंध में जानकारी उपलब्ध कराता है।
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के राजस्थान की सीनियर स्टेट प्रोग्राम मैनेजर दिव्या संथानम कहती हैं, "भारत में, बाल विवाह गैरकानूनी है, इसके बावजूद अगर हम एनएफएचएस-4 के आंकड़ों की बात करें, तो सिर्फ राजस्थान में, एक तिहाई किशोरियाँ की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है। ऐसे में कम उम्र में और अवांछित/अनचाहे गर्भधारण को रोकना उनके समग्र स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। सिर्फ एक स्वस्थ माँ ही स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है... अच्छी तरह से उसकी परवरिश कर सकती है और कई पीढियों तक जारी रहने वाले दुष्चक्र को तोड़ सकती है। ”
राजस्थान में काम कर रहे पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया का उद्देश्य सभी युवाओं को उनके प्रजनन अधिकारों, शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच को समझने के लिए जानकारी उपलब्ध कराना है। इसके साथ ही, जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के क्रम में, वे राज्य, जिला और जमीनी स्तर पर हितधारकों के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।
"आज युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य में निवेश करने से ही अगली पीढ़ी स्वस्थ बनेगी।"