जब शरीर पर कोई अंदरुनी चोट लगती हैं तो अक्सर स्किन पर नीले रंग का निशान दिखने लगता है जिसे हम आम भाषा में नील पड़ना भी कहते हैं और मेडिकल भाषा में इसे कन्टूशन (contusion) या भीतरी चोट कहा जाता है लेकिन कई बार ये नीले निशान बिना चोट के भी शरीर पर पड़ने शुरु हो जाते हैं। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता हैं अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको इसके बारे में ही बताते हैं...
क्यों पड़ते हैं नील के निशान?
वैसे तो जब त्वचा पर चोट लगती है तो रक्त धमनियों को नुकसान पहुंचता है जिससे त्वचा के अंदर खून रिसता है और आसपास की कोशिकाओं में फैल जाता है जो नील का रुप ले लेता है। यह तो हुआ नील पड़ने का एक कारण लेकिन जब बिना चोट के नीले निशान पड़े तो इसकी वजह बढ़ती उम्र से लेकर शरीर में पोषण की कमी होना भी हो सकता हैं। वहीं कई बार वजह बड़ी बीमारी जैसे हेमोफिलिया व कैंसर भी हो सकती हैं।
उम्र के हिसाब से ...
बुढ़ापे में ऐसा होना एक सामान्य सी बात हैं क्योंकि एक्टिनिक पर्प्युरा (actinic purpura) कहलाने वाले ये नील, लाल रंग से शुरु होकर फिर पर्पल और गहरे नीले होकर फिर हल्के होकर फिर गायब हो जाते हैं क्योंकि रक्त धमनियां इतने साल सूरज की रोशनी का सामना करते हुए कमजोर हो जाती हैं लेकिन यह एक नॉर्मल बात है।
पोषण की कमी हो तो...
अगर आपके शरीर में विटामिन्स और मिनरल की कमी हो जाए तो भी ऐसा होता हैं क्योंकि यह ब्लड क्लॉटिंग और जख्मों को भरने में खास भूमिका निभाते हैं। इनकी कमी से भी नील पड़ते हैं। जैसे शरीर में विटामिन के की कमी हो जाना क्योंकि यहीं तत्व खून को जमने में मददगार होता हैं।
• विटामिन सी – विटामिन सी रक्त धमनियों को चोटिल होने से बचाते हैं। जब शरीर में इस विटामिन की कमी हो जाती है तो चोट ठीक होने में अधिक समय लगता है।
• मिनरल–जिंक और आयरन की कमी से एनीमिया भी हो जाता है, जिसे भी नील पड़ने का एक बड़ा कारण माना जाता है।
• बायोफ्लेविनॉइड यानी विटामिन पी – शायद आपने इस विटामिन के बारे में ज्यादा ना सुना हो। लेकिन विटामिन पी यानि सिट्रीन, रूटीन, केटचिन और केर्सेटिन (Citrine, rutin, catechin and quercetin) कुछ ऐसे बायोफ्लेविनॉइड हैं जो अंदरूनी चोटों से बचाने का काम करते हैं। यह आंवला, खट्टे फल जैसे संतरा, मौसमी व तिल चुकंदर और केले आदि में पाया जाता है।
कैंसर और कीमोथेरेपी की वजह से...
कैंसर जैसी बीमारी के लिए जो व्यक्ति कीमोथेरेपी करवा रहा हो तो उनके ब्लड प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं जिसके चलते शरीर पर बार-बार नील के निशान दिख सकते हैं।
थ्रोंबोफिलिया और हीमोफीलिया डिसऑर्डर
.थ्रोम्बोफिलिया एक ब्लड डिसऑर्डर हैं जिनमें प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं, इनके कारण भी शरीर की ब्लड क्लॉट की क्षमता कम हो जाती है जिससे नील के निशान पड़ते हैं।
.जबकि हीमोफीलिया बीमारी आनुवांशिक है जिन लोगों को ये समस्या होती है उन्हें बहुत अधिक रक्तस्राव की आशंका रहती है क्योंकि ब्लड क्लॉटिंग नहीं हो पाती। अत्यधिक या बिना वजह से रक्तस्राव या नील पड़ना हीमोफीलिया का एक लक्षण है।
रक्त धमनियों हो जाएं कमजोर तो...
नील पड़ने का एक कारण एहलर्स-डेन्लस सिंड्रोम भी हो सकता हैं। इस समस्या में नील के निशान इसलिए पड़ जाते हैं क्योंकि कोशिकाएं और रक्त धमनियां कमजोर हो जाती हैं और आसानी से टूट जाती हैं। इस बीमारी के मुख्य लक्षण शरीर में अत्यधिक निशान पड़ना, घाव देर से भरना, इंटरनल ब्लीडिंग आदि।
दवाइयां और अत्यधिक सप्लीमेंट
खून को पतला करने वाली कुछ दवाइयां खून को जमने से रोकती है जिससे लगातार शरीर पर नील पड़ सकते हैं। इसके अलावा कुछ नैचुरल सप्लीमेंट का अधिक इस्तेमाल भी खून को पतला कर देता है जिससे ब्लड जल्दी जमता नहीं है हालांकि ऐसा कम ही होता है क्योंकि ऐसे सप्लीमेंट लेने से खून पतला तभी होता है जब खून पतला करने वाली दवाओं को इनके साथ ही लिया जाए तो ...
कब होगी चिंता की बात?
जब नील का निशान बड़ा हो जाए और उस पर बहुत ज्यादा दर्द भी हो जाए या फिर लंबे समय तक निशान बना रहे तो मेडिकल जांच जरूर करवाएं।
अगर नील के आस-पास इंफेक्शन, पस या बुखार भी हो तो चिकित्सक परामर्श लेना बहुत जरूरी है।
अगर बार-बार निशान पड़ते हैं तो भी एक बार जांच करवाएं और इसका कारण जानें।
कैसे करें बचाव
डाइट में मल्टी-विटामिन जरूर खाएं।
अगर चोट की वजह से नील पड़ा है तो तुंरत बर्फ की टकोर करें। इससे नील उसी समय ठीक हो जाएगा।
नीले निशान ठीक करने में बेकिंग सोडा मददगार साबित हो सकता है। इसके लिए 1 चम्मच बेकिंग सोडा में 3 चम्मच पानी मिलाकर निशान पर लगाएं।
एलोवेरा की ताजी जैल को निकालकर प्रभावित जगह पर लगाएं।
खीरे के रस को टोनर की तरह इस्तमाल करें।