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बिना कील की लकड़ी, सोने की कुल्हाड़ी... भगवान जगन्नाथ का  रथ बनाने में इन नियमों का होता है पालन

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 24 Jun, 2023 06:51 PM
बिना कील की लकड़ी, सोने की कुल्हाड़ी... भगवान जगन्नाथ का  रथ बनाने में इन नियमों का होता है पालन

ओडिशा सरकार के वन विभाग ने राज्य के गंजाम जिले में ‘फासी' के 30,000 पौधों का रोपण कराया है क्योंकि पुरी जगन्नाथ रथयात्रा में शामिल रथों के निर्माण में इस विशेष प्रकार के वृक्ष की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। रथ का पहिया फासी वृक्ष की लकड़ियों से बनाया जाता है। रथयात्रा के लिए देवताओं के तीनों रथों के पहिये बनाने के लिए 14 फुट लंबी और छह फुट घेरे वाली फासी की 72 लकड़ियों की आवश्यकता होती है।

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घुमुसर दक्षिण वन मंडल के सहायक वन संरक्षक (एसीएफ) प्रभाकर नायक ने कहा- ‘‘जगन्नाथ रथयात्रा के लिए रथ बनाने के लिए भविष्य में फासी की लकड़ियों की जरूरत को पूरा करने के लिए हमने फासी के करीब 3000 और नीम के 2000 पौधे लगाए हैं। इन्हें गंजाम जिले में घुमुसर दक्षिण वन मंडल के दो प्रमुख क्षेत्रों में लगाया गया है। अधिकारी ने कहा कि बड़ागढ़ रेंज के अंतर्गत गुम्मा वन क्षेत्र के साराबडी और बाजरा में 10 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधारोपण किया गया। 

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अधिकारी  ने कहा- ‘‘हम क्षेत्र में उन पौधों की जगह दूसरे पौधे लगाएंगे जो नष्ट हो चुके हैं। हमने मर चुके पौधों के प्रतिस्थापन के लिए एक नर्सरी तैयार की है।'' रथ के लिए लकड़ी एक विशेष जंगल, दशपल्ला से एकत्र किए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिये होते हैं ये लाल और पीले रंग के होते हैं। 

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कहा जाता है कि इस रथ के निर्माण के लिए सबसे पहले मंदिर समिति के लोग वन विभाग के अधिकारियों को इस संबंध में सूचना भेजते हैं, जिसके बाद मंदिर के पुजारी लकड़ियों का चुनाव करते हैं और फिर इन लकड़ियों पर महाराणा कम्युनिटी के लोग सोने की कुल्हाड़ी से प्रतीकात्मक प्रहार करते हैं। सोने की कुल्हाड़ी को सबसे पहले भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा से स्पर्श कराया जाता है। लकड़ी में सोने की कुल्हाड़ी से कट लगाने का काम महाराणा द्वारा किया जाता है। 

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रथ के लिए कील वाली या फिर कटी हुई लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जब तक रथ बनकर तैयार नहीं हो जाता तब तक पूरे 2 महीने के लिए कारीगर भी वहीं रहते हैं और उन्हें भी नियमों का पालन करना पड़ता है। भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर पर सात दिनों तक रहते हैं। फिर आठवें दिन आषाढ़ शुक्ल दशमी पर रथों की वापसी होती है। इसे बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
 

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