आज कल एक ही संतान का चलन तेजी से व्यवहार में आया है। आधुनिकीकरण ने पहले ही परिवारों का आकार छोटा कर दिया है। ऐसे में एक बच्चे का पालन पोषन करना जरा टेढ़ी खीर है। यदि आप एक ही संतान के अभिभावक हैं तो थोड़ा सचेत रहने की आवश्यकता है क्योंकि इकलौता है आपकी आंखों का तारा... समय बदल गया है। एकल परिवारों में इकलौते बच्चे की परवरिश मां-बाप के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी और कठिन चुनौती बन चुका है। कई बार इकलौता बच्चा दूसरे बच्चों से व्यवहार व कार्यशैली में बिल्कुल अलग होता है। अभिभावक के लाड़-प्यार के कारण ऐसे बच्चे अक्सर शरारती और गुस्सैल हो जाते हैं। इन बच्चों को माता-पिता के लाड-प्यार के साथ उनकी विशेष देखभाल की जरूरत होती है। यदि आपके आंगन में हो रही है इकलौती संतान की परवरिश तो इन बातों का रखें ख्याल :
ध्यान दें कहीं वह जिद्दी तो नहीं
उसकी हर मांग को पूरा न करें। वह कमजोर है, अकेला है ऐसे विचार मन से निकाल दें। बच्चा अकेला होता है तो माता-पिता का पूरा ध्यान उसी पर होता है। शरारती बच्चे सबको अच्छे लगते हैं, मगर कई बार ये शरारतें दूसरों की परेशानियां बन जाती हैं। ऐसे में अकेला बच्चा है, उसे कैसे डांटा जाए या बड़ा होकर ठीक हो जाएगा, जैसी बातें बच्चे को और उकसाती हैं, उसे उद्दंड बनाती हैं।इसलिए यदि आप एक संतान के अभिभावक हैं तो चिंता की बात नहीं बस थोड़ी सी समझदारी से काम लें ,जिससे आपका चांद दुनिया में आपका नाम रोशन कर सके।
इन्हें चाहिए पूरी अटैंशन
जहां संयुक्त परिवारों में घर के दूसरे लोग बच्चों का ध्यान रख लेते थे वहीं एकल होती जीवनशैली में अभिभावकों का कामकाजी होना भी एक समस्या बन गया है। ऐसे में इकलौती संतान को समय देना अपना कर्तव्य समझना चाहिए। यदि कामकाजी दम्पति के पास समय की कमी है तो कोशिश करें कि जो भी समय बच्चे को दे सकते हैं वह क्वालिटी समय हो। बच्चे के साथ खेलें, उसे साथ लेकर उसकी पुस्तकों या कपड़ों की अलमारी साफ करें, किचन में कुछ-कुछ सीखें सिखाएं, सोते समय उसे अच्छी कहानियां सुनाएं।
जिम्मेदारी का कराएं अहसास
प्यार पाना बच्चे का अधिकार है लेकिन यह भी ध्यान रखें कि इकलौती संतान को जो कुछ भी आप सिखाएंगे वह सीखता चला जाएगा, उसे सिखाने वाला दूसरा कोई नहीं है इसलिए लाड-प्यार दें, मगर उसे जिम्मेदारियों का अहसास भी कराएं। उसे जीवन की वास्तविकता के बारे में बताएं। उसे छोटी-छोटी जिम्मेदारी दें और कुछ मसलों पर उसकी राय लें ताकि उसे महसूस हो कि वह भी महत्वपूर्ण है। बचपन से उसे कुछ छोटे-छोटे काम देकर उसकी जिम्मेदारी तय करें, उससे उसका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।