सोमनाथ मंदिर, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में वेरावल के पास स्थित है और इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। यह मंदिर हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है और इसका इतिहास कई बार विध्वंस और पुनर्निर्माण से जुड़ा हुआ है। मंदिर की भव्यता, धार्मिक महत्व और ऐतिहासिकता इसे एक अनूठा तीर्थस्थल बनाती है। चलिए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी दिलचस्प बातें।
कितनी बार तोड़ा गया यह मंदिर?
सोमनाथ मंदिर को इतिहास में 17 बार तोड़ा गया और पुनः बनाया गया। सबसे पहले महमूद गज़नवी ने 1024 ईस्वी में इस मंदिर पर आक्रमण किया और इसे विध्वंस किया। वह यहां से अपार धन और मूल्यवान मूर्तियां लेकर गया। इसके बाद दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति उलुग खां ने 1297 में इस मंदिर पर हमला किया और इसे नष्ट कर दिया।इसके बाद 1395 में फिरोज शाह तुगलक के आदेश पर इसे तोड़ा गया।मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1706 में इस मंदिर को फिर से नष्ट किया।
पुनर्निर्माण
बताया जाता है कि पहली बार इसे चंद्रमा (सोम) ने बनवाया था और फिर यह मंदिर भगवान कृष्ण द्वारा द्वापर युग में पुनर्निर्मित किया गया। सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 11वीं शताब्दी में इसे फिर से बनवाया 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का निर्णय लिया और 1951 में इसका पुनर्निर्माण किया गया। मंदिर का उद्घाटन डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया।
इस मंदिर की खासियत
सोमनाथ मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग को पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जो भगवान शिव के अनादि और अनंत स्वरूप का प्रतीक है। वर्तमान मंदिर का निर्माण चालुक्य शैली में हुआ है और इसकी भव्यता और शिल्पकला अद्वितीय है।यह मंदिर अरब सागर के तट पर स्थित है, जिससे इसकी सुंदरता और महत्व और बढ़ जाता है। यह मंदिर सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक के रूप में भी महत्वपूर्ण है।
अनजानी बातें
सोमनाथ मंदिर के पास ही हरि, कपिला, और सरस्वती नदियों का त्रिवेणी संगम स्थित है, जो एक पवित्र स्थल माना जाता है। यह मंदिर भगवान कृष्ण के अवतरण स्थल के पास स्थित है, जिसे भालका तीर्थ कहा जाता है, जहां भगवान कृष्ण ने देह त्याग किया था।15वीं शताब्दी में, इस मंदिर पर गुजरात के सुल्तान अब्दुल्ला शाह गाज़ी ने भी आक्रमण किया था। इसके कई बार विध्वंस और पुनर्निर्माण की कहानी भारतीयों की अटूट आस्था और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है।