मुंबई, जिसे सपनों का शहर भी कहा जाता है। बड़े-बड़े सपने लिए युवा मुंबई आते हैं। मगर जब उनके सपने पूरे नहीं होते तो वो गलत रस्तों पर चलने लगते हैं। ऐसे ही गलत रास्तों पर चले बच्चों को सही रास्ते पर लाने और उन्हें उनके परिवार से मिलाने का काम रेलवे सुरक्षा बल की सब इंस्पेक्टर रेखा मिश्रा ने किया। रेखा अबतक सैंकड़ों युवाओं की जिंदगी बदल चुकी हैं। उनकी इस बहादुरी के किस्से को मराठी के 10वीं कक्षा के सिलेब्स में शामिल किया गया है।
इलाहाबाद की रहने वाली रेखा
रेखा मिश्रा उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद की रहने वाली हैं। एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में रेखा ने बताया था कि जब उन्हें साल 2015 में रेलवे पुलिस की नौकरी मिली तो उनके पिता ने उन्हे सैल्यूट किया और कहा कि वो हमेशा अच्छाई के लिए काम करें तालियों के लिए नहीं। रेखा ने बताया कि बचपन से ही उनके पिता उन्हें नेक काम करने के लिए प्रेरित किया करते थे।
पिता से मिली प्रेरणा
रेखा बताती हैं कि उनके पिता सेना में थे। उन्हें पुलिस में भर्ती होने की प्रेरणा उन्हीं से मिली थी। वह कहती हैं कि जब वह युवा अवस्था में थी तो सुबह जल्दी उठकर पढ़ती थी और व्यायाम किया करती थीं।
सूझबूझ और बहादुरी से सैंकड़ों बच्चों को बचाया
मुंबई के छत्रपत्रि शिवाजी टर्मिनल में रेखा मिश्रा को तैनात किया गया था। जहां उन्हे महिलाओं और बच्चों की तस्करी रोकने का काम सौंपा गया था। इस दौरान रेखा ने अपनी सूझबूझ और बहादुरी से घर से भागे हुए, बेसहारा और लापता हुए सैंकड़ों बच्चों को बचाया। रेखा का कहना है कि साल 2015 से अब तक करीब 950 बच्चों को उन्होंने रेस्क्यू किया है।
अपने काम पर रेखा को है गर्व
रेखा शादीशुदा है, उन्होंने अपनी ड्यूटी व वैवाहिक जीवन के बीच तालमेल बिठाया हुआ है। वह कहती हैं कि रोजाना 12 से 14 घंटे वो रेलवे स्टेशन पर बिताती हैं। जिसका उन्हें दुख नहीं है बल्कि अपनी ड्यूटी पर गर्व है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिला सम्मान
रेखा के नेक काम को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।