हमारे देश में हर त्योहार का अलग महत्व है। भारत में सबसे प्रसिद्ध उत्सवों में से एक है दशहरा। विजयादशमी हर साल नवरात्रि के अंत में मनाई जाती है और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन देश भर में जगह- जगह रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। हालांकि कई जगह ऐसी भी हैं, जहां रावण दहन नहीं किया जाता।
रावण दहन को नहीं मानते श्रीलंका के लोग
श्रीलंका की बात की जाए तो यहां के लाेग रावण दहन को नहीं मानते। हालांकि वह लोग लंकाधिपति रावण को पूजते तो नहीं है लेकिन उसे एक शक्तिशाली योद्धा और हीरो की तरह देखते हैं। ऐसा माना जाता हैं कि रावण शंकर भगवान का बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था। यही कारण है कि उन्हें आज भी बेहद सम्मान दिया जाता है। श्रीलंका ने अपनी एक सेटेलाइट का नाम भी रावण के नाम पर रखा है।
इसलिए रावण को कहा जाता है दशानन
रावण रामायण का एक प्रमुख प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था, वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) था। रामायण के अनुसार रावण के पिता विश्रवा थे तो ऋषि पुलत्स्य के पुत्र थे। रावण की माता कैकसी थी जो राक्षस कुल की थी इसलिए रावण ब्राह्मण पिता और राक्षसी माता का संतान था और कई विद्याएं, वेद, पुराण, नीति, दर्शनशास्त्र, इंद्रजाल आदि में पारंगत होने के बावजूद भी उनकी प्रवृत्तियां राक्षसी थी और पूरे संसार में आतंक मचाता था।
तंत्र विद्या का ज्ञाता था रावण
रावण सर्व ज्ञानी था उसे हर एक चीज का अहसास होता था क्योंकि वह तंत्र विद्या का ज्ञाता था। रावण ने सिर्फ अपनी शक्ती एवम स्वय को सर्वश्रेष्ट साबित करने में सीता का अपहरण अपनी मर्यादा में रह कर किया, बल्कि अपनी छाया तक उन पर नही पड़ने दी।श्रीलंका के लोगों का मानना है कि रावण और भगवान राम के बीच हुए युद्ध के पीछे की असली वजह लक्ष्मण द्वारा शूर्पनखा की नाक काटना था। उनके अनुसार रावण ने वही किया जो एक बड़ा भाई अपनी छोटी बहन का बदला लेने के लिए करता।
आदिवासी करते हैं रावण की पूजा
श्रीलंका के लोगों के लिए रावण एक ऐसा राजा था जिसे ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त था। ये लोग रावण को एक ऐसे महान शासक के रूप में देखते हैं जिसे अपनों से धोखा मिला और उसका दुखद अंत हुआ। वहीं पूरे हिंदुस्तान के आदिवासी दशहरे पर वीर राजा रावण मंडावी की मृत्यु का शोक मनाते है वह पूजा गोंगो करते हैं। आदिवासियों के पूर्वज वाह महापुरुष भी राजा रावण को अपना पूर्वज मानते हैं और उन्हें आदिवासी समुदाय की गोंड जनजाति के सदस्य मानते हैं और उनको सात गोत्र धारी मानते हैं और उन्हें राजा रावण मंडावी कहते हैं।