बॉलीवुड में ऐसे बहुत सारी हीरोइनें हैं जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर इंडस्ट्री में जगह बनाई। भले ही वो आज इस दुनिया में नहीं है लेकिन लोग आज भी उन्हें दिल से याद करते हैं। उन्हीं में से थीं एक्ट्रेस नंदा। प्रोफेशनल लाइफ में तो उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया लेकिन परिवार की जिम्मेदारी उठाने के चलते वो घर बसाना ही भूल गई और जब घर बसाना चाहा तो किस्मत धोखा दे गई।
नंदा वो एक्ट्रेस थी जिन्हें मजबूरी ने 10 साल की उम्र में ही एक एक्ट्रेस बना दिया। घर की गरीबी तो उन्होंने दूर कर दी लेकिन खुद का अकेलापन वह कभी दूर नही कर पाई और इसी अकेलेपन में दुनिया को अलविदा कह गई, चलिए आज के पैकेज में आपको नंदा की स्ट्रगलिंग लाइफ के बारे में ही बताते हैं।
कोल्हापुर में 8 जनवरी 1939 को जन्मी नंदा का पूरा नाम नंदा कर्नाटकी था। 5 साल की उम्र में ही वह एक्टिंग लाइन में आ गई थी। उस दौर में उन्होंने लीड एक्टर की छोटी बहन का किरदार निभाया था तभी उनकी छवि छोटी बहन वाली बन गई थी लेकिन बाद में नंदा ने इस छवि को बदल डाला था।
'जब-जब फूल खिले', 'गुमनाम' और 'प्रेम रोग' जैसी हिट फिल्मों में काम करने वाली नंदा की फिल्मों में एंट्री की कहानी बड़ी दिलचस्प थी। साल 1944 में 5 साल की नंदा जब स्कूल से लौटीं तो पिता ने कहा-कल तैयार रहना। फिल्म के लिए तुम्हारी शूटिंग है। इसके लिए तुम्हारे बाल काटने होंगे लेकिन बाल काटने की बात सुनकर नंदा नाराज हो गईं। दरअसल, नंदा के पिता विनायक दामोदर कर्नाटकी मराठी फिल्मों के मशहूर अभिनेता और निर्देशक थे। जब बाल काटने की बात आई तो उन्होेंने कहा, 'मुझे कोई शूटिंग नहीं करनी।' उस समय मां ने ही नंदा को समझा कर शूटिंग के लिए तैयार किया। नंदा के बाल लड़कों की तरह छोटे-छोटे काट दिए गए। फिल्म का नाम मंदिर था जिसे उनके पिता दामोदर ही निर्देशित कर रहे थे। बदकिस्मती से फिल्म पूरी होती इससे पहले ही नंदा के पिता का निधन हो गया। घर की हालत भी खराब होने लगी। छोटी नंदा के कंधों पर सारी जिम्मेदारी आ गई। फिर मजबूरी में उन्हें फिल्मों में काम करने का फैसला लेना पड़ा। उन्होंने रेडियो और स्टेज पर काम किया। 10 साल की उम्र में ही वह हीरोइन बन गई लेकिन हिन्दी नहीं, बल्कि मराठी सिनेमा की।
दिनकर पाटिल की निर्देशित फिल्म ‘कुलदेवता’ के लिए नंदा को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विशेष पुरस्कार से नवाजा था। नंदा ने कुल 8 गुजराती फिल्मों में काम किया। हिंदी सिनेमा की बात करें तो साल 1975 में वह चाचा वी शांता राम की फिल्म 'तूफान और दिया' में नजर आई थी। हालांकि 1959 में नंदा ने 'छोटी बहन' में राजेंद्र कुमार की अंधी बहन का किरदार निभाया था। लोगों को छोटी बहन का किरदार इस कद्र पसंद आया कि लोगों ने उन्हें सैकड़ों राखियां भेजी थीं। फिर राजेंद्र कुमार के साथ उनकी फिल्म 'धूल का फूल' सुपरहिट रही और नंदा का सितारा चमक उठा। इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की जो हिट रहीं लेकिन बावजूद इसके उनकी प्रतिभा का सही इस्तेमाल नहीं किया गया या यूं कहे किस्मत ने साथ नहीं दिया। उन्होंने फिल्म इत्तेफाक में निगेटिव रोल निभाया और नया नशा फिल्म में एक ड्रग एडिक्ट का लेकिन फिल्में फ्लॉप रही। नंदा यह जान गई थी कि अब उनका समय खत्म हो गया था।
पर्सनल लाइफ में नंदा अकेली ही रह गई थीं क्योंकि जिम्मेदारियों के बीच वह खुद के लिए समय ही नहीं निकाल पाई थीं। डायरेक्टर मनमोहन देसाई से बेपनाह मोहब्बत करने वाली नंदा कभी अपने प्यार का इजहार ही नहीं कर पाई और मनमोहन ने किसी और से शादी की ली।
मनमोहन की शादी के बाद नंदा तन्हाई और गुमनामी के अंधेरों में खो गईं। मनमोहन अपनी मैरिड लाइफ में बिजी हो गए लेकिन कुछ समय बाद उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद मनमोहन ने फिर से नंदा के नाम मोहब्बत का पैगाम पहुंचाया। नंदा ने उसे कबूल कर लिया लेकिन उस समय तक वह 52 साल की हो चुकी थीं। 1992 में 53 साल की नंदा ने उनसे सगाई कर ली लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। सगाई के बाद ही मनमोहन देसाई की एक हादसे में मौत हो गई।
दोनों कभी एक नहीं हो पाए और नंदा अविवाहित ही रह गईं। नंदा ने किसी से मिलना-जुलना भी बंद कर दिया था कहा जाता है कि नंदा जब भी बाहर जाती थीं तो वो सफेद साड़ी में जाती थीं क्योंकि वो मन ही मन मनमोहन देसाई को अपना पति मानती थीं। उनकी खास दोस्तों में माला सिन्हा और वहीदा रहमान थीं।
नंदा के भाई जयप्रकाश विनायक ने एक इंटरव्यू में कहा था कि तकरीबन 12 साल के रिश्ते के बाद दोनों ने 1992 में सगाई कर ली थी लेकिन इसके 2 साल बाद ही 1994 में मनमोहन देसाई की अपार्टमेंट की बालकनी से गिरने से अचानक मौत हो गई। नंदा को मौत का गहरा सदमा लगा और इसके बाद वह अकेली रह गईं। उन्होंने किसी ओर से शादी नहीं की।
आगे उन्होंने बताया कि मनमोहन शादीशुदा थे और उनके बेटे ने नंदा के साथ उनके रिश्ते को बढ़ाने में पिता की मदद की थी। इसके लिए उन्होंने वहीदा रहमान की मदद ली थी। वहीदा जी ने अपने घर पर एक डिनर दिया। डिनर के बाद नंदा और मनमोहन देसाई को अकेले छोड़ दिया ताकि डिनर के बाद नंदा और मनमोहन देसाई को अकेले छोड़ दिया जहां मनमोहन देसाई ने नंदा से शादी की बात की थी लेकिन शादी की इच्छा अधूरी रह गई।
बता दें कि मनमोहन देसाई की मौत के 10 साल बाद 2014 में नंदा की भी हार्ट अटैक से मौत हो गई। दोनों की प्रेमकहानी का एक दुखद अंत हो गया।