दिलों में आंसुओं का सैलाब छोड़कर साधारण कद-काठी के शानदार अभिनेता इरफान खान हम सभी को अलविदा कह गए। उन्होंने साधारण हो कर भी असाधारण होने की सीख भारत को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को दी है। भारत का हर नागरिक उनकी फिल्मों पर नाज करता है। उनकी आखिरी फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' में एक डायलॉग था 'जब इंसान का सपना टूटता है तो वो जिंदा लाश हो जाता है' इरफान खान भी उनके चाहने वालों के लिए एक सपने की तरह है। जिसने चंद पलों के उड़ान के बाद अपनी सवर्गवासी मां के गोद में आशियाना बना लिया।
पठानी होने के बाद भी थे शाकाहारी
7 फरवरी 1967 को जयपुर में इरफान का जन्म एक मुस्लिम पठान परिवार में हुआ था।पठानी होने के बाद भी उन्होंने मास-मच्छी को हाथ नहीं लगाया था। वो शुद्ध-शाकाहारी थे। इस कारण उनके पिता उन्हें हमेशा यह कहकर चिढ़ाते थे कि 'पठान परिवार में ब्राह्मण पैदा हो गया।'
उनकी बीवी सुतापा थी उनकी सपोर्टर
जब उनका नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में एडमिशन हुआ तो उस वक्त उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनके स्ट्रगल के दिनों में सुतापा ने उनका हर घड़ी हर पल साथ दिया। बतादें कि उनकी पत्नी उन्हीं की क्लासमेट थी।
इंडियन सिनेमा थी उनकी प्राथमिकता
दरअसल, मशहूर हॉलीवुड फिल्म 'इंटरस्टेलर' को इरफ़ान ने हिंदी फिल्म 'लंच बॉक्स' के लिए रिजेक्ट किया था। उनकी हमेशा से ही प्राथमिकता इंडियन सिनेमा रही है। उन्होंने 'स्पाइडर मैन', 'जुरासिक वर्ल्ड', 'लाइफ ऑफ़ पाई' और 'इन्फर्नो' जैसी फिल्मों में भी काम किया।