इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, 18 और 19 अगस्त, दो तारीखों की बताई जा रही हैं क्योंकि इस साल अष्टमी तिथि 18 अगस्त की रात 09 बजकर 20 मिनट से लेकर 19 अगस्त की रात 10 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। तिथि और चंद्रमा के आधार पर 18 अगस्त की मध्यरात्रि में जन्माष्टमी मनाना ज्यादा उचित है हालांकि वैष्णव परंपरा के लोग 19 अगस्त को जन्माष्टमी का त्योहार मना सकते हैं। इस दिन लोग शालिग्राम, लड्डू गोपाल के रूप में उनकी पूजा करते हैं और कुछ व्रत उपवास रखकर श्रीकृष्ण से विशेष प्रार्थना करते हैं। वहीं इस दिन श्रीकृष्ण जी को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाने की परंपरा भी है। इस भोग को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाने वाले इन 56 व्यंजनों के अलग-अलग नाम होते हैं लेकिन श्रीकृष्ण को छप्पन भोग ही क्यों लगते हैं? दरअसल, इससे भी कई रोचक कथाएं जुड़ी है जिनका अपना ही विशेष महत्व है।
चलिए आपको श्रीकृष्ण के 56 भोग की कथाओं के बारे में ही बताते हैं। वैसे तो भगवान श्री कृष्ण के छप्पन भोग से कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। लेकिन सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, कहा जाता है कि माता यशोदा अपने बाल गोपाल को रोज आठ प्रहर मतलब दिन में 8 बार भोजन कराती थीं लेकिन जब श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पूजा के कराए जाने पर देवराज इंद्र बृजवासियों से नाराज हो गए थे तो उन्होंने क्रोध में खूब वर्षा बरसाई थी ताकि बृजवासी माफी मांगने पर मजबूर हो जाए लेकिन बृज वासियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया और सभी बृज वासियों को इसी पर्वत के नीचे आने को कहा।
7 दिन तक बिना खाए पिए उठाया था गोवर्धन पर्वत
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक बिना खाए-पिए गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा। जब इंद्र को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने खुद क्षमा मांगी। सातवें दिन जब बारिश रूकी तो उनकी मां यशोदा ने बृजवासियों संग मिलकर उन्होंने 7 दिनों के 8 पहर के हिसाब से (7*8=56) कान्हा के लिए छप्पन भोग बनाए थे। तभी से श्रीकृष्ण की पूजा में उन्हें छप्पन व्यंजनों का महाभोग लगाने की परंपरा है। इस भोज में भात-दाल, चटनी, कढ़ी, घेवर, दलिया, मक्खन इलायची से लेकर जलेबी जैसे कई व्यंजन शामिल हैं।
एक महीने तक गोपियों ने किया था यमुना में स्नान
एक अन्य मान्यता के अनुसार, एक बार गोकुल की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए एक माह तक लगातार यमुना नदी में स्नान किया और माता कात्यायनी की पूजा की ताकि श्री कृष्ण ही उन्हें पति रूप में मिले। जब ये बात श्रीकृष्ण को पता चली तो श्री कृष्ण ने सभी गोपियों को उनकी इच्छापूर्ति होने का आश्वासन दिया। इसी से खुश होकर गोपियों ने श्री कृष्ण के लिए अलग-अलग छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाए। छप्पन भोग में वही व्यंजन होते हैं जो मुरली मनोहर को पंसद थे। ज्यादातर इसमें अनाज, फल, ड्राई फ्रूट्स, मिठाई, पेय पदार्थ, नमकीन और अचार जैसी चीजे़ं शामिल होती हैं।
कमल की 3 परतों में होती है 56 पंखुड़ियां
छप्पन भोगी से जुड़ी एक अन्य कहानी के मुताबिक, गौ लोक में श्रीकृष्ण और राधा एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की 3 परतों में 56 पंखुड़ियां होती हैं और हर एक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और बीच में भगवान विराजते हैं इसलिए 56 भोग लगाया जाता है।
छप्पन भोग से जुड़ा गणित भी है। जैसेः कड़वा, तीखा, कसैला, अम्ल, नमकीन और मीठा ये छह रस या स्वाद होते हैं। इन छह रसों के मेल से 56 प्रकार के खाने योग्य व्यंजन बनाए जा सकते हैं इसलिए 56 भोग का मतलब है कि वह सभी प्रकार का खाना जो हम भगवान को भोग के रूप में अर्पित कर सकते हैं। अब तो आप जान गए होंगे कि श्रीकृष्ण को छप्पन भोग क्यों लगाए जाते थे। आप लल्ला को किस व्यंजन का भोग लगाएंगे हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। छप्पन भोग से जुड़ी जुड़ी पौराणिक कथाएं आप भी जानते हैं तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं ।
भगवान श्रीकृष्ण के 56 भोग का नाम
1. भक्त (भात),2. सूप (दाल),3. प्रलेह (चटनी),4. सदिका (कढ़ी),5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),6. सिखरिणी (सिखरन),7. अवलेह (शरबत),8. बालका (बाटी), 9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),10. त्रिकोण (शर्करा युक्त),11. बटक (बड़ा),12. मधु शीर्षक (मठरी),13. फेणिका (फेनी),14. परिष्टाश्च (पूरी),15. शतपत्र (खजला),16. सधिद्रक (घेवर)17. चक्राम (मालपुआ),18. चिल्डिका (चोला),19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),20. धृतपूर (मेसू),21. वायुपूर (रसगुल्ला),22. चन्द्रकला (पगी हुई),23. दधि (महारायता),24. स्थूली (थूली)25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), 26. खंड मंडल (खुरमा), 27. गोधूम (दलिया), 28. परिखा, 29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), 30. दधिरूप (बिलसारू), 31. मोदक (लड्डू), 32. शाक (साग) 33. सौधान (अधानौ अचार), 34. मंडका (मोठ), 35. पायस (खीर) 36. दधि (दही), 37. गोघृत, 38. हैयंगपीनम (मक्खन), 39. मंडूरी (मलाई), 40. कूपिका 41. पर्पट (पापड़), 42. शक्तिका (सीरा), 43. लसिका (लस्सी), 44. सुवत, 45. संघाय (मोहन), 46. सुफला (सुपारी), 47. सिता (इलायची), 48. फल, 49. तांबूल, 50. मोहन भोग, 51. लवण, 52. कषाय, 53. मधुर, 54. तिक्त, 55. कटु, 56. अम्ल।