नारी डेस्क: 16 साल पहले 26/11देश के लिए काला दिन साबित हुआ था। 26 नवंबर 2008 को ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, लियोपोल्ड कैफे, मुंबई चबाड हाउस, नरीमन हाउस, कामा अस्पताल और मेट्रो सिनेमा पर लश्कर-ए-तैयबा के दस आतंकवादियों ने हमला बोल दिया था। हालांकि उस विनाशकारी आतंकवादी हमले के दौरान रतन टाटा मजबूती से खड़े रहे।
26/11 के हमले में 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों ने समुद्र के रास्ते से मुंबई में प्रवेश कर, ताज होटल और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस समेत कई स्थानों पर अंधाधुंध गोलीबारी की। इस हमले में 166 लोगों की जान चली गई, जिसमें ताज होटल में 33 लोग मारे गए और 300 से अधिक लोग घायल हो गए। हमले के दौरान, रतन टाटा, जो उस समय 70 वर्ष के थे ने असाधारण साहस और नेतृत्व का परिचय दिया। उन्हें ताज होटल के कोलाबा छोर पर खड़े देखा गया, जबकि सुरक्षा बल अंदर आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चला रहे थे।
तमाम अवरोधों के बावजूद रतन टाटा ताज होटल के अंदर गए और वहीं पर तीन दिन और 3 रात तक रहे। एक बार रतन टाटा ने उस मुश्किल दौर को याद करते हुए बताया था कि - "किसी ने मुझे फोन किया और कहा कि ताज में गोलीबारी हुई है। मैंने एक्सचेंज ताज को फोन किया और कोई जवाब नहीं मिला,। इसलिए मैं अपनी कार में बैठ गया और यहां आया, और चौकीदार ने मुझे लॉबी में जाने से रोक दिया क्योंकि वहां गोलीबारी हो रही थी। आप जानते हैं, उस समय, हमारे होटल में लगभग 300 मेहमान थे। रेस्तरां भरे हुए थे, विभिन्न रेस्तरां में मौजूद लोगों को निकालकर चैंबर में लाया गया। स्टाफ़ ने निकासी की मास्टर प्लान के बिना, उन्होंने लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। लेकिन उनमें से कई इस प्रक्रिया में मारे गए।"
उस समय रतन टाटा ने साफ कह दिया था कि- "एक भी आतंकी जिंदा नहीं बचना चाहिए और जरूरत पड़े तो पूरी प्रॉपर्टी (ताज होटल) को ही बम से उड़ा दो."। रतन टाटा ने एक समारोह के दौरान मुंबई हमले को याद करते हुए कहा था कि- '' मैं इतना आहत हुआ था कि मेरी आवाज खराब हो गई थी जिसे ठीक होने में 6 महीने लग गए थे। मैं उन सभी लोगों से मिलने हॉस्पिटल और घर गया जो हमले में घायल हुए थे। उनमें से ज्यादातर लोगों का बिल तक भरने वाला कोई नहीं था। मैने सहयता के लिए एक ट्रस्ट बनाकर मदद पहुंचाने की कोशिश की।''
ताज होटल को इस हमले से जान के साथ साथ अरबों का नुकसान भी हुआ था। हमले के बाद होटल को दोबारा बनाए जाने के लिए करीब 4 अरब रुपए खर्च हुए थे। टाटा समूह ने आपदाओं के दौरान मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए ताज पब्लिक सर्विस वेलफेयर ट्रस्ट (TPSWT) का गठन किया, और रतन टाटा ने पीड़ितों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उनके घरों का दौरा किया। उन्होंने मारे गए लोगों के रिश्तेदारों को उतना वेतन दिया जितना वे अपने जीवन भर कमा सकते थे, जिससे प्रभावित परिवारों के प्रति उनकी करुणा और प्रतिबद्धता का पता चलता है।