बहुत से बच्चे झूठ बोलने में इतने माहिर होते हैं कि उनका झूठ भी सच नजर आता है। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो सीधे तौर पर झूठ तो नहीं बोलते पर सच को छिपाते हैं। आखिर बच्चों में झूठ बोलने की आदत के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या वे जन्मजात झूठे होते हैं? उनकी इस आदत से परिजन ही नहीं, दूसरे लोग भी परेशान हैं। आखिर कैसे छुड़ाएं उनकी यह आदत? आइए, इन्हीं सब बातों पर गंभीरतापूर्वक विचार करें।
जो देखता है बच्चा वो सीखता है
बच्चा जैसा अपने घर- परिवार में देखता है, वैसा ही वह सीखता है। यदि घर के बड़े सदस्य झूठ बोलते हैं तो यह प्रवृत्ति बच्चों में भी पनप सकती है। जैसे यदि पिता घर पर ही हैं और किसी का टैलीफोन उनके लिए आता है तो वे अपने बच्चे से कहते हैं कि कह दो कि पापा घर पर नहीं हैं या नौकरीपेशा पिता यदि स्वस्थ होते हुए भी अपने आफिस फोन लगाकर कहता है कि आज तबीयत खराब है, इसलिए नहीं आ सकूंगा या फिर मोबाइल पर किसी का फोन आने पर यह कहना कि अभी मैं शहर से बाहर हूं, तो ये सब बातें सुनकर बच्चा सच बोलने की शिक्षा तो लेगा नहीं।
बड़ों से एक कदम आगे हाते हैं बच्चे
झूठ बोलने में बच्चे अपने बड़ों से एक कदम आगे हो जाते हैं। होमवर्क करके नहीं लाने पर उनके पास बहाने हजार होते हैं, जैसे घर पर मेहमान आ गए थे, मां की तबीयत खराब थी, स्वयं को दस्त लग गए थे आदि। परीक्षा में फेल हो जाने या कम अंक लाने पर वे कहेंगे मैंने पेपर तो अच्छा किया था लेकिन टीचर ने नम्बर कम दिए। घर से स्कूल न जाने के लिए भी उनके पास अनेक बहाने होते हैं, जैसे पेट दुख रहा है या सरदर्द हो रहा है या आज स्कूल की छुट्टी है। कई बच्चे जो झूठ बोलने में माहिर होते हैं, छोटी-मोटी चोरियां करने तथा आपराधिक प्रवृत्तियों में लिप्त हो जाते हैं और पकड़े जाने पर झूठ बोलते हैं कि उन्होंने चोरी नहीं की या अपराध नहीं किया।
झूठी शान दिखाना चाहते हैं बच्चे
लोग बच्चों की बातों को सच मान कर उन्हें छोड़ देते हैं, लेकिन अपने इस झूठ को पकड़ में न आने पर उन्हें शह मिलती है और फिर वे बड़ा झूठ बोलने लगते हैं। बच्चों में घृणा और प्रतिशोध की भावना भी झूठ बोलने का कारण बनती है। उन बच्चों की भी कमी नहीं है, जिनमें असुरक्षा की भावना व्याप्त है। ऐसे बच्चे भी झूठ का सहारा लेते हैं। कुछ बच्चों में घृणा और प्रतिशोध की भावना भी होती है जिसके वशीभूत होकर वे झूठ बोलते हैं। कुछ में ईर्ष्या भावना होती है, जिसकी वजह से वे झूठ बोलते हैं। जो बच्चे अत्यधिक लाड़-प्यार में पलते है या जिनकी हर जिद पूरी की जाती है, वे भी झूठ बोलते हैं। ऐसे बच्चे भी झूठ बोलते हैं जो अपनी झूठी शान दिखाना चाहते हैं। यह झूठ अपने आपको ऊंचा दिखाने के लिए और सामने वाले को नीचा दिखाने के लिए बोला जाता है। ऐसे झूठ का एक उद्देश्य अपनी कमजोरी को छिपाना भी होता है।
बच्चों को मारना ठीक नहीं
बच्चों की इस आदत को छुड़ाने के लिए उन्हें मारना-पीटना या जलील करना ठीक नहीं, क्योंकि इससे बच्चे ढीठ हो जाते हैं। झूठ बोलने पर सजा देने की बजाय उन्हें समझाएं। उन्हें सच का महत्व और झूठ के कुप्रभाव बताएं। उन्हें समझाएं कि सदैव झूठ बोलने वाला व्यक्ति यदि कभी सच भी बोलेगा तो लोग उसे झूठ ही समझेंगे। बच्चों को निडर और आत्मविश्वासी बनाएं, ताकि वे बिना हिचकिचाहट के अपनी गलती स्वीकार कर सकें। भूल होना स्वाभाविक है और वह क्षम्य है, जबकि झूठ जानबूझ कर बोला जाता है और उसमें छल-कपट छिपा होता है। बच्चों को सच का सामना करने की सीख दें, न कि उससे दूर भागने की।
अगर बच्चे के संगी-साथी गलत हैं तो उनकी सोहब्बत छुड़ाएं अभिभावक
अभिभावकों और शिक्षकों को बाल मनोविज्ञान को समझना तथा उसी के अनुसार बच्चों के साथ व्यवहार करना होगा। इस बात की समीक्षा करनी होगी कि बच्चे में यह बुरी प्रवृत्ति कहां से पनप रही है? यदि उसके संगी-साथी गलत हैं तो उनकी सोहब्बत छुड़ाएं। बच्चों को ऐसी कहानियां और प्रेरक प्रसंग सुनाए जाएं, जिनसे उन्हें सच बोलने की प्रेरणा मिलती हो। जब उन्हें इस बात का आभास हो जाएगा कि जीत हमेशा सच की होती है, तो वे झूठ बोलना खुद-ब-खुद बंद कर देंगे।