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World Down Syndrome Day: इन बच्चों को ज्यादा जोखिम, पेरेट्स जानें बीमारी की पूरी डिटेल

  • Edited By neetu,
  • Updated: 21 Mar, 2022 02:11 PM
World Down Syndrome Day: इन बच्चों को ज्यादा जोखिम, पेरेट्स जानें बीमारी की पूरी डिटेल

हर साल दुनियाभर में 21 मार्च को ‘वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम डे’ (World Down Syndrome Day) मनाया जाता है। इस दिन को तीसरे महीने के 21वें दिन होने की तारीख को 21वें गुणसूत्र के त्रिगुणन (ट्राइसोमी) की विशिष्टता को दर्शाने के लिए ही चुना गया, जो डाउन सिंड्रोम होने का कारण माना जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों के प्रति जागरूकता बढ़ाने व उन्हें सपोर्ट करना है। इसके लिए विश्वभर में कई इवेंट्स भी रखें जाते हैं। चलिए जानते हैं डाउन सिंड्रोम, इसके लक्षणों व बचाव के तरीके...

क्या है डाउन सिंड्रोम?

इसे ट्राइसॉमी 21 (Trisomy 21) भी कहा जाता है। यह बच्चों को होने वाला एक अनुवांशिक डिसऑर्डर है। एक रिपोर्ट अनुसार, यह सिंड्रोम तब होता है, जब 21वें गुणसूत्र का दोहराव हो जाता है। आमतौर पर एक बच्चा 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है, जिनमें से 23-23 क्रोमोसोम के सेट अपनी मां और पिता से ग्रहण करता है। अगर बच्चे को उसके माता या पिता से एक अतिरिक्त क्रोमोसोम मिल जाने पर वह डाउन सिंड्रोम का शिकार हो जाता है। इससे पीड़ित शिशु में एक अधिक 21वां क्रोमोसोम आने से उसके शरीर में क्रोमोसोम्स की संख्या 46 से बढ़कर 47 हो जाती है।

किन बच्चों को अधिक खतरा

इस रोग से हर साल करीब 6000 बच्चे प्रभावित होते हैं। यह बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास पर बुरा प्रभाव डालता है। इससे पीड़ित बच्चे के चेहरे की बनाकर दूसरों से अलग होती है। वहीं शिशु को जन्म से पहले स्क्रीनिंग व कुछ टेस्ट और जन्म के बाद जेनेटिक टेस्ट से जाना जा सकता है। एक्सपर्ट अनुसार, महिला के 35 या उसके अधिक उम्र में गर्भवती होने पर इस अवस्था में जन्म लेने वाले बच्चे को डाउन सिंड्रोम होने का खतरा अधिक रहता है। इसके अलावा परिवार में पहले से कोई इस बीमारी से पीड़ित हो तो भी बच्चा इस रोग का शिकार हो सकता है।

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डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में नजर आने वाली समस्याएं

इससे ग्रस्त लोगों के चेहरे के फीचर्स अलग नजर आते हैं। साथ ही इन बच्चों का बौद्धिक और शारीरिक विकास देरी से होता है। कई बार यह थायरॉइड या दिल से जुड़े रोग से भी जुड़ा होता है। इस दौरान मरीज को सोचने, समझने, सीखने आदि में परेशानी होती है। इसके अलावा इन बच्चों को ल्यूकेमिया, कमजोर नजर, सुनने की क्षमता में कमी, हृदय रोग, याददाश्त में कमी, स्लीप एपनिया, विभिन्न प्रकार के संक्रमणों की चपेट में जल्दी आने का खतरा रहत

डाउन सिंड्रोम के लक्षण

. जीभ की बनावट बदलना व मांसपेशियों में कमजोरी
. छोटा कद
. आंखों की बनावट सामान्य लोगों से अलग दिखाई देना। साथ ही आंख की पुतली में छोटे सफेद धब्बे पड़ना
. सिर, मुंह और कान का आकार छोटा या बड़ा होने लगना
. गर्दन, उंगलियां, हाथ-पैर छोटे-छोटे होते हैं

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डाउन सिंड्रोम का इलाज

एक्सपर्ट की मानें तो इस बीमारी का पूरी तरह से इलाज संभव नहीं है। मगर समय रहते इसका इलाज शुरु कर दिया जाए तो इसके लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके साथ ही डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे देखने में भले ही थोड़े अलग लगे। मगर कोशिशें करने से वे सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।

. अलग-अलग थेरेपी के जरिए बच्चे की बौद्धिक क्षमताओं, जरूरी आदतों तथा मोटर कौशल को बेहतर बनाया जा सकता है।

. समय से गर्भ धारण करने पर बच्चे को इस बीमारी से सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके अलावा गर्भावस्था दौरान कुछ स्क्रीनिंग टेस्ट के जरिए यह पता लगाया जा सकता है कि कहीं शिशु को डाउन सिंड्रोम संबंधित कोई लक्षण तो नहीं। इसके लिए डॉक्टर महिलाओं के जेनेटिक अल्ट्रासाउंड, ब्लड टेस्ट आदि करते हैं। इसके जरिए उनका इलाज किया जाता है।

. डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे को दवा, स्पीच, फिजिकल व बिहेवियरल थेरेपी दी जाती है ताकि उनमें जरूरी चीजें सीखने-समझने की क्षमता विकसित हो सकें।

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