स्त्री जाति में माहवारी का होना एक धर्म समझा जाता है। एक लड़की के जीवन में इसकी शुरुआत आमतौर पर 13-14 साल की उम्र में हो जाती है। महिला के लगभग 40-45 साल की होने पर माहवारी स्वाभाविक तौर पर ही बंद हो जाती है। माहवारी का च्रक औसतन 28 दिनों का होता है और इसमें वे 3-7 दिन भी शामिल है, जिस दौरान खून आता है। माहवारी एक प्राकृतिक क्रिया है, जिसमें कई प्रकार की समस्याएं होनी संभव है। यहां कुछेक समस्याओं को वर्णन किया जा रहा है जिनमें या तो माहवारी का चक्कर कम ज्यादा हो जाता है या खून अधिक आता है।
1. खून का अधिक आना
इसे अंग्रेजी में 'मेनोरेजिया' कहते हैं। मेनोरेजिया में ब्लीडिंग इतनी तेज होती है कि हर घंटे पैड बदलने की जरूरत महसूस होती है और माहवारी में यह एक आम देखी जाने वाली समस्या है। इस समस्या की एक दूसरी भी किस्म है जिसमें बेशक माहवारी का चक्र तो निश्चित समय के लिए होता है लेकिन कई बार कुछ दिनों के लिए दाग लगता है और बाकी दिन बराबर माहवारी आती है। इस प्रकार की समस्या के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि खून में किसी खास किस्म की तबदीली अथवा मानसिक तनाव, बच्चेदानी में कई प्रकार की रसौलियां, बच्चेदानी के आस-पास के अंगों में सूजन होना आदि इस प्रकार की समस्या पैदा कर सकते हैं। ऐसा तब भी हो सकता है जब महिलाएं परिवार नियोजन संबंधी दवाओं का सेवन कर रही हो।
2. माहवारी का बार- बार आना
इसे अंग्रेजी में 'पॉलीमैनरिया' कहते हैं। इसमें माहवारी चक्र का समय 28 दिनों से कम होकर रह जाता है। इस प्रकार माहवारी आम से अधिक बार आती है। बहुत बार यह समस्या एक स्त्री के जीवन में माहवारी के शुरू होने के तुरंत बाद या अधेड़ उम्र में इसके स्वाभाविक अंत होने से कुछ समय पहले देखने में आती है। बच्चेदानी में रसौलियां या इसके निकट सूजन के अलावा कई अन्य प्रकार की भीतरी तकलीफों के कारण भी ऐसा हो सकता है। कई बार बच्चा होने के तुरंत बाद भी ऐसा लक्षण देखने में आता है।
3. माहवारी का दिन चढ़कर आना
इस समस्या की शिकार औरतों में देखा जाता है कि माहवारी कुछ महीने तो आती नहीं फिर बहुत ज्यादा खून आता है। यह समस्या ज्यादातर 40-45 साल की स्त्रियों में देखी जाती है। कई बार सह जवान लड़कियां जिनकी उम्र 20 साल से कम हो, में भी देखी जाती है। इस समस्या में अंदरूनी जांच करने पर बच्चेदानी आम से ज्यादा भारी हो सकती है।
4. निश्चित समय के अलावा भी खून आना
इस समस्या में माहवारी के समय के अलावा खून महीने के कुछ अन्य दिनों में भी आता है। इस प्रकार की समस्या का कारण ज्यादातर बच्चेदानी की रसौलियां होती हैं। यदि महिला को कुछ खास किस्म के हार्मोन दिए गए हो तब भी इस तरह खून आ सकता है।
इलाज
इस तरह की समस्याओं का शिकार महिलाओं में खून की कमी होने का डर रहता है इसलिए इनकी जांच करने उपरांत गाेलियां, टीके या खून देकर, खून की कमी की पूर्ति करना जरूरी है। इस समस्या के उपचार के लिए महिलाओं को चाहिए कि वह किसी अच्छे डॉक्टर से अंदरूनी जांच करवाएं। किसी भी कारण का पता चले तो उसका इलाज करवाना चाहिए। कई बार बच्चेदानी की सफाई करने पर इन समस्याओं का कारण सामने आ जाता है और कई बार मरीज को अपनी समस्या से छुटकारा भी मिल जाता है। कम उम्र की लड़कियों में माहवारी की समस्या के अनुसार हार्मोन भी दिए जा सकते हैं। अधेड़ उम्र की औरतों की जरूरत होन पर बच्चेदानी भी निकाली जा सकती है।
भले ही माहवारी की समस्याएं आम देखने में आती है लेकिन जिन महिलाओं को इनमें से किसी एक समस्या ने घेर लिया हो उनको चाहिए कि जल्दी ही किसी अच्छी लेडी डॉक्टर से अपना इलाज करवाएं क्याेंकि यदि लापरवाही से काम लिया गया तो ये समस्याएं औरतों में खून की काफी कमी उत्पन्न कर सकती है।