छोटी दिवाली 3 नवंबर बुधवार यानि आज मनाई जा रही है। यह विशेष दिन हिंदू कैलेंडर के अश्विन महीने में कृष्ण पक्ष के चौदहवें दिन होता है। यह पांच दिवसीय दिवाली उत्सव का दूसरा दिन है, जो धनतेरस से शुरू होता है। आखिरी दिन लोग भाई दूज मनाते हैं। छोटी दिवाली उत्सव के लिए, शुभ मुहूर्त 3 नवंबर को सुबह 9:02 बजे शुरू होता है और अगले दिन सुबह 6:03 बजे समाप्त होता है। अन्य क्षेत्रों और संस्कृतियों में छोटी दिवाली को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। चलिए जानते हैं छोटी दिवाली से जुड़ी सभी जरूरी बातें....
छोटी दिवाली की पूजा विधि
छोटी दिवाली पर भक्त भगवान कृष्ण, हनुमान, यम और देवी काली की भी पूजा करते हैं। लोग इन देवताओं की पूजा पिछले पापों से अपनी आत्मा को शुद्ध करने और बाद में नरक में भेजे जाने से बचने के लिए करते हैं। इस दौरान लोग अपने सिर और शरीर पर तिल का तेल भी लगाते हैं।
छोटी दिवाली को क्यों कहा जाता है नरक चतुर्दशी?
पूर्व और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी और गुजरात - राजस्थान में काली चौदस कहा जाता है। "नरक" का अर्थ राक्षसों के राजा नरकासुर से है और चतुर्दशी का अर्थ है चौदहवां दिन। देश के कुछ हिस्सों में नरकासुर का पुतला भी जलाया जाता है जबकि भारत के अन्य हिस्सों में, विभिन्न संस्कृतियों में अनुष्ठान अलग-अलग होते हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस राजा नरकासुर ने वैदिक देवी अदिति के प्रदेशों पर कब्जा कर लिया था। उसने कई महिलाओं का अपहरण और दुर्व्यवहार भी किया। नरकासुर की हत्या कैसे हुई, इस बारे में पौराणिक कथाओं में अलग-अलग संस्करण हैं। एक कहानी के अनुसार, भगवान कृष्ण और सत्यभामा ने उसे एक युद्ध में मार डाला जबकि अन्य मानते हैं कि देवी काली ने उसका जीवन समाप्त कर दिया। यही कारण है कि लोग इस दिन को काली चौदस और नरक चतुर्दशी के रूप में भी मनाते हैं।
कैसे शुरू हुई दीपदान की परंपरा?
कथाओं के मुताबिक, नरकासुर को वरदान था कि उसकी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों ही होगी। ऐसे में जब उसने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना लिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को सारथी बनाकर नरकासुर का वध किया। तब सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण से कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा इसलिए वह ही कोई उपाय खोजें। तब श्रीकृष्ण ने सभी कन्याओं से विवाह किया, ताकि उन्हें समाज में सम्मान मिल सके। इसी उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा भी शुरू की गई।
इसलिए मनाई जाती है छोटी दिवाली
एक अन्य कथा के मुताबिक, राजा रति देव ने अपने पूरे जीवन में कोई पाप-अपराध नहीं किया था लेकिन फिर भी एक बाद यमदूत उसे नर्क लेकर जाने के लिए लेने आ गए। तब राजा अचंभित होकर बोले मैंने तो जिंदगी में कोई गलत काम नहीं किया फिर क्या मुझे नर्क क्यों जाना होगा? इसपर यमदूत बोलें, "राजन आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया, यह उसी का फल है।"
तब राजा ने यमदूत से एक साल का समय मांगा और बाद उसने सभी ऋषियों के पास जाकर उन्हें सारी कहानी सुनाई। इसपर ऋषियों ने उन्हें कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी व्रत करने व ब्राह्मणों को भोजन करवाने के लिए कहा। ऋषि के कहे अनुसार राजा ने वैसा ही किया और पाप मुक्त हो गए। उसके बाद उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उसी दिन से कार्तिक चतुर्दशी पर पाप व नर्क से मुक्ति हेतु व्रत और दीप जलाने की प्रथा शुरू हो गई।
भगवान विष्णु का जरूर करें दर्शन
मान्यता है कि छोटी दिवाली पर सूरज उगने से पहले उठकर स्नान करने के बाद भगवान विष्णु व श्रीकृष्ण के दर्शन करें। इससे पापों से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, इससे अकाल मृत्यु का खतरा भी टल जाता है।
इसलिए चौखट पर जलाया जाता है दीपक
. छोटी दिवाली अमावस्या के अगले दिन होती है, जिसके स्वामी यमराज हैं। अमावस्या की रात चांद नहीं निकलता। कहा जाता है कि यमकाज कहीं भटक ना जाए इसलिए चौखट पर दीया जलाना चाहिए।
. मान्यता है कि इस दिन नीम के पत्तों को पानी में उबालकर स्नान करना शुभ होता है।
. मान्यता ये भी है कि सूर्यास्त के बाद चौखट पर दक्षिण दिशा की तरफ 14 दीए जलाकर रखने चाहिए। इससे अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है।