वैसे तो पूरे देश में रावण के पुतले का वध करने की परंपरा दशहरे मौके पर निभाई जाती है, लेकिन मध्य प्रदेश में एक गांव ऐसा है जहां पर चैत्र मास के दशहरे पर ही रावण के पुतले की नाक काटने की अनोखी परंपरा है। इस मौके पर गांव में पूरी धूम-धाम रहती है और पूरे 3 दिन का मेला का आयोजन भी होता है। ये परंपरा 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है। इस आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पर आते हैं। आइए जानते हैं इस परंपरा से जुड़ी खास बातें..
चिकलाना गांव में निभाई जाती है परंपरा
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित चिकलाना गांव में रावण के पुतले की नाक काटने की परंपरा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को निभाई जाती है, यानि की राम नवमी के इगले दिन। 3 दिन का मेले लगता है और शाम को भजन-कीरतन होता है और अगले दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद शाम को रावण की नाक काटने की परंपरा निभाई जाती है। एकादशी तिथि पर स्थानीय कलाकर अपनी प्रस्तुतियां देते हैं।
एक ही पुतले की कई बार काटते हैं नाक
चिकलाना गांव में रावण का पुतला बना हुआ है। हस साल इस आयोजन से पहले इसका रंग-रोगन किया जाता है और नाक लगा दी जाती है। चैत्र दश्मी तिथि पर भाले से परंपरा अनुसार रावण की नाक काटकर उत्सव मनाया जाता है। खास बात ये है कि गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवार भी इस आयोजन में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। इस आयोजन में लगभग 24 गांव के लोग जुटते हैं।
कैसे शुरु हुई ये परंपरा
इस गांव में ये परंपरा कैसे शुरु हुई, इस बार में तो कोई नहीं जानता , लेकिन गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि लगभग 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है ये परंपरा। स्थानीय लोगों के अनुसार रावण ने देवी सीता का हरण कर नारी जाति को अपमानति किया था। इसलिए यहां हर साल रावण की नाक की नाट काटकर उसे अपमानित किया जाता है।