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सावित्रीबाई  फुले:  कभी बरसते थे पत्थर, आज भारत की पहली शिक्षिका को दुनिया करती है सलाम

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 03 Jan, 2022 11:24 AM
सावित्रीबाई  फुले:  कभी बरसते थे पत्थर, आज भारत की पहली शिक्षिका को दुनिया करती है सलाम

साल का तीसरा दिन देश और दुनिया में तमाम तरह की कई अहम घटनाओं का साक्षी रहा। इस दिन की सबसे खास बात यह है कि भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जन्म इसी दिन हुआ था। भारत की महिलाओं को शिक्षित करने का श्रेय समाज सेविका सावित्रीबाई ज्‍योतिराव फुले को जाता है। इतना ही नहीं उन्होंने महिलाओं  के अधिकारों, अशिक्षा, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर भी आवाज उठाई थी। 

 

महिलाओं के लिए पढ़ाई का खोला रास्ता


भारत की पहली शिक्षिका ने समाज के विरोध के बावजूद  शिक्षा ग्रहण करके न सिर्फ समाज की कुरीतियों को हराया बल्कि देश की लड़कियों के लिए पढ़ाई का नया रास्ता भी खोल दिया जिसके बाद महिलाओं को लिए राह आसान हो गई। साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश के सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना करने का श्रेय इन्हीं को जाता है।   


 9 साल की छोटी उम्र में हुई शादी 

सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में हुआ था। 9 साल की छोटी उम्र में पूना के रहने वाले ज्योतिबा फुले के साथ उनकी शादी हो गई। उस समय वह बिल्कुल अनपढ़ थी। एक बार उनके पिता ने उनसे कहा- शिक्षा का हक़ केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही है, दलित और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करना पाप था।  बस उसी दिन वो शिक्षा ग्रहण करने का प्रण कर बैठी थी। 

 

पति ने दिया पूरा साथ 

जब सावित्री के परिवार व ससुराल वाले उनकी शिक्षा के खिलाफ हो गए तब उनके पति ज्योतिराव ने उनका साथ दिया। ज्योतिराव ने ना सिर्फ उनके सपनों को समझा बल्कि उन्हें पढ़ाने का निर्णय लिया। जब वे अपने पति को खेतों में खाना देने जाती थी तब ज्योतिराव उन्हें पढ़ना सीखाते थे।  ​पढ़ाई के बाद सावित्रीबाई ने उस दौर में लड़कियों के लिए स्कूल खोला जब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था। 


लोग फेंकते थे पत्थर

सावित्रीबाई ने अपने पति के साथ मिलकर छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के विरुद्ध आवाज भी उठाई। उन्होंने साल 1848 पुणे में पहले बालिका विद्यालय की शुरूआत की। वह इस स्कूल की प्रिंसिपल के साथ शिक्षिका भी थी। हालांकि उस समय जब वह लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर तक फेंका करते थे। वह एक साड़ी अपने बैग में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी  साड़ी को बदल लेती थीं, उन्हें इस बात से कभी कोई फर्क नहीं पड़ता था कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। 


विधवाओं के लिए खोला आश्रयगृह 

सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर 1873 को कराया गया। इतना ही नहीं उन्होंने गर्भवती विधवाओं के लिए एक आश्रयगृह खोला, जहां वह बच्चा पैदा कर सकती थीं। सावित्रीबाई फुले ने उन बच्चों के लालन-पालन की भी व्यवस्था की। फुले दंपति ने बाल विवाह के खिलाफ भी सुधार आंदोलन चलाया था। 

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