भारत में भगवान गणेश जी का जन्मोत्सव यानि गणेश चतुर्थी का त्योहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मगर, कोरोना महामारी के बाद से ही सरकार द्वारा लॉकडाउन लगाया गया था। इसके बाद धीरे-धीरे अनलॉक किया जा रहा है परंतु धार्मिक स्थल अभी भी बंद है। इसके चलते श्रद्धालुओं को गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश जी के दर्शन और पूजा करने पर प्रतिबंध लगा है और इस बार मंदिरों में भी गणेश जी के दर्शन के लिए श्रद्धालु नहीं पंहुचेंगे।
यहां हम आपको प्रथम पूजनीय गणेश जी की उस प्रतिमा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।
मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में स्थापित है मंदिर
भगवान श्रीगणेश का यह सुंदर और अलौकिक मंदिर मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में स्थापित है। इस मंदिर की खासियत यही है कि यहां पर बप्पा की प्रतिमा पूरे एशिया में सबसे बड़ी मानी गई है। कहा जाता है कि पहले इस मंदिर में टीन के पातरों से छत तैयार की गई थी।
25 फुट ऊंची है प्रतिमा
भगवान श्रीगणेश की मूर्ति बैठी मुद्रा में स्थापित है। बात इस मूर्ति की ऊंचाई की करें तो यह 25 फीट ऊंची है। साथ ही यह मूर्ति करीब 4 फुट ऊंची और 14 फुट चौड़ी चौकी पर स्थापित है। इस भव्य प्रतिमा को पूरे एशिया की सबसे बड़ी मूर्ति माना गया है। भगवान गणेश जी की इस प्रतिमा को सन् 1901 में 17 जनवरी को बनाया गया था।
3 साल में बनकर तैयार हुई थी प्रतिमा
इंदौर के अतिप्रचीन मंदिर "बड़ा गणपति मंदिर" का इतिहास गणेश जी के अनन्य भक्त स्व. पं. नारायण दाधीच के एक स्वप्न से जुड़ा है। भगवान गणेश ने नारायण को ऐसी ही मूर्ति के रूप में दर्शन दिए थे, जिसके बाद ही इस भव्य मंदिर का निर्माण हुआ है। मंदिर का निर्माण कार्य वर्ष 1901 में पं. नारायण दाधीच द्वारा पूरा किया गया था। वहीं, मूर्ति के निर्माण में करीब 3 साल लगे थे। भगवान गणेशजी की यह प्रतिमा 25 फीट ऊंची है, जिसे बनाने के लिए चूना, गुढ, रेत, मैथीदाना, मिट्टी, सोना, चांदी, लोहा, अष्टधातु, नवरत्न का इस्तेमाल किया गया है। यही नहीं, प्रतिमा के निर्माण में सभी तीर्थ नदियों के जल का इस्तेमाल किया गया है। मूर्ति मंदिर के 4 फीट ऊंचे चबूतरे पर विराजीत है।
साल में 4 बार बदला जाता चोला
मंदिर के पुजारी पंडित धनेश्वर दाधिच ने बताया कि भगवान गणेश जी का श्रृंगार में करीब 8 दिन का समय लगता है। साल में 4 बार यह चोला चढ़ाया जाता है, जिसमें भाद्रपद सुदी चतुर्थी, कार्तिक बदी चतुर्थी, माघ बदी चतुर्थी और बैशाख सुदी चतुर्थी पर चोला और सुंदर वस्त्रों से श्रृंगार किया जाता है। भगवान को चोला चढ़ाने के लिए लगभग 14 दिनों का समय लगता है। चोले में सवा मन घी और सिंदूर का इस्तेमाल किया जाता है।
अलग-अलग धातु किए गए थे इस्तेमाल
भगवान गणेश जी की प्रतिमा को बनाने के लिअए सोना, चांदी, तांबा व लोहा आदि सभी प्रकार की धातु का इस्तेमाल किया गया था। गणेश जी का मुख सोने और चांदी से तैयार किया गया। उनके कान, हाथ और सूंड बनाने के लिए तांबे को इस्तेमाल किया गया था। बात उनके पैरों की करे तो इसे बनाने के लिए लोहे की धातु को यूज किया गया था। माना जाता है कि भगवान गणेश जी की इस विशाल प्रतिमा को बनने के बाद करीब 13 साल तक बिना छत के यानि खुले आसमान में स्थापित किया गया था।
लोग दूर-दूर से भगवान गणेश जी की इस प्रतिमा को देखने आते हैं। वे बड़ी आस्था व विश्वास के साथ घणपति देव की मूर्ति के दर्शन कर उसने अपनी मनोकामना की प्रार्थना करते हैं। माना जाता है कि गणपति बप्पा भी यहां आए अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते हैं। बता दें कि मंदिर के रख रखाव की जिम्मेदारी नारायण दाधीच की तीसरी पीढ़ी के पं धनेश्वर दाधीच देख रहे हैं पूरे शहर के लोग इस अलौकिक प्रतिमा के दर्शन करने यूं तो सालभर ही जाते हैं। लेकिन गणेश उत्सव के समय यह संख्या हजारों में पहुंच जाती हैं लेकिन कोरोना वायरस के चलते इस बार मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को नहीं मिलेगी।
रिपोर्ट - इंदौर- गौरव कंछल