सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। उच्चतम न्यायालय ने अविवाहित महिलाओं को इस फैसले में शामिल करने के लिए गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम (एमटीपी) के एक दायरे को विकसित किया है। इस फैसले के अंतर्गत महिलाओं को 24 सप्ताह के बाद गर्भपात करवाने की अनुमति दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति ए.एस बोपन्ना की कमेटी ने एम्स के निर्देशक को एमटीपी अधिनियम के कानूनों के तहत शुक्रवार तक महिला की जांच के लिए दो डॉक्टकरों का एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया था। चीफ जस्टिस व बाकी कमेटी मेमबर्स ने बोर्ड से यह पत्ता लगाने के लिए कहा था कि गर्भावस्था को खत्म करने के लिए महिला की जान को खतरा हो सकता है या नहीं?
एम्स को बनाया गया मेडिकल बोर्ड
चीफ जस्टिस व बाकी सदस्यों ने कहा कि - 'हम एम्स निदेशक से अनुरोध करते हैं कि एमटीपी अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाए। यदि बोर्ड यह निष्कर्ष निकाल पाता है कि याचिकाकर्ता की जान की किसी भी तरह के जोखिम के बिना ही गर्भपात किया जा सकता है तो एम्स याचिका के अनुसार, गर्भपात करेगा।' रिपोर्ट्स के अनुसार, अपने 23 सप्ताह के गर्भ को खत्म करने की अनुमति दिल्ली उच्च न्यायालय से न मिल पाने के बाद एक अविवाहित महिला ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी लगाई दी और अपनी अपील को जल्दी ही सूचीबद्ध करने की मांग भी की थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गर्भपात की अनुमति देने से कर दिया था इंकार
महिला को दिल्ली उच्च न्यायालय ने गर्भपात की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि- 'यह भ्रूण हत्या के बराबर ही है।' उच्च न्यायालय ने 16 जुलाई को आदेश सुनाते हुए महिला के 23 सप्ताह के गर्भपात के भ्रूप को खत्म करने की अनुमति देने से भी इंकार कर दिया था। न्यायालय ने इसमें अपने बात रखते हुए कहा कि- 'गर्भपात कानून के अंतर्गत आपसी सहमति से बनाए हुए संबंध के कारण गर्भधारण की स्थिति में 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की इजाजत नहीं है।' जबकि उच्च न्यायालय ने महिला की इस दलील पर केंद्र से जवाब भी मांगा था कि अविवाहित महिला को 24 सप्ताह तक के गर्भ को खत्म करने की अनुमति नहीं देना भेदभावपूर्ण है। 25 वर्ष की इस महिला ने याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया था कि उसके साथी ने उसके साथ शादी करने से इंकार कर दिया था, जिसके साथ वह आपसी सहमति के साथ रिश्ते में थी।
पति की जगह पर पार्टनर के जिक्र को दिया था हवाला
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि- 'गर्भपात से सिर्फ इसलिए मना नहीं किया जा सकता कि एक महिला अविवाहित है। बेंच ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में 2021 के संशोधन का उल्लेख करते हुए बताया कि- 'इसमें पति की जगह पार्टनर का जिक्र किया है। अदालत ने कहा कि यह बात कानून की मंशा को दर्शाती है कि यह अविवाहित महिलाओं को एक दायरे में रखता है।' हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि- 'कानून अविवाहित महिलाओं को मेडिकल प्रक्रिया के जरिए ही गर्भपात के लिए समय भी देता है।' विधायकों ने आपसी सहमति से संबंध को किसी मक्सद से ही उन मामलों की श्रेणी से बाहर रखा है यहां पर 20 हफ्तों के बीच गर्भपात की इजाजत होती है ।