खाने के साथ कुरकुरे करारे पापड़ हो जाए तो स्वाद दोगुना हो जाता है और पापड़ों की बात हो तो मुंह में सबसे पहले 'लिज्जत पापड़ों' का स्वाद आता है। आपके टीवी पर इसकी एड भी देखी होगी। लॉकडाउन के वक्त एक बार फिर दूरदर्शन में इसकी एड आनी शुरु हो गई लेकिन क्या आप जानते हैं इन कुर्रम-कुर्रम पापड़ों को तैयार को करता हैं नहीं तो आपको बता दे कि इसके पीछे का श्रेय जाता है गुजराती महिलाओं का। जिन्होंने महज 80 रुपए से इस काम को शुरु किया जो इतना सक्सेसफुल हो गया कि करीब 800 करोड़ रुपए का कारोबार बन गया।
15 मार्च, 1959 को जसवंतीबेन अपने 6 दोस्तों के साथ गिरगाम, महाराष्ट्र में एक छत पर मिलीं और ₹80 की राशि का उपयोग करके पापड़ बनाना शुरू किया, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता छगनलाल करमशी पारेख से उधार लिया गया था। आज, उस ब्रांड को लिज्जत पापड़ कहा जाता है, और यह 81 शाखाओं के साथ ₹1,600 करोड़ का व्यवसाय बन गया है। यह ब्रांड आज देशभर में 45,000 से अधिक महिलाओं को रोजगार देता है, जिनमें से सभी को उद्यम में सह-मालिक माना जाता है। उनकी यात्रा को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने 91वर्षीय उद्यमी को देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री पुरस्कार दिया।
तो चलिए आज हम आपको लिज्जत पापड़ की कहानी ही बताते हैं...
7 सहेलियों की मेहनत और 80 रु. की उधारी
गुजराती में लिज्जत का मतलब होता है स्वाद। लिज्जत पापड़, एक संगठन है जो सिर्फ पापड़ ही नहीं बल्कि मसालों से लेकर अन्य कई विभिन्न उत्पादों का निर्माण करता है। ये महिलाओं का समर्थन करने वाली भारत की सबसे पुरानी सहकारी समितियों में से एक भी है। कहानी की शुरुआत होती है साल 1950 से, जब 7 गुजराती महिलाओं ने पापड़ बनाने का काम शुरू किया और पापड़ का ही काम इसलिए चुना गया क्योंकि इन महिलाओं के पास पापड़ बनाने का ही हुनर था। हालांकि इन पापड़ों को घर में बनाना आसान लेकिन कारोबार की शक्ल देना मुश्किल था और इसमें सबसे बड़ी समस्या पैसों की थी।
इन महिलाओं ने इस स्थिति में एक सामाजिक कार्यकर्ता छगनलाल कमरसी पारेख से 80 रुपए उधार लिए और इसी रकम से पापड़ को एक उद्योग में बदलने के लिए बुनियादी सामग्री खरीदी गई। 15 मार्च 1959 को उन्होंने पापड़ के पैकेट बनाना शुरु किए। ये पापड़ मुंबई की मार्केट भूलेश्वर के एक मशहूर मर्चेंट को बेचे जाने लगे। हालांकि उस समय इन महिलाओं के लिए कुछ भी आसान नहीं था। लेकिन छगनलाल पारेख उर्फ छगनबप्पा ने इनके लिए गाइड की तरह काम किया। उस वक्त ये महिलाएं दो ब्रांड के पापड़ बनाती थीं। एक सस्ते और एक महंगे लेकिन छगनबप्पा ने इन महिलाओं को सलाह दी कि वो अपनी गुणवत्ता से समझौता न करें। इसके बाद लिज्जत ने एक सहकारी प्रणाली के रूप में विस्तार करना शुरु किया।
दिन-रात काम कर खड़ा कर दिया 800 करोड़ का बिजनेस
बस महिलाओं की हुनर और मेहनत के दम पर काम चल पड़ा और देखते ही देखते कंपनी खड़ी हो गई। सबसे पहले इस बिजनेस में 25 महिलाएं जुड़ी और धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई। पहले साल कंपनी ने 6196 रुपए का बिजनेस किया। 1962 में, ग्रुप द्वारा 'लिज्जत' नाम को इसके उत्पादों के लिए चुना गया। संगठन का नाम श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ रखा गया।
कई और बेकरी फूड्स का भी शुरू किया काम
अपने पापड़ से सफलता का स्वाद चखने के बाद, लिज्जत ने अन्य उत्पादों जैसे खखरा, मसाला, गेहूं आटा और बेकरी उत्पादों का उत्पादन भी शुरू किया गया। इसके अलावा लिज्जत ने आटा मिलों, प्रिंटिंग डिवीजन और पॉलीप्रोपाइलीन पैकिंग डिवीजन की भी स्थापना की। 1980 और 1990 के दशक में, लिज्जत ने विदेशी पर्यटकों और अधिकारियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना शुरू किया। देखते ही देखते लिज्जत के प्रॉड्क्ट्स विदेश में भी जाने लगे।
हर किसी के लिए प्ररेणा इनकी कहानी
2002 में, लिज्जत ने 300 करोड़ रुपए का कारोबार किया और 10 करोड़ रुपए का निर्यात भी और तो और पूरे देश में 62 डिवीजनों में 42,000 लोगों को रोजगार दिया। जानकारी के अनुसार आपको बता दें कि इसका वर्तमान वार्षिक कारोबार 800 करोड़ रुपए का है। लिज्जत पापड़ की सफलता की कहानी हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है, जो कुछ कर गुजरने का जज्बा रखती हैं। इसलिए अगर आप अपने अंदर छिपे किसी भी हुनर को मालूमी समझती हैं तो इस सोच को आज ही बदल दें और खुद को आत्मनिर्भर बनाने की ओर एक कदम बढ़ा दें।