भारत के फेमस बिजनेसमेन रतन टाटा जी को भला कौन नहीं जानता? वह जितने बड़े बिजनेसमेन हैं उतने ही बड़े दरियादिल इंसान भी, अपने कमाए पैसे में वह एक बड़ा हिस्सा दान करते आए है। उनके दरियादिली के किस्से तो आए दिन लोग न्यूज व सोशल मीडिया पर सुनते हैं। टाटा साहेब द्वारा किए बहुत से काम ऐसे हैं जिन्होंने कईयों की जिंदगियों को संवार दिया। अब रतन टाटा जी खुद उम्रदराज हो चुके हैं और वह चाहते हैं कि अपनी जिंदगी के वह आखिरी साल हेल्थ केयर कार्यों को समर्पित करें। इसी को देखते हुए टाटा जी असम में अत्याधुनिक सुविधाओं वाले कैंसर के 7 अस्पतालों का उद्घाटन किया है। इस दौरान रतन टाटा ने साफ कर दिया कि वो अपने जिंदगी के अंतिम सालों को स्वास्थ्य के लिए समर्पित करेंगे।
हालांकि कैंसर हॉस्पिटल से उनका व टाटा ग्रुप का लगाव को नया नहीं है। आजादी से पहले सर दो दोराबजी टाटा ट्रस्ट ने मुंबई में टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल (TMH) की शुरुआत की थी जो दुनिया के कुछ सबसे बेहतरीन कैंसर अस्पतालों में से एक है। सर दोराबजी टाटा, ग्रुप के संस्थापक जमशेतजी टाटा के बड़े बेटे थे। सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट को सर दोराब टाटा जी ने बनाया था। दरअसल, टाटा मेमोरियल सेंटर बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। साल 1932 में लेडी मेहरबाई टाटा की ल्यूकेमिया से मौत हो गई थी। उनका इलाज लंबे समय तक विदेश में चला। इसके बाद सर दोराबजी टाटा जी को इस बात की धुन सवार हो गई कि वह भारत में कैंसर के इलाज के लिए विदेश जैसी सुविधाओं वाला रेडियम संस्थान शुरू करेंगे जिसकी योजना भी बनाई गई लेकिन सर दोराबजी की दुर्भाग्य से 1932 में मौत हो गई लेकिन सर दोराबजी टाटा का यह सपना ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने पूरा किया। इसकी शुरुआत 80 बेड के साथ हुई थी।
ये तो रतन टाटा जी का हेल्थ केयर को लेकर सपना है जो वह पूरा करना चाहते हैं लेकिन उम्र के एक पड़ाव में जहां व्यक्ति को एक हमसफर, एक साथी की जरूरत होती है वहीं रतन टाटा जी उम्रभर अकेले ही रहैं । उन्होंने शादी नहीं की। बेशुमार संपत्ति के मालिक जिन्होंने पूरी जिंदगी कुंवारे ही गुजार दी । बहुत से लोगों के मन में भी यहीं सवाल चलता है कि आखिर उन्होंने शादी क्यों नहीं की? उन्हें हमसफर क्यों नहीं मिला? ऐसा नहीं की उन्हें प्यार हुआ नहीं बल्कि उन्हें जिससे प्यार हुआ वह इतना गहरा था कि जब वह पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने शादी जैसे शब्द ही अपनी जिंदगी से बाहर निकाल फेंक दिया। दरअसल, उनका सच्चा प्यार अधूरा रह गया था।
इस बारे में भी उन्होंने ही एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वो लॉस एंजलिस में थे और आर्किटेक्चर फर्म में काम करते थे उस दौरान उनकी मुलाकात एक लड़की से हुई थी और उसी लड़की के लिए उनका दिल धड़का था। वह भी उन्हें पसंद करती थी दोनों अपने रिश्ते को शादी की मुकाम तक ले जाना चाहते थे। लेकिन रतन टाटा को इंडिया वापिस आना पड़ा। वह अपनी बीमार दादी की देखभाल के लिए वापिस भारत आए थे। इसके बाद वह फिर अमेरिका गए और अपनी प्रेमिका को इंडिया लाने का मन बनाया लेकिन साल 1962 के भारत-चीन युद्ध ने ऐसा नहीं होने दिया क्योंकि लड़की के पेरेंट्स ने युद्ध के कारण उसे भेजने से इंकार कर दिया जिसके बाद उनका रिश्ता टूट गया।
इसके बाद रतन टाटा ने किसी और प्यार की तलाश नहीं की और ना ही टाटा साहेब का दोबारा दिल धड़का, यहां तक कि उन्होंने शादी करने का सपना ही छोड़ दिया। उन्होंने खुद को पूरी तरह पैतृक बिजनेस 'द टाटा ग्रुप' के लिए समर्पित कर दिया और उसे बुलंदियों तक ले गए। जहां लोग प्यार टूटने पर डिप्रेशन में चले जाते हैं गलत आदतों को अपना लेते हैं गम में डूब जाते हैं। वहीं रतन टाटा जी ने खोए प्यार को अपनी ताकत बना लिया पूरी तरह काम में फोकस किया और आगे बढ़ते गए। आज उनकी सक्सेस की कहानी लोगों की जुबानी है। आपको हमारा ये पैकेज कैसा लगा हमें कमेंट बॉक्स में बताना ना भूलें।