नारी डेस्क: प्रीमैच्योर बेबी यानि जिन बच्चों का जन्म नौ महीने से पहले हो जाता है, उन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। एक अध्ययन में दावा किया गया कि समय से पहले जन्म लेने के प्रभाव किसी व्यक्ति को तब तक प्रभावित कर सकते हैं जब तक कि वह लगभग 30 वर्ष का न हो जाए । प्रेग्नेंसी के 37वें सप्ताह से पहले पैदा हुए बच्चों को प्री-टर्म बेबी कहा जाता है। जानिए इसके बारे में विस्तार से क्या आती हैं उन्हें दिक्कतें।
कम कमाते हैं प्रीमैच्योर बच्चे
कनाडा के शोधकर्ताओं, ने 1990 और 1996 के बीच 24 लाख व्यक्तियों के डेटा का विश्लेषण किया, जिसमें से लगभग सात प्रतिशत का जन्म समय से पहले हुआ था। औसतन, गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले पैदा हुए लोग शिक्षा के निम्न स्तर वाले पाए गए और कम आय अर्जित करते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि 18-28 वर्ष की आयु में समय से पहले जन्मे व्यक्तियों की औसत वार्षिक आय समय से पहले जन्मे लोगों की तुलना में छह प्रतिशत कम थी।
प्रीमैच्योर बच्चों को ज्यादा देखभाल की जरूरत
प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि गर्भावस्था के 24-27 सप्ताह के बीच पैदा हुए बच्चों में, जो "बेहद समय से पहले" थे, वार्षिक आय 17 प्रतिशत कम पाई गई। " प्रीमैच्योर बच्चों का विकास अक्सर थोड़ा धीमा होता है क्योंकि उनके अंग और मांसपेशियां पूरी तरह विकसित नहीं हो पाती हैं। ऐसे बच्चों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है ताकि वे धीरे-धीरे अन्य बच्चों के विकास स्तर पर आ सकें।
बच्चों की इस तरह करें देखभाल
स्वस्थ और पौष्टिक आहार दें: प्रीमैच्योर बच्चों के विकास के लिए मां का दूध सबसे अच्छा होता है क्योंकि इसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं। यदि मां का दूध पर्याप्त न हो, तो डॉक्टर के निर्देशानुसार फॉर्मूला मिल्क या अन्य सप्लिमेंट का उपयोग कर सकते हैं। बच्चों के वजन और पोषण स्तर को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर डॉक्टर से सलाह लें।
नियमित चिकित्सा परामर्श लें: प्रीमैच्योर बच्चों की देखभाल में नियमित रूप से डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी होता है। उनके शारीरिक विकास, वजन और स्वास्थ्य को जांचते रहना चाहिए। आंखों, कानों और अन्य अंगों का नियमित चेकअप कराएं क्योंकि प्रीमैच्योर बच्चों में कुछ स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा अधिक होता है।
बच्चों के साथ त्वचा का संपर्क बनाए रखें: मां का त्वचा के साथ त्वचा का संपर्क (कंगारू केयर) प्रीमैच्योर बच्चों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इससे बच्चे को गर्मी और सुरक्षा महसूस होती है, जिससे उनका विकास बेहतर हो सकता है। यह संपर्क बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक होता है और बच्चे की इम्युनिटी को भी बढ़ाता है।
व्यायाम और मालिश: नियमित मालिश से मांसपेशियों का विकास होता है। हल्के हाथों से बच्चे की मालिश करें ताकि उनकी त्वचा को आराम मिले और रक्त संचार बेहतर हो। डॉक्टर की सलाह से किसी विशेष चिकित्सा जैसे फिजियोथेरपी, ऑक्यूपेशनल थेरपी, या स्पीच थेरपी की जरूरत हो सकती है। ये थेरपीज़ बच्चे के संपूर्ण विकास में सहायक हो सकती हैं।
संक्रमण से बचाव: प्रीमैच्योर बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, जिससे उन्हें संक्रमण का खतरा अधिक होता है। किसी भी संक्रमण के संपर्क में आने से बचाने के लिए हाथों की सफाई का खास ध्यान रखें। जब तक बच्चे की इम्यूनिटी मजबूत न हो जाए, उन्हें भीड़भाड़ वाले स्थानों से दूर रखें और सभी लोगों को बच्चे के संपर्क में आने से पहले हाथ धोने की आदत अपनाने के लिए कहें।
विकास का रिकॉर्ड रखें: - उनके वजन, लंबाई, नींद के पैटर्न, और अन्य महत्वपूर्ण मापदंडों का रिकॉर्ड रखें और इन्हें समय-समय पर डॉक्टर से मिलकर जांचते रहें। धीमे-धीमे ही सही, लेकिन हर महीने कुछ बदलाव दिखने चाहिए, जिससे बच्चे की सेहत का सही अनुमान लग सके। इन सभी उपायों के साथ, आपको धैर्य और सकारात्मकता बनाए रखनी चाहिए। समय से पहले जन्मे बच्चे धीरे-धीरे सही देखभाल और पोषण से विकास करने लगते हैं।