भारतीय समाज में आयुर्वेद को बहुत ही महानता दी जाती है। मगरआयुर्वेद ने समाज को सिर्फ रोगों का उपचार ही नहीं बल्कि शिशु के जन्म के बाद उसके पालन- पोषण से जुड़ी बहुत ही जानकारी भी दी गई है। इन बातों को भारतीय लोग आज भी मानते हैं। मगर कुछ लोग पश्चिमी सभ्यता से जुड़ने के कारण इससे अलग हो रहे हैं। मगर इसके सिद्धांतों व नियमों को जीवन में अपनाने से शिशु का बेहतर तरीके से विकास होता है। ऐसे में अगर आप आयुर्वेद में रूचि रखते हैं तो चलिए जानते हैं शिशु की देखभाल से जुड़े कुछ नियम...
खुशियों को मनाना
बच्चा पैदा होने पर उसकी खुशी मनाने के लिए भारतीय लोग उत्सव मनाते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, इसतरह घर के सभी सदस्य व रिश्तेदार एक साथ मिलकर इस खुशी का आनंद मनाते हैं, जो जीवनभर उन्हें याद रहती है। साथ ही समाज में पॉजीटिव रहने के लिए प्रेरित करती है। इसतरह शिशु के जन्म के बाद नामकरण, खाने खिलाने की रस्म, मुंडन आदि का उत्सव एक साथ सेलिब्रेट किया जाता है।
बच्चे की तेल मालिश
बच्चे की ग्रोथ के लिए उसके शरीर की तेल से मसाज की जाती है। इससे बच्चे की हड्डियों व मांसपेशियों में मजबूती आती है। ब्लड सर्कुलेशन बेहतर तरीके से काम करने के साथ शरीर के सभी अंगों को पोषण मिलता है। ऐसे में बच्चे का विकास बेहतर तरीके से होने में मदद मिलती है। इसके साथ मसाज करने से ये अन्य फायदे भी मिलते हैं...
हड्डियों व मांसपेशियों में मजबूती आती है।
बालों की ग्रोथ तेजी से होती है।
अच्छी व गहरी नींद आती है।
शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
ब्लड सर्कुलेशन बेहतर तरीके से होता है।
बच्चे का पेरेंट्स से जुड़ना
बात अगर पश्चिमी सभ्यता की करें तो वे अपने बच्चे को जन्म को कुछ महीनों बाद ही खुद से अलग सुलाने लगते हैं। उनके अनुसार, इसतरह बच्चा आत्मनिर्भर होता है। मगर भारत में पेरेंट्स करीब 3-4 साल तक बच्चे को अपने पास रख कर उसकी देखभाल करते हैं। ऐसा करने से बच्चा पेरेंट्स के साथ दिल से ज्यादा जुड़ता है। बच्चे को गोद में उठाना, सुलाना व बात करना आदि कामों को करने से उसकी ग्रोथ बेहतर तरीके से होने के साथ सुरक्षा महसूस होती है। साथ ही शरीर की गर्माहट मिलने से बच्चे को अच्छी व गहरी नींद आने में मदद मिलती है।
स्तनपान कराना
आयुर्वेद के अनुसार, शिशु को स्तनपान करवाने से उसकी सेहत बरकरार रहती है। असल में, मां के दूध में सभी जरूरी विटामिन्स और मिनरल्स होते हैं। ऐसे में इससे बच्चे की इम्यूनिटी स्ट्रांग होने से बीमारियों के होने का खतरा कई गुणा कम रहता है। साथ ही सभी जरूरी तत्व एक साथ ही मिल जाते हैं। ऐसे में बच्चे का विकास बेहतर ढंग से होने में मदद मिलती है।
हाथ से बना व घर का खाना
पश्चिमी सभ्यता में शिशु को पैकेटबंद चीजें खाने के लिए दी जाती है। मगर भारत में सभी लोग अपने बच्चे को शुरूआती समय में उबले आलू, दाल का पानी, खिचड़ी, फल, दलिया आदि खिलाने की परंपरा निभाई जाती हैं। असल में, इसतरह घर पर तैयार भोजन को खाने से बच्चे का विकास बेहतर तरीके से होता है। साथ ही यह खाना केमिकल्स नहीं बल्कि बिल्कुल शुद्ध होता है।