जन्माष्टमी का त्योहार इस बार दो 6 और 7 सितंबर दो दिन मनाया जा रहा है। इस दिन लोग श्रीकृष्ण की लड्डू गोपाल के रुप में पूजा करते हैं। इसके अलावा कुछ भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखकर श्रीकृष्ण जी की कृपा पाते हैं। जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण जी को 56 तरह के भोग लगाने की परंपरा काफी समय से चल रही है। श्रीकृष्ण को लगने वाले इस भोग को अन्नकूट भी कहा जाता है। श्रीकृष्ण को अर्पित किए सारे 56 व्यंजनों के अलग नाम होते हैं लेकिन श्रीकृष्ण को 56 भोग क्यों लगता है और इसके पीछे क्या मान्यता है आज आपको इस बारे में बताएंगे। आइए जानते हैं...
देवराज इंद्र से जुड़ी है एक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाने की परंपरा देवराज इंद्र के घमंड से जुड़ी हुई है। भगवान श्रीकृष्ण ने जब गोवर्धन की पूजा की थी तो देवराज इंद्र नाराज हो गए थे । नाराज होने के कारण उन्होंने क्रोध में खूब बारिश की थी ताकि ब्रज के लोग माफी मांगने पर मजबूर हो जाएं लेकिन तब बृज वासियों की रक्षा करने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया और सारे बृज वासियों को इस पर्वत के नीचे आने के लिए कहा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक बिना कुछ खाए पिए गोवर्धन पर्वत उठाया था। बाद में जब इंद्र को अपने भूल का एहसास हुआ तो उन्होंने कान्हा जी से माफी मांगी फिर जब 7वें दिन बारिश रुकी तो मां यशोदा ने बृजवासियों के मिकर कान्हा जी के लिए 7 दिनों के 8 प्रहर के अनुसार छप्पन भोग तैयार किए थे। तभी से श्रीकृष्ण की पूजा में छप्पन भोग अर्पित किया जाता है। भोग में दाल चावल, चटनी, कढ़ी, घेवर, दलिया, मक्खन, इलायची, जलेवी समेत कई सारे व्यंजन शामिल हैं।
गोपियों से जुड़ी है एक कथा
वहीं पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, एक बार गोकुल की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पाने के लिए पूरे महीने यमुना में ब्रह्मा मुहूर्त में स्नान किया। सभी गोपिया श्रीकृष्ण को अपने वर के रुप में देखना चाहती थी ऐसे में उन्होंने स्नान किया और मां कात्यानी से श्रीकृष्ण को वर के रुप में देखने की मन्नत मांगी। मन्नत पूरे करने के बदले गोपियों ने मां कात्यानी से उद्यापन में 56 तरह के आहार देने की मांग रखी थी। तभी से श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाया जाता है।
56 भोग में शामिल होते हैं ये आहार
भगवान श्रीकृष्ण के भोग में कई तरह के व्यंजन शामिल होते हैं। जैसे भक्त(भात), सूप(दाल), प्रलेह(चटनी), सदिका(कढ़ी), दधिशाकजा(दही शाक की कढ़ी), सिखरिणी(सिखरन), अवलेह(शरबत), बालका(बाटी), इक्षु खेरिणी(मुरब्बा), त्रिकोण(शर्करा युक्त), बटक(बड़ा), मधु शीर्षक(मठरी), फेणिका(फेनी), परिष्टाक्ष्च(पूरी), शतपत्र(खजला), सधिद्रक(घेवर), चक्राम(मालपुआ), चिल्डिका(चोला), सुधाकुंडलिका(जलेबी), धृतपूर(मेसू), वायुपूर(रसगुल्ला), चंद्रकला(पगी हुई), दधि(महारायता), स्थूली(थूली), कर्पूरनाड़ी(लौंगपूरी), खंडमंडल(खुरमा), गोधूम(दलिया), परिखा, सुफलाढया(सौंफ युक्त), मोदक(लड्डू), दधिरुप(बिलसारु), शाक(साग), सौधान(अधानौ अचार), मंडका(मोठ), पायस(खीर), दधि(दही), गोघृत(गाय का घी), हैयंगपीनम(मक्खन), मंडूरी(मलाई), कूपिका(रबड़ी), पर्पट(पापड़), शक्तिका(सीरा), लसिका(लस्सी), सुवत, संघाय(मोहन), सुफला(सुपारी), सिता(इलायची), फल, तांबूल, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, अम्ल।