22 DECSUNDAY2024 11:09:44 PM
Nari

अहिंसा के दम पर ही महात्मा गांधी जी ने हिला दी थी अग्रेंजों की हुकूमत

  • Edited By neetu,
  • Updated: 02 Oct, 2020 06:18 PM
अहिंसा के दम पर ही महात्मा गांधी जी ने हिला दी थी अग्रेंजों की हुकूमत

भारत देश आज यानि 2 अक्तूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जयंती के साथ 'विश्व अहिंसा दिवस' भी मना रहा है। गांधी जी में अहिंसा, त्याग, तपस्या की भावना के साथ वे एक महान व आदर्श शख्सियत के मालिक भी थे। उन्होंने अहिंसा के पथ पर चल कर ही अत्याचारी और एवं क्रूरता से भरी अंग्रेजी सरकार को हिलाकर रख दिया था। अपने इसी मार्ग पर अटल रहकर उन्होंने पूरी दुनिया को शांति व सच्चाई के रास्ते पर चलने की सीख दी। 

तन नहीं मन को कष्ट देना भी हिंसा

गाँधी जी के अनुसार, ‘अहिंसा’ का अर्थ किसी जीव को केवल शारीरिक कष्ट पहुँचाना नहीं है। बल्कि, मन एवं वाणी द्वारा किसी को कष्ट पहुँचाना भी ‘अहिंसा’ की श्रेणी में आता है। ऐसे में गांधी जी ने शांति व अहिंसा के मार्ग पर चल कर अंग्रेंजों को भारत छोड़ने पर मजबूत किया। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय सेनानी को नरम दल और गरम दल 2 भागों में बांटा गया था, जिनमें नरम दल का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था। मगर इस बीच गरम दल वाले क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी गाँधी जी को इस राह पर चलने के लिए ‘कायरता’ की संज्ञा देते थे। मगर फिर भी वे अपने इसी  मार्ग पर चल कर ही आजादी के लिए लड़े। 

nari,PunjabKesari

सत्य के मेरे प्रयोगः सत्य की राह पर चले

गांधी  जी ने जीवनभर सत्य का ही साथ दिया। अपने इसी सिद्धान्त का पालन करते हुए उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के मेरे प्रयोग’ में अपनी जीवन की उन सभी बातों को लिखा जो उन्होेंने सत्य के रास्ते पर चल कर हासिल की। गांधी जी की इस पुस्तक को पढ़ने व उनके सिद्धांतों व विचारों को अपनाने से जीवन के हर एक मोड़ पर सफलता मिल सकती है। 

निजी स्वार्थ के चलते ना छोड़े धर्म, सत्य और अहिंसा का मार्ग

गाँधी जी के अनुसार, किताबों को पढ़ने के बाद उसका ज्ञान भूल जाना व सीख न लेना बेहद ही दुर्भाग्य की बात मानी जाती है। उनके अनुसार हमें अपने निजी स्वार्थ के चलते धर्म, सत्य एवं अहिंसा के मार्ग को कभी भी छोड़ने की गलती नहीं करनी चाहिए। साथ ही वे किसी के द्वारा कोई उपकार करने पर उसे धन्यवाद करने की भी सीख देते हैं। उनका कहना था कि ‘‘जो हमें पानी पिलाने, खाना खिलाने, सुख- दुख में साथ, मान-सम्मान देने के साथ हमारे लिए पैसा खर्च करता है। उसके प्रति दिल में और भी प्यार व सम्मान बढ़ता है। ऐसे में इन लोगों का हमेशा सत्कार करना चाहिए। साथ ही सच्चा और सही जीवन उसी का कहा जाएगा जो खुद पर गलत होने पर भी सामने वाले को दुखी न करें। ऐसे में गांधी जी का यह गुण अपनाकर कोई भी एक आदर्श व नेक इंसान बन सकता है। 

 

सहनशीलता को अपनाना जरूरी 

गांधी जी जीवन में सहनशीलता को अपनाने पर जोर देते थे।  वह कहते थे कि दुनियाभर में जितनी भी परेशानियां, कष्ट व लड़ाई- झगड़े होते है उनका मुख्य कारण असहनशीलता है। यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मार दे तो लड़ने की जगह उसके सामने अपना दूसरा गाल आगे कर दें। इसी के साथ उन्होंने बुरी संगत से बचने से बचने व ब्रह्मचर्य का पालन करने को कहा।

nari,PunjabKesari

क्रोध विनाश की जड़ है

क्रोध विनाश की जड़ हैं और इसी सिद्धांत पर चलते थे गांधी जी। उनके अनुसार,  'क्रोध एक प्रचण्ड अग्नि है जो मनुष्य इस अग्नि को वश में कर सकता है, वह उसको बुझा देगा।' अपने गुस्से पर काबू पाने के लिए गांधी जी ने मौन यानी चुप रहने का मंत्र दिया है। इसके साथ ही उन्होंने शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि इसका मतलब सिर्फ ज्ञान पाना ही नहीं बल्कि आर्थिक स्थिति मजबूत करना भी है।


शुरूआती शिक्षा हिंदी हो

गांधी जी कहते थे  कि अंग्रेजी पर जोर देने की जगह बच्चे की शुरूआती शिक्षा हिंदी से शुरू होनी चाहिए। बेहद दुख है कि लोग भारतीय होने के बाद भी अंग्रेजी को अहमियत देते हैं। उनके अनुसार अग्रेंजी पढ़ना या बोलना गलत नहीं है पर हिंदी को अहमियत न देना गलत है। उनके सांकेतिक बंदर ‘कभी बुरा मत देखो’, ‘कभी बुरा मत सुनो’ और ‘कभी बुरा मत बोलो’ भी यहीं संदेश देते हैं।

Related News