महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन में स्थित, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह मंदिर अपनी विशेष श्रृंगार की प्रथा के लिए प्रसिद्ध है। यह प्रथा सदियों से चली आ रही है और इसमें विशेष प्रकार से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है। माना जाता है कि यह प्रथा लगभग 1,000 साल से भी अधिक पुरानी है। इस प्रथा का उल्लेख पुराणों और प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है, जिससे इसका प्राचीनता और धार्मिक महत्व स्पष्ट होता है।
भोले बाबा का श्रृंगार कैसे किया जाता है
विशेष श्रृंगार की प्रक्रिया की शुरुआत भस्म आरती से होती है। इसमें भगवान शिव को ताजे जले हुए गोबर के भस्म से अभिषेक किया जाता है। यह आरती सुबह बहुत ही जल्दी, ब्रह्म मुहूर्त में की जाती है। भस्म आरती के बाद भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। इसमें दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से स्नान कराया जाता है। इसके बाद गंगाजल से भी स्नान कराया जाता है।
भगवान शिव को पहनाए जाते हैं विशेष वस्त्र
अभिषेक के बाद भगवान शिव को विशेष वस्त्र पहनाए जाते हैं। इनमें रेशम के वस्त्र, मुकुट, माला, और अन्य आभूषण शामिल होते हैं। भगवान शिव को फूलों से भी सजाया जाता है।विशेष प्रकार के चंदन और विभूति (भस्म) का लेप भगवान शिव के लिंग पर लगाया जाता है। भगवान शिव के लिंग पर बेलपत्र, धतूरा, आक के फूल, और अन्य पवित्र फूल चढ़ाए जाते हैं।
इस श्रृंगार से जुड़ी कहानी
महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती और विशेष श्रृंगार की प्रथा से जुड़ी कई कहानियां हैं। एक प्रमुख कहानी के अनुसार, जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया, तब उन्होंने अपने शरीर पर भस्म का लेप किया था। इसके बाद से ही भस्म का लेप भगवान शिव की पूजा का अभिन्न अंग बन गया।
श्रृंगार करने वाले पंडित
महाकालेश्वर मंदिर में विशेष श्रृंगार की प्रक्रिया में कई पंडित शामिल होते हैं। यह पंडित विशेष रूप से प्रशिक्षित होते हैं और प्राचीन परंपराओं का पालन करते हुए भगवान शिव का श्रृंगार करते हैं। इस प्रक्रिया में लगभग 5-7 पंडित शामिल होते हैं, जो विभिन्न चरणों में श्रृंगार करते हैं। यह विशेष श्रृंगार प्रक्रिया सुबह बहुत ही जल्दी शुरू होती है और कुछ घंटों तक चलती है।