स्त्री-पुरुष समानता के लिहाज से अग्रणी संगठनों में काम करने वाली महिला कर्मचारियों में 'पिछड़े' संगठनों की तुलना में तीन गुना अधिक वफादारी, उत्पादकता और प्रेरणा होती है। एक सर्वेक्षण में यह आकलन पेश किया गया है। सलाहकार फर्म डेलॉयट की जारी 'वूमेन एट वर्क' रिपोर्ट के मुताबिक, घर के बजाय दफ्तर जाकर काम करने का रुझान बढ़ने से कई महिला पेशेवरों के लिए तालमेल बिठा पाना मुश्किल हो गया है।
बदले हुए हालात में लगभग 41 प्रतिशत महिलाओं ने अपने काम के घंटे कम करने की मांग की है जबकि 31 प्रतिशत महिलाओं ने इसका मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ने की बात कही है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि दफ्तर और 'वर्क फ्रॉम होम' के मिले-जुले रूप यानी हाइब्रिड मॉडल में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के लिए हालात थोड़े बेहतर नजर आ रहे हैं।
डेलॉयट के मुताबिक, स्त्री-पुरूष समानता के लिहाज से अग्रणी (जीईएल) संगठनों के लिए काम करने वाली महिलाओं में 100 के पैमाने पर वफादारी 76, उत्पादकता 75 और प्रेरणा एवं अपनेपन की भावना का स्तर 71 रहा है। सर्वेक्षण के मुताबिक, स्त्री-पुरूष समानता के स्तर पर 'पिछड़े' संगठनों के लिए काम करने वाली महिलाओं का प्रदर्शन इन सभी मानकों पर काफी खराब है। यह सर्वेक्षण भारत समेत 10 देशों की 5,000 महिलाओं के विचारों पर आधारित है।
डेलॉयट इंडिया की मुख्य खुशहाली अधिकारी सरस्वती कस्तूरीरंगन ने कहा- "जब महिला पेशेवरों के करियर को आगे बढ़ाने पर लक्षित नीतियां अमल में आएंगी तो आप आगे बढ़ने के लिए बेहतर स्थिति में होंगे। इसकी वजह यह है कि आपको सर्वोत्तम दृष्टिकोण और एक प्रेरित, लैंगिक-विविधता वाला कार्यबल मिल रहा है।'' हालांकि यह सर्वे बताता है कि बच्चों की देखभाल और वयस्कों की देखभाल के मामले में महिलाएं अब भी बड़ी जिम्मेदारी निभा रही हैं। लेकिन महिला के प्राथमिक कमाऊ सदस्य होने की स्थिति में उनके जोड़ीदार इन जिम्मेदारियों में सहयोग करते हैं। कस्तूरीरंगन ने कहा, "भारत में कामकाजी संगठन बच्चे की देखभाल करने वाली घरेलू सहायिका को दिए जाने वाले वेतन की भरपाई के अलावा अपने यहां ‘डे-केयर' का इंतजाम भी कर सकते हैं।"