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Basant Panchami पर करें इन चीजों का दान, होगी शुभफल की प्राप्ति

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 25 Jan, 2023 04:24 PM
Basant Panchami पर करें इन चीजों का दान, होगी शुभफल की प्राप्ति

माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसलिए इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत ऋतु और बसंत पंचमी का महत्व भी अलग है। इस साल बसंत पंचमी 26 जनवरी यानि माघ शुक्ल पंचमी को है। आइए जानें बसंत पंचमी का इतिहास, महत्व और मान्यताएं। ये भी जानें कि इस दिन किन चीजों के दान से शुभफल मिलता है।

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बसंत पंचमी तिथि और शुभ मुहूर्त

बसंत पंचमी 2023 तिथि:  26 जनवरी 2023

माघ मास की पंचमी तिथि प्रारंभ:  25 जनवरी 2023 को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से शुरु
माघ मास की पंचमी तिथि समाप्त:  26 जनवरी 2023 को सुबह 10 बजकर 28 मिनट तक
बसंत पंचमी पूजा मुहूर्त: 26 जनवरी 2023 को सुबह 7 बजकर 12 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक

बसंत पंचमी के दिन करें ये चीजें दान

1. मां सरस्वती को विद्या, बुद्धि, गायन, वादन, स्वर की देवी माना जाता है इसलिए सरस्वती पूजा के दिन इनसे जुड़ी वस्तुओं का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

2. बसंत पंचमी के दिन विभन्न स्कूलों और शिक्षण संस्थानों में मां सरस्वती की पूजा होती है। ऐसी जगहों पर जा कर कलम, दवात, पैन, पेंसिल, कॉपी किताब जैसी पढ़ाई से संबंधित वस्तुओं का दान करना अच्छा माना जाता है।

3. स्टेशनरी के सामानों में पेन, पेंसिल, कलर बॉक्स, स्टूमेंट्स,रबर,कलर बॉक्स, स्केल, ज्योमेट्री बॉक्स , कलर पेंसिल, कलर पेन, स्कूल बैग जैसी कई चीजों में अपनी पसंद का कुछ भी चुन सकते हैं।

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जानें सरस्वती पूजन का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तुओं सबकुछ दिख रहा था, लेकिन उन्हें किसी चीज की कमी महसूस हुई। इस कमी को पूरा करने के लिए उन्होनें कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुदंर स्त्री के रुप में एक देवी प्रकट हुई। इनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। तसीरे में माला और चौथे में वर मुद्रा थी। ये थी देवी मां सरस्वती।

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मां सरस्वती ने जब वीणा बजायी तो पूरे दुनिया में हर चीज में स्वर आ गया। इसी के लिए उनका नाम मां सरस्वती पड़ा। कहा जाता है कि उस दिन बसंत पंचमी का दिन था। तभी से देव लोक और मृत्युलोक में इस दिन विशेष रुप से मां सरस्वती की पूजा होने लगी।

 


 

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