नारी डेस्क: भारत का सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल बाजार जो कभी अपनी अनूठी पेशकशों के लिए जाना जाता था अब मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। क्योंकि बढ़ते Competition के कारण लोगों के पास एक नही कई ऑप्शन आ गए हैं। भारत कॉस्मेटिक उद्योग में वर्ष 2022 में सबसे अधिक राजस्व उत्पन्न करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया था।
बाजार में तेजी से आ रहे हैं नए ब्रांड
सूचीबद्ध बाज़ार नाइका का वित्त वर्ष 25 की जून तिमाही में खर्च बढ़कर 11,731 करोड़ हो गया, जो एक साल पहले 1,418 करोड़ था। एक अन्य सूचीबद्ध उपभोक्ता ब्रांड, होनासा कंज्यूमर, जो मामाअर्थ एक्वालॉजिका और द डर्मा कंपनी का मालिक है, ने इस अवधि के दौरान 1520 करोड़ खर्च किए जबकि एक साल पहले यह 14-43 करोड़ था। हाल के वर्षों में कई नए ब्रांड बाज़ार में आए हैं, जिनका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्किनकेयर और सौंदर्य उत्पाद पेश करके भारतीय प्रवासियों तक अपनी पहुंच बनाना है।
बदलाव की जरूरत
वहीं बाजार के जानकारों का कहना है कि- " केवल वही ब्रांड टिके रहेंगे जो अलग पहचान रखते हैं और नयापन लाना जारी रखते हैं। नहीं तो वह नष्ट हो जाएंगे क्योंकि Overall Scenario तेज़ी से बदल रहा है। नाइका की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल (बीपीसी) बाज़ार चार साल में मौजूदा $21 बिलियन से बढ़कर $34 बिलियन हो जाने की उम्मीद है, जिससे यह दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला बाजार बन जाएगा।
बेहतर कमाई कर रहे हैं नए ब्रांड
स्किनकेयर ब्रांड प्लम के संस्थापक और सीईओ शंकर प्रसाद ने कहा कि शैंपू, फेस सीरम और यहां तक कि लिपस्टिक जैसे उत्पादों के क्षेत्र में भी कई कंपनियों ने इस क्षेत्र को आकर्षक पाया है। बीपीसी में आमतौर पर खाद्य पदार्थों जैसी अन्य श्रेणियों की तुलना में अधिक मार्जिन होता है, जिससे ब्रांड बेहतर कमाई कर पाते हैं। उदाहरण के लिए, सूचीबद्ध कंपनियों मामाअर्थ और मिनिमलिस्ट की सफलता की कहानियों ने कई संस्थापकों को इस क्षेत्र में कदम रखने के लिए प्रेरित किया है।
युवा उपभोक्ताओं पर दिया जा रहा जोर
शुगर कॉस्मेटिक्स के सह-संस्थापक और मुख्य परिचालन अधिकारी कौशिक मुखर्जी ने पिछले महीने कहा-, "आप कोई भी उत्पाद नहीं बना सकते, उस पर लेबल चिपका सकते हैं और उम्मीद कर सकते हैं कि यह अच्छा प्रदर्शन करेगा। ऐसे कई ब्रांड हैं जो जल्दी पैसा कमाने की उम्मीद में आते हैं। लेकिन टिके रहना मुश्किल है।" शुगर अपने 14 से 24 वर्ष की आयु के युवा उपभोक्ताओं पर दोगुना जोर दे रहा है, उत्पाद लॉन्च में तेजी ला रहा है और अधिक मूल्य-सचेत वस्तुओं को पेश कर रहा है, जिससे उसे उम्मीद है कि विकास के अगले चरण में युवाओं की क्षमता ही विकास को गति देगी।