नारी डेस्क: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ का कहना है कि कहा कि निजी और सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए कानूनी प्रावधानों की कोई कमी नहीं है, लेकिन अकेले कानून से न्यायपूर्ण व्यवस्था नहीं बन सकती। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समाज को भी अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है।
सख्त कानूनों की कमी नहीं : CJI चंद्रचूड़
एक चैनल के शक्ति कार्यक्रम में बोलते हुए, CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि- "हमें पुरुषों की गलती से परे देखने की संस्थागत और व्यक्तिगत क्षमता को बढ़ावा देना चाहिए। निजी और सार्वजनिक स्थितियों में महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए सख्त कानूनों की कमी नहीं है, लेकिन केवल कड़े कानूनों सहित अच्छे कानून से न्यायपूर्ण समाज नहीं बनता। सबसे बढ़कर हमें अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है"।
महिलाओं को मिले सारे अधिकार: CJI चंद्रचूड़
CJI ने कहा- " महिलाओं के लिए रियायतें देने से हटकर स्वतंत्रता और समानता के आधार पर जीवन जीने के उनके अधिकार को मान्यता देने की मानसिकता होनी चाहिए। हमें महिलाओं की स्वतंत्रता और विकल्पों का उल्लंघन करने वाले स्पष्ट रूप से सुरक्षात्मक कानूनों के खिलाफ उत्साहपूर्वक रक्षा करनी चाहिए,"।
महिलाओं से बहुत कुछ सीखने की जरूरत: CJI चंद्रचूड़
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चंद्रचूड़ ने कहा- "महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात करना महिलाओं का काम नहीं है। मैंने अपनी महिला सहकर्मियों से जीवन के कुछ बेहतरीन सबक सीखे हैं। मेरा मानना है कि बेहतर समाज के लिए महिलाओं की समान भागीदारी महत्वपूर्ण है "। उन्होंने कहा- "भारत के संविधान को अपनाने से पहले, भारतीय महिला जीवन चार्टर का मसौदा हंसा मेहता ने तैयार किया था, जो नारीवादी थीं।"