कार्तिक का पावन महीना चल रहा है। इस दौरान लगातार कई व्रत आने से इसे पर्व मास भी कहा जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का शुभ दिन भी आता है। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति व उनके सुखमय भविष्य की कामना करते हुए व्रत रखती है। इस शुभ दिन पर व्रत रखने के साथ राधा कुंड में स्नान करने का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस कुंड में दंपति द्वारा स्नान करने से उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। ऐसे में हर साल अहोई अष्टमी के दिन खासतौर पर मथुरा नगरी में स्थित राधा कुंड में भक्तों की भीड़ होती है। यह पावन कुंड मथुरा से करीब 26 किलोमीटर दूर गोवर्धन परिक्रमा के दौरान पड़ता है। चलिए आज हम आपको इस कुंड से जुड़ी खास मान्यताओं के बारे में बताते हैं...
अष्टमी की मध्य रात्रि दंपति राधा कुंड में लगाते हैं डुबकी
हर साल अहोई अष्टमी के खास पर्व पर राधा कुंड में शाही स्नान का आयोजन होता है। दंपति इस पर्व के एक रात पहले मध्य रात्रि में शाही स्नान करते हैं। कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने की प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार, इस रात पति और पत्नि द्वारा कुंड में डुबकी लगाने और अहोई मां का व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही संतान प्राप्ति के बाद दंपति बच्चे के साथ राधा जी की शरण में आकर आजरी लगाकर स्नान करते हैं।
अहोई अष्टमी के दिन हुई थी कुंड की स्थापना
कहा जाता है कि इस पावन कुंड की स्थापना द्वापरयुग में अहोई अष्टमी के दिन हुई थी। उस युग में ठीक रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण ने इसी कुंड में स्नान किया था। तब से ही इस शुभ दिन पर मध्य रात्रि शाही स्नान करने की परंपरा है। ऐसे में हर साल देश-विदेश से लोग आकर माता के इस मंदिर की पूजा करते हैं। फिर आरती करके लोग कुंड में दीपदान भी करते हैं। उसके बाद मध्य रात्रि ठीक 12 बजे स्नान करके अहोई अष्टमी का निर्जल व निराहार व्रत रखा जाता है।
ऐसे बना राधा कुंड
धार्मिक कथाओं अनुसार, द्वापर युग में एक समय श्रीकृष्ण जी अपने ग्वालों के साथ गायों को चरा रहे थे। उस समय कृष्णा जी का वध करने के लिए अरिष्टासुर नामक का राक्षस गाय का रूप लेकर आया और उनकी गायों को मारने लगा। फिर राक्षस ने जब श्रीकृष्ण पर वार किया तो भगवान जी ने उसका वध कर दिया। उस समय राक्षस गाय के रूप में था तो ऐसे में राधा जी ने इसे गौहत्या समझा। उन्होंने भगवान कृष्ण से इसका पश्चाताप करने को कहा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाकर वहां पर एक गड्ढा खोद दिया। उसमें सभी तीर्थों का आह्वान करके उन्होंने कुंड में स्नान किया और खुद को गौहत्या के पाप से मुक्त किया। इसके बाद राधा जी ने अपने कंगन से उसी जगह पर दूसरा कुंड खोदा और खुद उसमें स्नान भी किया। ऐसे में भगवान कृष्ण द्वारा खोदे कुंड को शामकुंड और राधा की द्वारा खोदे कुंड को राधाकुंड कहा जाने लगा।
भगवान श्रीकृष्ण ने दिया था राधारानी को वरदान
ब्रह्म पुराण व गर्ग संहिता के गिर्राज खंड मुताबिक, महारास के बाद श्रीकृष्ण ने राधाजी के कहने पर उन्हें वरदान दिया था कि अहोई अष्टमी के दिन राधा कुंड में दंपतियों द्वारा स्नान करने से उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। धार्मिक मान्यताओं अनुसार, आज भी कार्तिक मास के पुष्य नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण राधाजी और अन्य सखियों के साथ मध्य रात्रि राधाकुंड में महारास करने आते हैं।