'डिलीवरी के बाद आप उदास रहने लगी हैं, बार-बार रोने का मन करता है, व्यवहार गुस्सैल व चिड़चिड़ा हो गया है तो यह लक्षण पोस्टपार्टम डिप्रेशन के हो सकते हैं।'
मां बनने का सुख हर महिला पाना चाहती है लेकिन डिलीवरी को लेकर भी एक भय उनके मन में बना रहता है, खासकर पहली बार मां बनने वाली महिलाओं के साथ ऐसा होता है। गर्भावस्था के पहले माह से लेकर डिलीवरी के बाद तक, महिला को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उन्हीं में से एक समस्या पोस्टपार्टम डिप्रेशन की है जिसे प्रसव के बाद होने वाला अवसाद कहते हैं। कुछ महिलाओं को हर बार डिलीवरी के बाद इस अवसाद का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी तो अवसाद का स्तर इतना अधिक हो जाता है कि वह मां व बच्चे दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
क्या है पोस्टपार्टम डिप्रेशन?
1. महिलाओं को अब यह समस्या अधिक हो रही है। इसका एक बड़ा कारण गर्भवती महिला को प्रेग्नेंसी से जुड़ी जानकारियों का अभाव भी है। अधिकतर परिवार एकल होते जा रहे हैं, गर्भवती महिलाओं को परिवार की वरिष्ठ महिलाओं से गर्भावस्था व डिलीवरी से संबंधित जरूरी जानकारी नहीं मिल पाती है।
2. प्रसव के बाद महिला के शरीर में कई तरह के हार्मोंनल बदलाव आते हैं, जिसका असर महिला के व्यवहार पर भी पड़ता है। जैसे-जैसे यह स्तर सामान्य होता है समस्या भी समाप्त होने लगती है।
3. कई बार कारण सामाजिक भी हो जाते हैं, जैसे बेटा पैदा करने का दबाव, नए बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी, शारीरिक कमजोरी, कामकाजी महिलाओं के घर व काम को संभालने का प्रैशर आदि।
4. बढ़े वजन व बैडोल शरीर को लेकर भी महिलाओं के आत्मसम्मान में कमी आने लगती है। इस दौरान वह कई तरह के शारीरिक व मानसिक बदलावों से गुजरती हैं। मानसिक व शारीरिक तौर पर असहाय व कमजोर महसूस करती है।
80% महिलाएं हो जाती है बेबी ब्लूज की शिकार
डिलीवरी के तुरंत बाद महिला उदासी, थकान या मूड स्विंग जैसे बदलाव महसूस करती हैं। यह बदलाव अगर 2 हफ्तों तक ही रहे तो इसे सामान्य ही माना जाता है और इसमें किसी तरह के ट्रीटमेंट की जरूरत भी नहीं पड़ती।
आंकड़ों के मुताबिक, 80 प्रतिशत महिलाएं बेबी ब्लूज की शिकार हो जाती हैं जो 10 से 15 दिनों के भीतर अपने आप सही भी हो जाता है जबकि 15 से 20 प्रतिशत महिलाएं प्रसवोत्तर अवसाद की शिकार हो जाती हैं और उन्हें इलाज व पारिवारिक सहयोग की जरूरत भी पड़ती है।
महिला को भूख नहीं लगती, नींद नहीं आती, अपने आप में गुमसुम रहती है और ऐसे संकेत डिलीवरी के दो हफ्तों से ज्यादा रहते हैं तो इसे अधिकतर डॉक्टर प्रसवोत्तर अवसाद मानते हैं। यह प्रसव के बाद कई हफ्तों से लेकर एक साल तक भी रह सकता है। कुछ महिलाओं के मन में आत्महत्या जैसे विचार भी आते हैं इसीलिए इसे गंभीर स्थिति माना जाता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज क्या है ?
मनोवैज्ञानिक चिकित्सक डॉ. स्मिता वासुदेव के अनुसार, ऐसी स्थिति में मनोवैज्ञानिक की सलाह और काउंसलिंग लेना अनिवार्य होता है। मेडिटेशन थेरेपी का सहारा भी लिया जा सकता है।
भारत में इस समस्या को लेकर जागरुकता की बहुत कमी है। डाक्टर्स द्वारा भी महिला को इस बारे में अधिक जानकारी नहीं मिल पाती जबकि इस बारे में नई मांओं को खासतौर पर बताया जाना आवश्यक है।
भावनात्मक सहयोग
महिला को परिवार के भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। उन पर अच्छी मां बनने का दबाव ना डालें। बच्चे की देखभाल करने में परिवार के सदस्य उनकी मदद करें। मां व सास उन्हें छोटी छोटी बातों की जानकारी दें ताकि वह धैर्य से काम लें।
पौष्टिक आहार का अहम रोल
प्रसव के बाद महिला का शरीर कमजोरी महसूस करता है इसलिए डाइट अहम रोल निभाता है। पौष्टिक आहारों का सेवन करें ताकि डिलिवरी के बाद खत्म हुईं ऊर्जा वापिस मिलें।
पर्याप्त नींद भी जरूरी
बच्चे को संभालने व कामकाज के बीच महिला पूरी नींद नहीं ले पाती जिससे स्वभाव में चिड़चिड़ापन बना रहता है। अच्छी पर्याप्त नींद लें ताकि आप तरो-ताजा महसूस करें। यह बात परिवार वाले भी समझें।
अपनों से करें विचार-विमर्श
पार्टनर, परिवार व सहेलियों की सहायता लें उनसे विचार-विमर्श करें। बहुत सारी महिलाएं उलझन में फंसी रहती है जबकि परेशानी को यदि अपनों से साझा किया जाए तो कई समाधान मिलते हैं।
मनपसंद काम व शौक पूरा करें
डिलीवरी के बाद सबसे ज्यादा असर महिला की खूबसूरती व शारीरिक बनावट पर पड़ता है जिसके चलते वह सामाजिक दूरी बना लेती हैं लेकिन ऐसा करने की बजाए अपना मनपसंद काम करें। सहेलियों या पार्टनर के साथ बाहर घूमने जाएं। मेकअप करें बालों की केयर करें। अच्छे ब्यूटी एक्सपर्ट की राय लें। इससे आप काफी हद तक पोस्टपार्टम डिप्रेशन से दूर रहेंगी।
योग व मेडिटेशन
योग व मेडिटेशन थेरेपी भी इस दौरान महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद साबित होती हैं। योग व मेडिटेशन से मन को शांति मिलती हैं आप तनाव मुक्त महसूस करती हैं। सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
-वंदना डालिया