"कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों",! दुष्यंत कुमार की कविता की ये पक्ति साके भारती पर बहुत सटीर बैठती है। साकी एक मां हैं और गरीबी के चलते अपने परिवार का पेट पालने के लिए मजदूरी करती हैं। दिन-भर कड़ी धूप में मेहनत करने के बाद शाम को उनको पैस मिलते हैं जिससे घर में खाना बनता है। कई सालों से भारती यूं ही मजदूरी कर रही थी। लेकिन फिर भारती ने पढ़कर अपने पैरों पर खड़ा होने की ठानी और अब उनका सपना पूरा भी हो गया है। मजदूरी के साथ पढ़ाई करते हुए उन्होंने केमिस्ट्री में पीएचडी की डिग्री प्राप्त कर सब को हैरान कर दिया है....
टूटी झोपड़ी में रहती हैं भारती
भारती की ये सफलता उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ता का परिणाम है। आंध्र प्रदेश के अनंतपुर की रहने वाली भारती का आशियाना उनकी टूटी-पूटी सी झोपड़ी है। अब वो यूनिवर्सिटी प्रोफेसर बनना चाहती हैं। भारती ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष किया है। उन्होंने बारहवीं कक्षा तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। वो आगे भी पढ़ाई करना चाहती थीं लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं स्थिति नहीं थी। 12वीं की पढ़ाई खत्म होते ही उनकी शादी कर दी गई। उनकी शादी शिवप्रसाद से हुई। शादी के तुरंत बाद वह प्रेग्नेंट हो गईं और उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया।
पढ़ाई करते हुए मां की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई भारती ने
उनके पति भी मजदूरी करते हैं। साके भारती आगे पढ़ना चाहती थीं लेकिन चूंकि परिवार की स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उन्हें नहीं पढ़ाया गया। बेटी कुछ बड़ी हुई तो भारती ने खुद काम करने की ठानी। वह खेतों में मजदूरी करने लगीं। एक मां, छात्रा और मजदूरी करते हुए भारती अपनी किसी भी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटीं। भारती ने एसएसबीएन डिग्री एंड पीजी कॉलेज अनंतपुर से Chemistry Science में Graduation किया। उसके बाद Masters की पढ़ाई पूरी की। देर रात तक वह पढ़ाई करतीं और सुबह जल्दी उठकर घर का काम करती। घर का काम पूरा करने के बाद काम जातीं या कॉलेज चली जाती। कॉलेज से लौटने के बाद शाम को कुछ घंटे मजदूरी करती। घर आकर फिर से घर के काम में जुट जातीं और फिर काम खत्म करके पढ़ने बैठ जातीं।
कॉलेज बस पकड़ने के लिए पैदल चलती थी 10 किलोमीटर
भारती को कॉलेज जाने के लिए बस पकड़ने के लिए उन्हें 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। कॉलेज से उनका गांव लगभग 30 किमी दूर है। उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे की निजी ट्रांसपोर्ट में सफर कर सकें। पैदल चलकर बस बस अड्डे जातीं और वहां से सरकारी बस में बैठकर कॉलेज तक पहुंचतीं। वहीं कॉलेज के शिक्षकों के कहने पर भारती ने पीएचडी के लिए नामांकन करवाया और अपना सर्वश्रेष्ठ देकर सफलता हासिल की।