लड़ाई-झगड़े तो हर पति- पत्नी के बीच होते हैं लेकिन कई बार बात इतनी बढ़ जाती है कि नौबत तलाक तक आ जाती है। हालांकि तलाक हर किसी की जिंदगी में अलग-अलग अनुभव लेकर आता है। जहां कुछ लोग इस गम से निकल नहीं पाते हैं तो वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो तलाक के बाद खुद को आजाद महसूस करते हैं। अब तो तलाक के बाद पार्टी का भी चलन आ गया है।
आजादी को एंजॉय करना चाहते हैं लोग
पहले देखा जाता था कि तलाक या ब्रेकअप के बाद लोग शराब पीने लगते हैं दुख से भरे गाने या फिर फिल्में देखने लगते हैं। लेकिन अब समय- समय के साथ लोगों की सोच भी बदल गई है। लोग रोने- धोने की बजाय अपनी आजादी को एंजॉय करना चाहते हैं। शायद यही कारण है कि शादी की तरह तलाक की भी ग्रैंड पार्टी की जाने लगी है।
ये है पार्टी का मकसद
कहा जा रहा है कि इस पार्टी का मकसद सिर्फ खुशियां मनाना नहीं बल्कि उन लोगों का भी शुक्रिया अदा कना है जिन्होंने मुश्किल वक्त में साथ दिया था। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की पार्टी उन लोगों की मदद करती है जो तलाक से जुड़ी कड़वाहट और दर्द से गुजरे हैं ताकि जीवन में नई पारी को सकारात्मक माहौल के साथ शुरू किया जा सके।
तलाकशुदा पुरुषों के लिए उठाया बड़ा कदम
लोगों की साेच को बदलने के लिए भोपाल की एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने तलाकशुदा पुरुषों के लिए ‘विवाह विच्छेद समारोह’ आयोजित करने का ऐलान किया है। इस डिवोर्स पार्टी की खास बात यह होगी कि इसमें विवाह की तरह ही जयमाला, जेंट्स संगीत भी होगा। इतना ही नहीं इस कार्यक्रम में विवाह से परेशान 18 पुरुषों को डिवोर्स सर्टिफिकेट भी दिया जाएगा।हांलाकि ये केवल उन पतियों का उत्सव होगा जिन्हें सालों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आजादी मिली है।
नए सिरे से जिंदगी की करनी चाहिए शुरुआत
एनजीओ का कहना है कि इस समारोह का मकसद है कि डिवोर्स ले चुके पुरुष अपने गम भुलाकर नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत कर सकें। जिस तरह हम शादी का आप जश्न मनाते हैं, उसी तरह हमें शादी टूटने का भी जश्न मनाना चाहिए। क्योंकि शादियां टूटने के बाद पुरुष आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और मानसिक मोर्च पर लड़ाई लड़ता है।
जश्न बनाने का सभी को हक
एनजीओ का कहना है कि- हम तलाक का समर्थन नहीं करते हैं लेकिन एक खराब शादी उत्पीड़न और कभी-कभी आत्महत्या की ओर ले जाती है. हम इसे रोकना चाहते हैं। रिश्तों के टूटने पर दर्द जरूर होता है, मगर अब दंपति निजी जिंदगी में एक-दूसरे की दखल बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। उन्हें लगता है कि अलग होकर वे अपने निर्णय बेहतर तरीके से ले सकेंगे। अलग होने पर वे आजादी महसूस करते हैं उन्हें जश्न मनाने का भी हक है।