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राष्ट्रीय महिला दिवस 2021: सरोजिनी नायडू से है इस दिन का संबंध, जानिए इसका इतिहास

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 13 Feb, 2021 02:48 PM
राष्ट्रीय महिला दिवस 2021: सरोजिनी नायडू से है इस दिन का संबंध, जानिए इसका इतिहास

आज महिलाएं अपने काम से हर एक क्षेत्र में नाम कमा रही हैं। एक नजर अगर इतिहास की ओर मारी जाए तो महिलाओं ने भी भारत को आजादी दिलाने के लिए कम संघर्ष नहीं किया है। अग्रेंजो के खिलाफ लड़ने वाली और भारत को आजादी दिलाने में सरोजिनी नायडू का नाम भी आता है। 13 फरवरी का दिन भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन का भारत की बेटी  सरोजिनी नायडू के साथ भी गहरा संबंध है। वो सरोजिनी नायडू जिन्होंने  देश की स्वतंत्रता के लिए कईं अहम योगदान दिए। सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हुआ और उन्हीं के जन्मदिन पर हर साल 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता हैं। 

12 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की

सरोजिनी नायडू बचपन से ही काफी तेज थी यही कारण था कि उन्होंने महज 12 साल की उम्र में ही मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। इतना ही नहीं सरोजिनी नायडू ने 14 वर्ष की उम्र में ही सभी अंग्रेजी कवियों की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था। 19 साल की उम्र में ही सन् 1898 में डॉ. गोविन्द राजालु नायडू से सरोजिनी नायडू का विवाह हुआ। 

भारत कोकिला की उपाधि मिली

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सरोजिनी नायडू हमेशा से ही कविताओं का पाठ करती थीं। इसके लिए उन्हें भारत कोकिला की उपाधि भी दी गई थी। उनकी मां वरदा सुंदरी और पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय थे। अघोरनाथ निजाम कालेज के संस्थापक रसायन वैज्ञानिक थे। सरोजनी के पिता हमेशा से यह चाहते थे कि उनकी बेटी वैज्ञानिक बने, लेकिन उनको कविताओं और आजादी से प्रेम था, जिसे वह कभी त्याग ना सकीं। 

भारत की पहली महिला राज्यपाल बनीं

जब सरोजनी नायडू 16 साल की थी तब वह हायर एजुकेशन के लिए इंग्लैंड चली गईं वहां जाकर उन्होंने किंग्स कॉलेज, लंदन और गिरटन कॉलेज में पढ़ाई की। वह भारत की पहली महिला राज्यपाल भी बनीं। हालांकि वह राज्यपाल का पद स्वीकारना नहीं चाहती थी। लेकिन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का बेहद सम्मान करती थीं और उनकी इच्छा को टाल ना सकीं।

महिलाओं के अधिकारों के लिए किया संघर्ष

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सरोजिनी नायडू ने हमेशा से ही महिलाओं के अधिकारो के लिए लगातार संघर्ष किया। उन्होंने गांधी जी के साथ भी कईं  स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और वह हमेशा से गांधीजी के विचारों और मार्ग पर चलीं। आजादी की लड़ाई में उनका अहम योगदान था। भारतीय समाज में जातिवाद और लिंग-भेद को मिटाने के लिए भी उन्होंने कई कार्य किए। आपको बता दें कि सरोजिनी नायडू को 1928 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में प्लेग महामारी के दौरान अपने कार्यों के लिए कैसर-ए-हिंद से सम्मानित किया गया था। इतना ही नहीं 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान नायडू करीब 21 महीने तक जेल में रहीं।

2014 को हुई राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरूआत 

आपको बता दें कि 13 फरवरी 2014 से उनकी जंयती को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की गई। सरोजिनी नायडू की 135वीं जयंती के अवसर पर इस दिवस को मनाने की शुरुआत की गई।

बता दें कि 13 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने 1300 पंक्तियों की कविता 'द लेडी ऑफ लेक' लिखी थी। फारसी भाषा में एक नाटक 'मेहर मुनीर' लिखा। 'द बर्ड ऑफ टाइम', 'द ब्रोकन विंग', 'नीलांबुज', ट्रेवलर्स सांग' उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं। 70 वर्ष की उम्र में 2 मार्च 1949 को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका देहांत हो गया। स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाली सरोजिनी नायडू ने भारत को आजादी दिलाने के लिए कड़ा संघर्ष किया था।

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