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त्रिलोकपुर मंदिर में नमक की बोरी में आई थीं माता बाला सुंदरी, जानें यहां की पूरी कहानी

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 10 Apr, 2024 02:51 PM
त्रिलोकपुर मंदिर में नमक की बोरी में आई थीं माता बाला सुंदरी, जानें यहां की पूरी कहानी

भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के सिरमौर ज़िले के त्रिलोकपुर ग्राम में स्थित बाला सुंदरी मन्दिर में चैत्र नवरात्रि की अलग ही धूम देखने को मिल रही है। यहां  प्रसिद्ध बाला सुंदरी चैत्र नवरात्र मेला प्रारंभ हो गया है जो 23 अप्रैल तक श्रद्धापूर्वक धूमधाम के साथ आयोजित किया जायेगा।यहं मंदिर उत्तर भारत का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, यहां पर प्रत्येक वर्ष नवरात्रों में लाखों संख्या में श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं।

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मां दुर्गा नवरात्र के मौके पर संपूर्ण त्रिलोकपुर क्षेत्र माता बालासुंदरी की श्रद्धा में भक्तिमय दिखाई पड़ा। हाथों में मां दुर्गा का ध्वज लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु बिना थके, बिना रूके, मां बालासुंदरी का जयकारा लगाते भक्तिभाव से मंदिर में दर्शन हेतु पहुंच रहे हैं। । श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पावन स्थली पर माता पर साक्षात रूप में विराजमान है। 

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 इस क्षेत्र में एक त्रिकोण के तीन कोनों पर स्थित दुर्गा के तीन मन्दिर हैं, जिनमें देवी के अलग-अलग स्वरूप विराजमान हैं। त्रिलोकपुर में स्थित मुख्य मन्दिर में भगवती त्रिपुर बाला सुन्दरी का मन्दिर है, जिसमें दुर्गा का बालावस्था का रूप है। यहां से 3 किमी दूर भगवती ललिता देवी का मन्दिर है और 13 किमी पश्चिमोत्तर में तीसरा मन्दिर है। भगवती बाला सुंदरी का यह मंदिर पिछले कुछ दशकों से बहुत अधिक विख्यात हुआ है। 

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हिमाचल प्रदेश के प्रमुख मंदिरों जैसे चिंतपूर्णी, नैना देवी, ज्वाला देवी, कांगड़ा, चामुण्डा और बगलामुखी आदि मंदिरों से भी ज्यादा श्रद्धालु नवरात्र मे यहां दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि सन 1570 में राम दास नामक एक स्थानीय व्यापारी ने एक नमक की बोरी खरीदी, जिसमें एक पिण्डी पाई गई। यह देवी मां के बालसुन्दरी जी रूप का प्रतीक एक पवित्र पत्थर था। लाला राम दास बोरी से नमक बेचते रहे, लेकिन बोरी भरी की भरी ही रही

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फिर देवी राम दास को एक स्वप्न में प्रकट हुई। उन्होंने राम दास को बताया कि कैसे वे देवबन से अदृश्य हुई थीं और उसे इस पिण्डी स्वरूप को लेकर त्रिलोकपुर में एक मन्दिर बनाकर स्थापित करते का आदेश दिया। यहाँ उन्होंने महामाया बालासुन्दरी को समर्पित पूजा का आदेश दिया, जो माता वैष्णो देवी का बाल स्वरूप हैं।

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लाल राम दास के पास मन्दिर बनवाने के लिए पर्याप्त धन नहीं था, इसलिए वे सिरमौर राज्य के राजा के पास पैसा मांगने गए, जो उन्हें दे दिया गया। राम दास ने मन्दिर निर्माण आरम्भ करा और उसी वर्ष जयपुर से संगमरमर का मन्दिर बनवाने के लिए निपुण कारीगर बुलवाए। मन्दिर सन् 1573 में बनकर पूरा हुआ और देवी बाल सुन्दरी को समर्पित कर दिया गया। यहं  राजघराने ने भी पूजा करनी आरम्भ कर दी। सन् 1823 में महाराज फतेह प्रकाश और फिर 1851 में महाराज रघुबीर प्रकाश ने मन्दिर की मरम्मत करवाई।

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